कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukharjee) की किताब 'द प्रेसिडेंशियल इयर्स 2012-2017' (The Presidential Years 2012-2017) मंगलवार को बाजार में आ गई। इस किताब में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं।
नेशनल डेस्क। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukharjee) की किताब 'द प्रेसिडेंशियल इयर्स 2012-2017' (The Presidential Years 2012-2017) मंगलवार को बाजार में आ गई। इस किताब में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। जानकारी के मुताबिक, इस किताब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को सलाह देते हुए उन्होंने लिखा है कि असहमति के स्वरों को भी सुनना चाहिए और विपक्ष के साथ सहमति बनाने के लिए संसद में ज्यादा बोलना चाहिए। प्रणब मुखर्जी ने किताब में लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहलराल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह, सभी ने संसद में अपनी मौजूदगी का एहसास कराया था। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को भी इनसे प्रेरणा लेते हुए संसद में अपनी मौजूदगी बढ़ानी चाहिए। किताब में यह भी कहा गया है कि अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार संसद को सुचारु रूप से नहीं चला सकी। इसके पीछे सरकार की अकुशलता और उसका अहंकार दिखता है।
नोटबंदी को लेकर क्या लिखा
प्रणब मुखर्जी की किताब में नोटबंदी का भी जिक्र किया गया है। इसमें लिखा गया है, "मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की, लेकिन इससे पहले मुझसे (तब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे) इस विषय पर चर्चा नहीं की।" प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि हालांकि इससे उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि यह घोषणा आकस्मिक रूप से की गई थी।
नेपाल चाहता था भारत में शामिल होना
प्रणब मुखर्जी की किताब में एक और भी चौंकाने वाली बात लिखी गई है। इसमें दावा किया गया है कि नेपाल भारत में शामिल होकर इस देश का एक राज्य बनना चाहता था, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। उनका मानना था कि नेपाल एक स्वतंत्र देश है और उसे इसी रूप में रहना चाहिए।
इंदिरा गांधी के बारे में क्या लिखा
प्रणब मुखर्जी ने अपनी इस किताब में लिखा है कि नेहरू की जगह अगर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री होतीं, तो शायद वे मौके का फायदा उठाते हुए नेपाल को सिक्किम की तरह भारत में मिला लेतीं। प्रणब मुखर्जी की इस किताब में देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली के बारे में भी कई बातें लिखी गई हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रणब मुखर्जी की यह किताब काफी विवादास्पद हो सकती है।