निर्भया केसः दोषी की याचिका पर सुनवाई से अलग हुए CJI, कहा, मेरे रिश्तेदार ने पीड़ित की ओर से की थी पैरवी

निर्भया गैंगरेप के चार दोषियों में से एक दोषी अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। जिस पर तीन जजों की बेंच ने इस पर सुनवाई की। इस दौरान सीजेईआई ने खुद को इस बेंच से अलग कर लिया है। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 17, 2019 5:23 AM IST / Updated: Dec 17 2019, 05:26 PM IST

नई दिल्ली. निर्भया केस के दोषी अक्षय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। जिस पर आज सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने खुद को अलग कर लिया है। जिस पर सीजेआई ने कहा कि उनके एक रिश्तेदार ने निर्भया की मां की तरफ से पैरवी की थी, इसलिए यह उचित होगा कि दूसरी बेंच पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करे। सीजेआई ने कहा कि हम एक नई बेंच का गठन करेंगे, जो बुधवार को सुबह 10:30 बजे सुनवाई करेगी। 

फांसी से बचने के लिए दी थी यह दलीलें 

अक्षय ने मौत की सजा से बचने के लिए अजीब दलीलें दीं थीं। उसने याचिका में दिल्ली के गैस चैंबर होने, सतयुग-कलियुग, महात्मा गांधी, अहिंसा के सिद्धांत और दुनियाभर के शोधों का जिक्र किया था। अक्षय ने कहा था कि जब दिल्ली में प्रदूषण की वजह से वैसे ही लोगों की उम्र घट रही है, तब हमें फांसी क्यों दी जा रही है?

सात साल बाद भी न्याय का इंतजार 

दूसरी ओर, निर्भया के परिजनों ने शुक्रवार को पटियाला हाउस कोर्ट में उनकी बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसकी निर्मम हत्या के दोषियों को जल्द फांसी देने की मांग की है। इस पर दिल्ली की अदालत ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करेगी, जहां 17 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई होनी है। निर्भया के परिजन अपनी बेटी के साथ हुए जघन्य अपराध के सात साल बाद भी उसके हत्यारों को फांसी दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं।

16 दिसंबर 2012 को हुई थी घटना 

सात साल पहले यानी 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में निर्भया का वीभत्स तरीके से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या किए जाने की घटना सामने आई थी। जिसके बाद पूरे देश में आक्रोश का महौल था। इस मामले में निचली अदालत में फांसी की सजा सुनाई थी। जिसके बाद दोषियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जहां जजों की बेंच ने फांसी की सजा को बरकरार रखा था। इसके बाद चारों दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस दौरान कोर्ट ने सुनवाई करते हुए निचली अदालत और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। 

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