निर्भया के दोषियों को 3 मार्च की सुबह 6 बजे फांसी होनी है। लेकिन दोषियों के वकील एपी सिंह का कहना है कि उन्हें फांसी नहीं होगी। मौत की तारीख टल जाएगी। ऐसे में Asianet News ने वकील एपी सिंह से बात की। उनसे जाना कि आखिर वे दोषियों को क्यों बचा रहे हैं?
नई दिल्ली. निर्भया के दोषियों को 3 मार्च की सुबह 6 बजे फांसी होनी है। लेकिन दोषियों के वकील एपी सिंह का कहना है कि उन्हें फांसी नहीं होगी। मौत की तारीख टल जाएगी। इससे पहले भी दो बार फांसी की तारीख को रद्द किया जा चुका है। पहले 22 फरवरी फिर 1 मार्च को फांसी दी जानी थी, लेकिन दोषियों की याचिका के बाद उसे रद्द कर दिया गया। जब-जब फांसी की तारीख टलती है तब निर्भया की मां सहित सोशल मीडिया यूजर्स का गुस्सा फूट पड़ता है। निशाने पर कोर्ट के अलावा दोषियों के वकील एपी सिंह भी रहते हैं। एपी सिंह की कई तरह से आलोचना की जाती है। लोग पूछते हैं कि आखिर एपी सिंह बलात्कारियों को कोई क्यों बचा रहे हैं? कोई कहता है कि दोषियों से पैसा एंठने के लिए मौत की तारीख को टाल रहे हैं।
Asianet News ने वकील एपी सिंह से बात की। उनसे जाना कि आखिर वे दोषियों को क्यों बचा रहे हैं? उनसे कितना पैसा लेते हैं? पहली बार दोषियों का केस उनके पास कैसे आया? निर्भया केस को लेकर उनके बच्चे कभी सवाल पूछते हैं या नहीं? इस केस को लेकर उनके दोस्त कैसा व्यवहार करते हैं?
सवाल- तीन मार्च को निर्भया के दोषियों को फांसी होगी?
जवाब- मैं न परमात्मा हूं न प्रभू हूं। ना मैं जीवन देने वाला हूं। संविधान को मानने वाला हूं। संविधान पर चलता हूं। अदालत के आदेश को मानता हूं। अभी दोषियों के पास फांसी के बचने के लिए कई विकल्प बचे हैं। फांसी नहीं होगी। जब आरोपी की तरफ से या फिर उसके परिवार की तरफ से मुझे अप्रोच किया जाएगा। मैं अदालत में दलील रखता रहूंगा। यह मेरा फर्ज है उसका निर्वाहन करता रहूंगा।
सवाल- दोषियों को फांसी से क्यों बचा रहे हैं?
जवाब- मारने से बचाना बड़ा काम है। सजा से माफ करना बडा काम है। इसलिए मेरा मानना है क्या 1 मां के घाव के दर्द का उपचार, 5 मां को घाव देकर करना सही है ? क्या फांसी गरीबों की सरकारी हत्या नहीं है? क्या फांसी से नफरत का हथियार जन्म नहीं लेता है?
सवाल- सबसे पहले कब और कहां दोषियों के परिवार से मुलाकात हुई? दोषियों का केस आप तक कैसे पहुंचा?
जवाब- यह दिसंबर 2012 की बात है। मैं यह पूरा केस टीवी और अखबारों में देख और पढ़ रहा था। तब दोषी अक्षय की पत्नी अपने पति से जेल में जाकर मिली थी। वहीं जेल में ही किसी कैदी या किसी दूसरे ने उन्हें मेरे बारे में बताया और मेरा नंबर दिया होगा। वह (दोषी की पत्नी) मेरे घर पहुंच गई। मेरी मां से मिली। उस वक्त मैं कोर्ट में था। मां बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की हैं। दोषी की पत्नी की गोद में 4 महीने का बच्चा था। सर्दी का समय था। परेशान थी। उसने मेरी मां से बात की। बहुत रो रही थी। तब मां ने कहा, अगर तुम कह रही हो कि घटना के वक्त तुम्हारा पति गांव में था। तो मेरा बेटा केस लड़ेगा। जब मैं शाम को घर लौटा तो मां ने मुझे बताया।
सवाल- पहली बार में ही केस लड़ने के लिए तैयार हो गए?
जवाब- नहीं। मैं मां से कहा, मां यह तो बहुत बवाल केस है। इस पर तो धरना प्रदर्शन, मीडिया ट्रायल सब होंगे। तब निर्भया जिंदा थी। लेकिन तभी से फांसी की मांग होने लगी थी। समझ सकते हैं कि तब कितना दबाव रहा होगा। बाद में निर्भया की भी मौत हो गई। फिर भी मां ने कहा कि यह केस तुम्हें लड़ना चाहिए। मैंने मां के आदेश को माना। माता-पिता के आदेश से बड़ा कोई आदेश नहीं होता। उनसे बड़ा कोई मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा नहीं होता।
सवाल- आपकी मां को निर्भया की हालत में तरस नहीं आया? दया नहीं आई? आपकी मां को दोषी की पत्नी की स्थिति पर ही दया क्यों आई?
जवाब- मेरे पास अगर वो (निर्भया की मां) आती। निर्भया की मां मेरी मां के पास आतीं, तो निश्चित तौर पर मैं उनका केस लड़ता। जिसने मुझे अप्रोच किया या मेरी मां को अप्रोच किया। मेरे ऑफिस में अप्रोच किया। मेरे घर पर अप्रोच किया। तो मैं उसी की तरफ से ही केस लड़ूंगा ना। जो मेरे पास पहले आएगा मैं उसकी मदद करूंगा। फरियादी तो वहीं हुआ। मुझे तो उस बच्चे की मां दिख रही थी। 4 महीने का गोद में भूखा प्यासा। बिना घरबार के। दर-दर भटक रही थी। एक युवती। नवविवाहिता भटक रही थी। बाद में विनय की मां दिखी। विनय के परिवार के लोग मिले। डायबिटीक बहन दिखी। अक्षय जैसा व्यक्ति। दो तीन हजार की नौकरी करने बीवी और बच्चे को छोड़कर दिल्ली आया हो।
सवाल- 7 साल बाद अब आपकी मां इस केस को कैसे देखती हैं? अभी भी उनका वैसा ही दृढ़ निश्चय है जैसा पहले था?
जवाब- अब तो उनका दृढ़ निश्चय और भी मजबूत हो गया है। निर्भया जिंदा थी, फिर सिंगापुर में इलाज हुआ। हमने डिफेंस एविडेंस दिखाए। विनय घटना के वक्त म्यूजिकल प्रोग्राम में था। पवन के पिता ने नाबालिग होने के कागज लाकर दिए। कोर्ट में दिखाया कि देखो मेरा बेटा नाबालिग है, लेकिन कोर्ट मानने के लिए तैयार ही नहीं हुआ। स्कूल सर्टिफिकेट हैं। स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट है। मां का निश्चय और भी बढ़ता चला गया। विनय का सिर फोड़ा गया। पैर तोड़ा गया। पवन के सिर में 14 टांके आएं। मंडोली जेल में। राम सिंह की हत्या हुई।
सवाल- आज पूरा देश एक तरफ है और आप एक तरफ। सोशल मीडिया यूजर्स गुस्सा भी निकालते हैं। यह सब देख आपकी मां परेशान नहीं होती हैं?
जवाब- नहीं...नहीं। देश एक तरफ नहीं है। मानवाधिकार के लोग दोषियों को बचाने के लिए पूरे देश में प्रदर्शन कर रहे हैं। राष्ट्रपति को लेटर भेज रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस को लेटर भेज रहे हैं। सोशल मीडिया पर मुहिम चला रहे हैं कि फांसी नहीं होनी चाहिए। इस देश में आतंकवादियों को बिरयानी दे रहे हैं और हमें फांसी दे रहे हैं। पिक एंड चूज का फॉर्मूला राष्ट्रपति जी अपना रहे हैं। मां मेरी देखती हैं अभी। लोग घर पर आते हैं तो कहते हैं कि मेरा फला केस तो एक साल से नहीं लगा सुप्रीम कोर्ट में। लेकिन निर्भया केस अगले दिन 11 बजे लग जाता है। छुट्टी के दिन भी सुनवाई हो जाती है। वह(मां) देख रही हैं। दुनिया समझ रही है। जो किताब अब लिखी गई। जो स्टिंग अब सामने आए। जो जस्टिस कूरियन जोसेफ अब कह रहे हैं कि निर्भया के दोषियों की उम्र कम है। इनकी फांसी की सजा खत्म हो जानी चाहिए। इंदिरा जयसिंह अब कह रही हैं कि जब राजीव गांधी के हत्यारों को माफ किया जा सकता है तो इन्हें भी माफ किया जा सकता है, तो यह सब समाज की ही तो हैं।
सवाल- क्या आपने पहले भी ऐसे केस लड़े हैं? कैसे जेल में भी कैदियों ने आपका ही नंबर दिया?
जवाब- मैं 23 साल से सुप्रीम कोर्ट का मेंबर हूं। जेल में नाम किसका चलता है? जेल में कैदी नाम लेते हैं किसी का? तो इसका मतलब है कि कैदी भी आधे से ज्यादा वकील हो चुके होते हैं। उन्हें पता होता है कि कौन केस लड़ सकता है।
सवाल- आपके बच्चे, पत्नी और मां टीवी देखती होंगी। जब आप कोर्ट से घर पहुंचते हैं तो वे आपसे कुछ सवाल नहीं करते? उनका रिएक्शन कैसा होता है?
जवाब- हर कोई तारीफ करता है। लोग कहते हैं कि बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। इस केस में तो अब एकेडमिक रिसर्च हो गई। रिसर्च हो गई कि कैसे-कैसे क्या-क्या दवाब बनते हैं। दबाव को कैसे झेला जाता है। कैसे सहा जाता है। कैसे पिक एंड चूज फॉर्मूला अपनाया जाता है। कैसे स्क्रीन शॉट के सिग्नेचर मर्सी पिटीशन में लगा दिए जाते हैं। सिग्नेचर की फोटो कॉपी लगा दी जाती है। कैसे बिना साइन के मर्सी चलती रहती है। कैसे विनय की मर्सी बिना साइन के डिस्मिस हो जाती है। कैसे आचार संहिता दिल्ली में रहती है। कैसे गृह मंत्री के साइन स्क्रीन शॉट से फाइल में लगते रहते हैं। यह सब शोध का विषय हो गया है।
सवाल- कभी आपके बच्चों ने इस केस को लेकर आपसे बातचीत की?
जवाब- मैंने अपने बच्चों को जॉनी-जॉनी यस पापा, ट्विकल ट्विकल लिटिल स्टार नहीं पढ़ाया है। हमने सीता, सावित्रि, गार्गी, अनुसूईया और रजिया सुल्ताना का कहानियां सुनाकर बड़ा किया है। छत्रपति शिवाजी की कहानियां सुनाई हैं। यह हमें हमारे परिवार से मिला। हमने अपने बच्चों को दिया। यह आगे चलता रहेगा। पाश्चात सभ्यता से बहुत दूर रहता हूं। हमारे घर के गेट के आसपास भी पाश्चात सभ्यता नहीं रहती है।
सवाल- अगर वकालत को अलग रख दिया जाए तो व्यक्तिगत रूप से आप निर्भया के केस को कैसे देखते हैं? उसके साथ जो दरिंदगी हुई, दोषियों को कैसी सजा मिलनी चाहिए?
जवाब- निर्भया के नाम पर इतना फंड मिल चुका है। निर्भया फंड बन चुका है। लेकिन उनके परिवार (दोषी) के लोगों को क्या मिल रहा है। वे तो साढ़े सात साल से धक्के ही खा रहे हैं। विनय तो जेल में पागल ही हो गया है। उसका हाथ तोड़ दिया गया उसका। उनका (निर्भया की मां) बेटा तो पायलट बन गया। सेटल हो गए हैं। हां मैं मानता हूं कि घाव होता है। दर्द होता है। मौत, मौत है। मौत किसी व्यक्ति को तो क्या, हमलोग किसी कीड़े मकौड़े को भी नहीं मरने देते हैं। हम तो गांधी जी के सिद्धांतो पर हैं। चींटी को भी नहीं मारना चाहते हैं। लेकिन अब हो गई। साढ़े सात साल से जेल में हैं। अगर मान लो फांसी लग भी गई। अगर मीडिया की जीत हो भी गई। पब्लिक सेंटीमेंट, नेता राजनेता जीत गए। तो क्या गैंगरेप और मर्डर नहीं होंगे। अगर कोई गारंटी ले। कोई संविधान। कोई सिस्टम। कोई राष्ट्रपति भवन। कोई सुप्रीम कोर्ट। तो इनके परिवारवालों से खड़ा करके लीवर खिंचवा दे। अगर अच्छा होता है। हां इनका प्रयोग किया जा सकता है। सीमा पर उपयोग करें। अच्छी बात है। वह एक रास्ता है। जीवन बचा रहे।
सवाल- अगर सजा का खौफ नहीं रहेगा तो यह घटनाएं तो और भी बढ़ जाएंगी?
जवाब- सजाए आप देते रहें, फांसी के डेथ वॉरंट जारी कर रहे हैं। क्या मान लीजिए आज फांसी हो गई, क्या अगले दिन रेप नहीं होंगे? क्या आप अखबारों में छुपा सकते हैं। लेकिन रोक नहीं सकते हैं। यह मेरा दावा है। क्या हैदराबाद की घटना सही थी? क्या हैदराबाद की घटना के बाद कोई घटना नहीं होगी? अगर हां तो बंद कर दीजिए संविधान को, कचहरी को। क्या आतंकवादियों को फांसी देने के बाद आतंकवादी हमले रुक गए।
सवाल- दोषी अपनी फीस कैसे मैनेज करते हैं और आप उनसे कितनी फीस लेते हैं?
जवाब- फीस लेने की बात बताने वाली नहीं होती है। मेरे पिता ने एक बात बताई थी, जब मैंने प्रैक्टिस स्टार्ट की। उन्होंने कहा था, ठीक है आप वकील बन गए हैं और क्लाइंट से खूब फीस लेना। ऑफिस में लेना। कोर्ट के बाहर लेना। लेकिन कोर्ट में जब उसके लिए बहस करके आओ, तब लेना। तुम्हारे मन की फीस न हो तो वापस कर देना। लेकिन जब कोर्ट में उसके लिए खड़े हो। के की ड्रॉफ्टिंग कर रहे हो। तब अपने दिल दिमाग में यह मत लाना कि इसने फीस देने में कोई कमी रखी है। यह सोचना कि इसने अपना सबकुछ तुम्हें दिया है।
सवाल- हां, लेकिन फीस कितनी लेते हैं?
जवाब- वकालत कर रहा हूं कि गुनाह कर रहा हूं। मेरे पास फंड तो नहीं आ रहा है। मेरे पास निर्भया फंड तो नहीं आ रहा है। मेरे पास एनजीओ तो नहीं है। मैं सॉलीसीटर जनरल तो नहीं हूं। मैं दिल्ली हाईकोर्ट को शनिवार और रविवार को तो नहीं खुलवा सकता। मैं याचिका ही तो लगा सकता हूं। मैं इतिहास में अपना नाम रखना चाहता हूं कि लोग पढ़े। जीवन में दो काम करना चाहिए। या तो ऐसा काम कर जाओ कि आप के बारे में लोग लिखते रहे, या तो ऐसा कुछ लिख जाओ कि लोग आपको पढ़ते रहे।
सवाल- इतिहास में आपको कैसे याद किया जाएगा? एक दोषी को बचाने वाला वकील?
जवाब- एक अपने क्लाइंट को बचाने के के लिए भारतीय संविधान, जेल मैन्यूअल, जजमेंट पूरी दुनिया के सामने जग जाहिर कर देते हैं। जो गलतियां हो रही हैं सरकारों से। जो गलतियां हो रही हैं देश के महामहिम राष्ट्रपति से। ये सब इतिहास में याद रखा जाएगा। और लोग लिखेंगे। राष्ट्रपति से लेकर इस केस की सुनवाई के लिए आवाज लगाने वाला चपरासी तक। यह सब बाद में बोलेंगे। इस केस की सच्चाई के बारे में बोलेंगे। छुपे रूप में अब भी बोल रहे हैं। जैसे-जैसे सब रिटायर होते चले जाएंगे। इस केस की सच्चाई सबके सामने आती चली जाएगी। लेकिन ये लटक चुके होंगे। लोग अपना सिर पटक रहे होंगे।
सवाल- निर्भया की मां से आपकी पहली मुलाकात कब हुई और कितनी मुलाकात हो चुकी है?
जवाब- मुलाकात हर डेट पर होती है।
सवाल- कोर्ट के बाहर निर्भया की मां की आपसे कोई मुलाकात हुई?
जवाब- नहीं। कभी नहीं। मिलने के हिसाब से कभी नहीं हुई। अपोजिट पार्टी जो होती है मेरा उससे मिलने का कोई मतलब नहीं होता। यह मेरे सिद्धांतों के खिलाफ है। यह वकालत के सिद्धांत के खिलाफ होगी। अगर मैं दूसरे पक्ष से मिलूं।
सवाल- निर्भया की मां ने आरोप लगाया कि आपने उन्हें चुनौती दी थी कि दोषियों को कभी भी फांसी नहीं होने देंगे। क्या यह सच है?
जवाब- बिल्कुल गलत है। बिल्कुल गलत है। हमने याचिका लगाई कि फांसी की सजा को अनिश्चितकालीन के लिए रोक दें। उसी ऑर्डर के खिलाफ वे हाईकोर्ट चली गईं। शनिवार को हाईकोर्ट खुलवा दिया गया। उसी याचिका को पटियाला कोर्ट ने हमारे हक में कर दिया।
सवाल- इस केस को लड़ने के लिए आपके पास कोई वकीलों की टीम है?
जवाब- हां, मेरे पास वकीलों की टीम रहती है। अब तक मैंने सवा दो सौ वकील तैयार किए हैं। इंटर्न से लेकर वकील तक सबको तैयार किया। उनमें से 15-16 जज बन गए हैं।