जल्दबाजी में न्याय का मतलब न्याय को...निर्भया के दोषियों की दलील सुन आप भी रह जाएंगे सन्न

रविवार को दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान दोषियों के वकील ने एपी सिंह ने कहा है कि जल्दबाजी में न्याय का मतलब है न्याय को दफनाना। वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल में विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं।

Asianet News Hindi | Published : Feb 4, 2020 3:06 AM IST

नई दिल्ली. निर्भया गैंगरेप मामले में केंद्र की याचिका पर दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा है कि जल्दबाजी में न्याय का मतलब है न्याय को दफनाना। दरअसल  रविवार को दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान दोषियों के वकील ने यह दलील दी। इसके साथ ही वकील ने कहा कि उन्हें एक ही आदेश के जरिए मौत की सजा सुनाई गई है, इसलिए उन्हें एक साथ फांसी देनी होगी और उनकी सजा पर अलग-अलग समय पर क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता। 

फैसला रखा है सुरक्षित 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने रविवार को केंद्र की उस अर्जी पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चार दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने कहा कि अदालत सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी किए जाने के बाद आदेश देगी। 

सॉलिसिटर जनरल ने दी यह दलील

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल में विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं। तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा, 'समाज और पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए इन सभी दोषियों को तुरंत फांसी पर लटकाने की जरूरत है'। उन्होंने बताया कि देरी के लिए दोषियों द्वारा जान-बूझकर प्रयास किए जा रहे हैं। तुषार मेहता ने कहा, 'ये जानबूझ कर किया जा रहा है। ये न्याय के लिए हताशा की स्थिति है। इन्होंने एक लड़की का सामूहिक रेप किया था।'

दोषियों की दलील 

तीन दोषियों (अक्षय, विनय और पवन) के वकील एपी सिंह ने मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की जल्दबाजी पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, 'इस मामले में जल्दबाजी क्यों? जल्दबाजी में न्याय का मतलब है न्याय को दफनाना।' सिंह ने आगे कहा कि दोषी गरीब, ग्रामीण और दलित परिवारों से संबंध रखते हैं। कोर्ट को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए। 

दोषी मुकेश की वकील ने कही ये बात 

चौथे दोषी मुकेश के लिए कोर्ट में बहस कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने कहा, 'नियम सबके लिए एक होना चाहिए चाहे दोषी हो या फिर सरकार। अगर सभी दोषियों को सजा एक साथ दी गई है तो फांसी भी एक साथ दी जाए। कानून इसका अधिकार देता है।' उन्‍होंने सवाल उठाया कि जब सभी दोषियों का डेथ वारंट एक साथ जारी किया गया तो फांसी अलग कैसे दी जा सकती है?

क्या है पूरा मामला

दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। 

जिसके बाद लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।

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