निर्भयाः दोषियों की फांसी टालने पर दिल्ली सरकार की दलील, भड़के HC ने कहा, कैंसर से जूझ रहा सिस्टम

फांसी से बचने के लिए निर्भया के एक दोषी ने दिल्ली हाईकोर्ट से डेथ वॉरंट रद्द करने की मांग की है।जिसके बाद हाईकोर्ट ने याचिका ठुकराते हुए कहा, डेथ वॉरंट जारी करने के निचली अदालत के फैसले में चूक नहीं। वहीं, सिस्टम को लेकर भी कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 16, 2020 3:49 AM IST

नई दिल्ली. निर्भया के दोषियों के मौत की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है वैसे वैसे छटपटाहट बढ़ती जा रही है। एक ओर जहां निर्भया के दोषी मौत से बचने के लिए तमाम कोशिश कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट से कहा है कि निर्भया के चारों दुष्कर्मियों को 22 जनवरी को फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता। इसके पीछे दिल्ली सरकार ने जेल नियमों का हवाला देते हुए दलील दी है, 'अगर किसी मामले में एक से ज्यादा दोषी को मौत की सजा सुनाई गई है और अगर उनमें से किसी एक दोषी ने भी दया याचिका दाखिल की है तो उस याचिका पर फैसला होने तक सभी दोषियों की फांसी टालनी पड़ती है।' 


दिल्ली सरकार ने डेथ वॉरंट पर रोक लगाने की मांग करती निर्भया के दोषी मुकेश की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका को ठुकरा दिया है। हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी की सरकार और जेल प्रशासन को फटकार लगाते हुए कहा कि पूरा सिस्टम कैंसर से जूझ रहा है। दोषी इस सिस्टम का गलत फायदा उठा पा रहे हैं।

22 जनवरी को दी जानी है फांसी 

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने 7 जनवरी को निर्भया के चारों दुष्कर्मियों अक्षय, पवन, मुकेश और विनय के खिलाफ डेथ वॉरंट जारी कर दिया था। इस वॉरंट में कहा गया था कि इन दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में फांसी पर चढ़ाया जाए। इसके बाद दो दोषियों मुकेश और विनय ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दोनों की याचिका खारिज कर दी। एक दोषी मुकेश ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी, दिल्ली हाईकोर्ट से डेथ वॉरंट रद्द करने की मांग की। हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर कहा है कि वह निचली अदालत में ही अर्जी दायर करे। उसने निचली अदालत में याचिका भी लगा दी। इस बीच, दिल्ली सरकार ने दया याचिका खारिज करने की सिफारिश की है।

क्या हुआ हाईकोर्ट में ?

दिल्ली सरकार ने कहा- इंतजार करना चाहिए

दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट की बेंच को बताया कि जेल नियमों के अनुसार वॉरंट रद्द करने के मामले में दया याचिका पर फैसले का इंतजार करना चाहिए। 22 जनवरी को चारों दोषियों की फांसी नहीं हो सकेगी, क्योंकि इनमें से एक की दया याचिका लंबित है। इस स्थिति में डेथ वॉरंट रद्द करने की मांग करना भी सही नहीं है।

जेल प्रशासन ने कहा- 22 को फांसी नहीं दी जाएगी

जेल प्रशासन के वकील राहुल मेहरा ने कहा- चारों दोषियों को निश्चित रूप से 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जाएगी। राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका रद्द होने के 14 दिन बाद ही फांसी दी जा सकती है। हम नियमों से बंधे हैं, क्योंकि याचिका खारिज होने पर दोषियों को 14 दिन का नोटिस देना जरूरी है।

हाईकोर्ट ने कहा- सिस्टम कैंसर से जूझ रहा है

दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार और जेल प्रशासन को फटकार लगाते हुए कहा कि लोगों का सिस्टम से भरोसा उठ जाएगा, क्योंकि चीजें सही नहीं हो रहीं। हम देख रहे हैं कि सिस्टम का गलत फायदा उठाने के लिए तिकड़में लगाई जा रही हैं और सिस्टम इससे बेखबर है। अगर सभी दोषियों के दया याचिका लगाने तक आप आगे कदम नहीं उठा सकते तो इसका मतलब है कि आपके नियम खराब हैं। इसमें दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया। सिस्टम कैंसर से जूझ रहा है। दोषी इसका गलत फायदा उठा पा रहे हैं।

फिर ट्रायल कोर्ट का रूख करेगा जेल प्रशासन 

तिहाड़ के वकील ने कहा कि मुकेश ने दया याचिका दायर की है। हम बाकी दोषियों की याचिकाओं का भी इंतजार करेंगे। 22 जनवरी को फांसी देने की तारीख एकेडमिक है। अगर 21 तारीख को दोपहर तक दया याचिका पर फैसला नहीं हुआ, तो जेल प्रशासन नए वॉरंट के लिए ट्रायल कोर्ट जाएगा। याचिका के 22 जनवरी से पहले या बाद में खारिज होने की स्थिति में भी सभी दोषियों के लिए वॉरंट के लिए ट्रायल कोर्ट का रुख करेंगे।

क्या है पूरा मामला

16 दिसंबर 2012 को नर्सिंग की छात्रा निर्भया से छह दोषियों ने गैंगरेप और दरिंदगी की घटना को अंजाम दिया था। जिसमें बुरी तरह से जख्मी निर्भया की 10 दिन बाद सिंगापुर में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। मामले के दोषियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। जहां दिल्ली के एक ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट के इस फैसले पर दोषियों ने हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। लेकिन दोनों कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इन सब के बीच रेप के एक दोषी ने जेल में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जबकि एक दोषी नाबालिग होने के कारण सुधार गृह में बंद होने के बाद बाहर आ गया है। जबकि चार अन्य दोषियों को फांसी पर लटकाया जाना है। 

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