
नई दिल्ली। भारत अपनी सुरक्षा रणनीति को लगातार मजबूत कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने जिस तरह से इज़राइल से और हेरॉन MK-II ड्रोन खरीदने का फैसला लिया है, उससे साफ है कि देश अब हाई-एंड टेक्नोलॉजी और लंबी दूरी की निगरानी क्षमता को और आगे बढ़ाने में तेजी से निवेश कर रहा है। हेरॉन MK-II एक ऐसा ड्रोन है, जिसकी रेंज, सहनशक्ति और स्पीड भारत की ज़रूरतों को बिल्कुल फिट करती है। यही कारण है कि तीनों सेनाओं आर्मी, एयर फ़ोर्स और नेवी ने इस एडवांस्ड UAV को अपने सिस्टम में शामिल करने का प्लान तय किया है।
इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (IAI) के सूत्रों ने बताया कि भारत सिर्फ ड्रोन खरीद नहीं रहा, बल्कि अब भारत में ही MK-II और आगे के वेरिएंट बनाने की बातचीत भी आगे बढ़ रही है। यह मेक इन इंडिया की दिशा में एक बड़ा कदम है, क्योंकि इससे भारत न सिर्फ दुनिया की टॉप ड्रोन टेक्नोलॉजी को अपने यहां ला सकेगा, बल्कि भविष्य में पूरी तरह घरेलू निर्माण भी संभव होगा। HAL और ELCOM के साथ पार्टनरशिप इसी प्लान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हेरॉन MK-II एक MALE (Medium Altitude Long Endurance) UAV है, जो 45 घंटे तक उड़ सकता है। 35,000 फीट की सर्विस सीलिंग और 150 knots की स्पीड इसे बेहद उपयोगी बनाते हैं। भारत के लिए यह इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि LAC पर चीन के खिलाफ लगातार निगरानी की ज़रूरत बढ़ गई है। साथ ही पाकिस्तान सीमा पर भी हेरॉन की निगरानी क्षमता कई बार काफी असरदार साबित हुई है।
IAI ने साफ कहा कि वे भारत में लोकल प्रोडक्शन के लिए पूरी तरह तैयार हैं। MALE UAV प्रोजेक्ट्स में 60% इंडिजिनस कंटेंट का नियम है, और इज़राइल की कंपनियाँ इस लक्ष्य को पूरा करने पर काम कर रही हैं। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में भारत सिर्फ हेरॉन ड्रोन खरीदेगा नहीं, बल्कि इन्हें खुद बनाएगा भी।
HAL–ELCOM–IAI की प्रस्तावित पार्टनरशिप यह साबित करती है कि डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में भारत अब आयातक नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर निर्माता बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत के मौजूदा हेरॉन बेड़े को अपग्रेड करने वाला प्रोजेक्ट चीता भी इसी दिशा में बड़ा कदम है।