एडल्टरी को फिर माना जाएगा क्राइम और लापरवाही से मौतों की सजा बढ़ाई जाएगी, संसदीय पैनल ने दिए संकेत

संसदीय पैनल, आईपीसी, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, इंडियन एविडेंस एक्स को क्रमश: भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए तीन विधेयकों का अध्ययन कर रहा है।

Government to criminalise Adultery again: पार्लियामेंट पैनल केंद्र सरकार से एडल्टरी को फिर से अपराधीकरण की सिफारिश कर सकता है। एडल्टरी लॉ पुरुषों, महिलाओं या ट्रांसजेंडर्स के बीच गैर सहमति से यौन संबंधों को आपराधिक बनाने की रिपोर्ट पेश कर सकता है। संसदीय पैनल, आईपीसी, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, इंडियन एविडेंस एक्स को क्रमश: भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए तीन विधेयकों का अध्ययन कर रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्री ने तीनों विधेयकों को संसदीय पैनल को भेजा

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में तीनों विधेयकों को पेश किया था। इन विधेयकों को गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। संसदीय पैनल का अध्यक्ष बीजेपी सांसद बृजलाल हैं। तीनों विधेयकों का अध्ययन कर पैनल को तीन महीने में रिपोर्ट देनी थी। अगस्त में पैनल के पास तीनों विधेयकों को भेजा गया था। हालांकि, शुक्रवार को हुई पैनल की मीटिंग में विधेयकों की रिपोर्ट को अपनाया नहीं गया। विपक्षी सदस्यों ने तीन महीने का विस्तार मांगा है। अगली मीटिंग 6 नवम्बर को निर्धारित है।

2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने कहा था कि एडल्टरी क्राइम नहीं हो सकता है। हालांकि, तलाक के लिए एक नागरिक अपराध का आधार हो सकता है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने उस 163 साल पुराने औपनिवेशिक युग के कानून को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि पत्नी का मालिक पति होता है। कानून में तब कहा गया था कि एक पुरुष जिसने एक विवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाया और उसके पति की सहमति के बिना किया गया यह काम उसके दोषी पाए जाने पर पांच साल की सजा हो सकती है। महिला को सज़ा नहीं होगी। हालांकि, पैनल अब यह सिफारिश कर सकता है कि एडल्टरी लॉ में जेंडर न्यूट्रल प्रावधान किया जाए यानी उल्लंघन करने वाला पुरुष हो या स्त्री, या थर्ड जेंडर, सबको इस कानून का सामना करना पड़ेगा।

धारा 377 पर भी नया प्रावधान जोड़ा जा सकता

समिति ने कथित तौर पर धारा 377 पर भी चर्चा की। धारा 377 एक ब्रिटिश युग का कानून है जिसमें समलैंगिकता को अपराध माना जाता रहा है। पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। हालांकि, अब संसदीय पैनल 377 और धारा 497 को फिर से लागू करने की सिफारिश कर सकता है।

लापरवाही से हुई मौतों में सजा बढ़ेगी

पैनल ने अन्य सिफारिशें जो करने की पहल की है उसमें लापरवाही के कारण होने वाली मौतों के लिए छह माह की सजा को बढ़ाकर पांच साल करने और अनाधिकृत विरोध प्रदर्शनों के लिए सजा को दो साल से घटाकर 12 महीने करना है।

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