बंगाल में हिंदुओं पर हो रहा अत्याचार; इसे दिखाने से भी डर रही मीडिया: फिलिस चेस्लर

लेखक फिलिस लिखते हैं, मुस्लिम अवैध रूप से सीमा पार कर रहे हैं और देश में रहने वाली आबादी को हिंसक रूप से विस्थापित कर रहे हैं। स्थानीय लोग उनसे भयभीत हैं। पुलिस कभी कभार ही ऐसे मामलों में मदद करती है। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 28, 2020 12:37 PM IST / Updated: Feb 28 2020, 06:19 PM IST

वॉशिंगटन. अमेरिकन वेबसाइट फॉक्स न्यूज में प. बंगाल में हिंदुओं की स्थिति को लेकर लेखक फिलिस चेस्लर ने एक लेख लिखा है। इस लेख की काफी चर्चा हो रही है। इसमें उन्होंने बताया कि किस तरह से प बंगाल में रहने वाले हिंदुओं, खासकर उन ग्रामीण इलाकों में जो बांग्लादेश की सीमा से मिलते हैं, अवैध तौर पर भारत में आने वाले मुस्लिम उनका अत्याचार कर रहे हैं। फिलिस चेस्लर ने यह ऑर्टिकल हिंदू संहति के संस्थापक तपन घोष के इंटरव्यू के आधार पर लिखा है।

फिलिस लिखते हैं, "मुस्लिम अवैध रूप से सीमा पार कर रहे हैं और देश में रहने वाली आबादी को हिंसक रूप से विस्थापित कर रहे हैं। स्थानीय लोग उनसे भयभीत हैं। पुलिस कभी कभार ही ऐसे मामलों में मदद करती है। वहीं, सरकार और मीडिया तो बिल्कुल नहीं। दोनों अपराधियों और आतंकवादियों से डरे हुए हैं, जो इन अप्रवासियों का फायदा उठा रहे हैं।
 
मैं ये बात यूरोप या उत्तरी अमेरिका की नहीं कर रहा हूं। मैं उन मुसलमानों की बात कर रहा हूं, जो भारत के पश्चिम बंगाल क्षेत्र में अवैध तरीके से आ रहे हैं। ये बांग्लादेशी आप्रवासी आपराधिक गतिविधियों (हथियार, ड्रग्स और वेश्यावृति ) के लिए एक रास्ता बना रहे हैं, जो वैश्विक जिहाद को भी बढ़ावा देता है।

आप यह सब वेस्टर्न की मैनस्ट्रीम मीडिया यहां तक की भारत की मीडिया में भी नहीं पढ़ेंगे। मीडिया ने इस मामले में अपनी आंखें बंद कर ली हैं। क्योंकि वे इस डर में हैं कि उन्हें भी राजनीतिक रूप से गलत या इस्लामोफोबिक कहा जाने लगेगा। इसके अलावा वे इसे उजागर करने के बाद होने वाले अंजामों से भी डरते हैं।

इस्लामिक चरमपंथ की निंदा करने वाले एक लेख के चलते इस्लामिक उग्रवादियों ने जब कोलकाता के एक बड़े अखबार 'द स्टेट्समैन' के दफ्तर में तोड़फोड़ की तो भारतीय मीडिया चुप रहा।

इसके बाद भी अखबार के संपादक और प्रकाशक को मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जबकि उपद्रवियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
 
तपन घोष, जिनसे मैंने हाल ही में न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में मुलाकात की। वे यहां भारत में हिंदुओं के उत्पीड़न पर बात करने के लिए आए थे। 2008 में घोष ने हिंदू संहति की स्थापना की थी। जो बंगाल और बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाती है।

घोष ने इंटरव्यू में बताया, भारत में मुस्लिम द्वारा हिंदुओं का उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। 800 सालों में अवधि में, लाखों हिंदुओं को मुसलमानों द्वारा काफिर कहकर मार दिया गया या उनका धर्म परिवर्तन कराया गया।
 
1946-1947 में, जब ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया गया था, तो मुस्लिमों ने कलकत्ता में हजारों हिंदुओं का नरसंहार किया। 1950 और 1960 के दशक के दौरान हिंदू-विरोधी दंगे और नरसंहार जारी रहे, लेकिन जब 1972 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग हुआ तो हिंदुओं के लिए हालात और ज्यादा खराब हो गए।
 
बांग्लादेश को अलग करने के लिए जो आंदोलन हुआ, उसमें हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार और मुसलमानों के समर्थकों में वृद्धि हुई। उस वक्त हिंदुओं को पूर्वी पाकिस्तान के इस्लामीकरण में बाधा माना जाता था।

मार्च 1971 में, पाकिस्तान की सरकार और बांग्लादेश में उसके समर्थकों ने आजादी की आवाज को कुलचने के लिए "ऑपरेशन सर्चलाइट" शुरू किया। इसमें बांग्लादेशी सरकार ने लोगों के मरने की संख्या 3 लाख बताई, हालांकि लगभग 30 लाख हिंदुओं का कोई अता पता नहीं चला और उन्हें मृत मान लिया गया। अमेरिका वॉशिंगटन और भारत में बैठे अधिकारियों ने इसे नरसंहार करार दिया।  

घोष के अनुसार, हाल ही में हिंदू त्योहारों के दौरान मुस्लिम दंगे, मंदिरों को नष्ट करने, देवताओं को अपमानित करने और बड़े पैमाने पर गाय की हत्या करने की घटनाओं में तेजी आई है। 

घोष चाहते हैं कि भारत सरकार बांग्लादेश से आने वाले अवैध मुस्लिमों के देश में आने पर रोक लगाए। साथ ही देश में आ चुके अवैध लोगों को वापस भेजा जाए। इसके अलावा मुस्लिम अपराधियों और आतंकवादियों को गिरफ्तार किया जाए। साथ ही उन्होंने मीडिया को भी चैलेंज दिया कि वे इसे दिखाएं।

घोष आशावादी नहीं हैं। बंगाल में ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर सऊदी-वित्त पोषित मदरसों की स्थापना हो रही है। यह धार्मिक अतिवाद को बढ़ावा दे रही है। शरिया कानूनों को लागू करना इन गांवों में काफी प्रचलित है।

लेखक के बारे में
इस लेख के लेखक फिलिस चेस्लर (पीएचडी) साइकोलॉजी की प्रोफेसर हैं। वे 'वूमन इनह्यूमैनिटी टू वूमन' और द न्यू एंटी सेमीटिज्म' समेत 13 किताबें लिख चुकी हैं। उन्होंने  बड़े पैमाने पर इस्लामिक लिंगभेद और ऑनर किलिंग के बारे में लिखा है। वे काबुल में भी रह चुकी हैं। उनकी वेबसाइट www.phyllis-chesler.com है।"

(नोटः लेखक के निजी विचार हैं। इस विचार से Asianet news का कोई वास्ता नहीं है...)

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