शहीदों पर राजनीति कर रही कांग्रेस 2009 से 2014 तक राष्ट्रीय सैन्य स्मारक की मंजूरी तक नहीं दे सकी थी

वर्तमान मोदी सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री और तत्कालीन राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने 4 अगस्त 2009 को तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी और रक्षा राज्य मंत्री एम.एम पल्लम राजू को दिल्ली में राष्ट्रीय सैन्य स्मारक बनाने के लिए पत्र भेजे थे। लेकिन इसके बाद भी मनमोहन सरकार अपने पूरे कार्यकाल में इसे कैबिनेट से मंजूर तक नहीं करवा सकी थी। 

Vikash Shukla | Published : Jan 21, 2022 12:14 PM IST / Updated: Jan 21 2022, 05:56 PM IST

नई दिल्ली। अमर जवान ज्योति (Amar Jawan Jyoti) की लौ को राष्ट्रीय शहीद स्मारक में मिलाने को लेकर देश में चर्चा छिड़ी है। कांग्रेस और विपक्ष के नेता शहीदों की स्मृति के नाम पर सरकार को घेर रहे हैं, लेकिन शहीदों के स्मारक के मामले में कांग्रेस की रुचि जरा भी नहीं रही। यही वजह रही कि 2009 से 2014 के बीच वे शहीद स्मारक की योजना को मंजूर तक नहीं कर सके। 

सैन्य स्मारक के लिए सांसद राजीव चंद्रशेखर ने 2009 में लिखा था पत्र 
कांग्रेस सरकार शहीदों के प्रति कितनी संकुचित सोच के साथ धीमी गति से काम कर रही थी, इसकी बानगी 2009 के पत्रों में मिलती है। मोदी सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री और तत्कालीन राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने 4 अगस्त 2009 को तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी और रक्षा राज्य मंत्री एम.एम पल्लम राजू को दिल्ली में राष्ट्रीय सैन्य स्मारक बनाने के लिए पत्र भेजे थे। इन पत्रों में चंद्रशेखर ने तत्कालीन रक्षा मंत्री से दिल्ली में राष्ट्रीय शहीद स्मारक बनाने की मांग की थी। उन्होंने लिखा था कि अमेरिका समेत कई देशों में सेनाओं के लिए आर्थिक मदद, कैरियर काउंसलिंग, हाउसिंग असिस्टेंस, रीक्रिएशनल थेरेपी जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें मदद दी जाती है। 

लेआउट और डिजाइन के साथ हर मदद देने का वादा, पर मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा
राज्यसभा सांसद ने लिखा था - हमारे सैनिक भी देश के अंदर और बाहर आतंकी हमलों से जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति के बाद भी भी वे न केवल हमारे जीवन और लोकतंत्र की सुरक्षा करते हैं, बल्कि नेशन फर्स्ट का आदर्श भी पेश करते हैं। उन्होंने पत्र में इस बात का उल्लेख किया था कि देश में राष्ट्रीय सैन्य समारक को अंतिम रूप देने में हो रही देरी सभी नागरिकों और पूरे राष्ट्र के लिए शर्मिंदगी है। उन्होंने जमीन की समस्या पर ध्यान खींचते हुए सुझाव दिया था कि इस स्मारक को यमुना के तट पर 50 - 60 एकड़ में बनाया जा सकता है। यही नहीं, राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने इसके लिए कुछ डिजाइन और लेआउट भी तत्कालीन मनमोहन सरकार को भेजे थे। उन्होंने कहा था कि मैं इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए हर आवश्यक मदद देने को तैयार हूं और जरूरत पड़ने पर उपलबध हूं। इसके बाद भी मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। 


 

सिर्फ पत्र मिलते रहे, धरातल पर कुछ नहीं हुआ 
राजीव चंद्रशेखर के इस पत्र का जवाब तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने दो दिन बाद यानी 6 अगस्त 2009 को दिया। उन्होंने बताया कि दिल्ली में शहीद स्मारक पर सरकार विचार कर रही है। अगले माह 9 सितंबर 2009 को फिर एक पत्र एंटनी की तरफ से राजीव चंद्रशेखर को भेजा गया। इसमें बताया गया था कि सैन्य स्मारक के निर्माण के लिए शहरी विकास मंत्रालय से निर्माण के लिए परामर्श मांगा गया है, क्योंकि उसे ही परियोजना के लिए भूमि आवंटित करनी है।
उन्होंने यह भी बताया कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए सरकार ने मंत्रियों के एक समूह का गठन किया है। शहरी विकास मंत्रालय मंत्रियों के समूह की सहायता करेगा। मंत्रियों के समूह द्वारा सिफारिशों को अंतिम रूप देने के बाद आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। 

2015 में मोदी कैबिनेट से मंजूरी, 2019 में शुरू हुआ 
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को 2015 में मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिली। इंडिया गेट सी-हेक्सागन पर 40 एकड़ जमीन पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बना। यह देश का इकलौता ऐसा स्मारक है, जहां आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के सैनिकों के नाम एक छत के नीचे हैं। फरवरी 2019 में 176 करोड़ की लागत से बने इस स्मारक का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।

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