मुंडका अग्निकांडः पढ़ें 27 मौत के सबसे बड़े गुनहगार कौन-कौन, ना फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट और ना...

मुंडका अग्निकांड ने सबको झकझोर दिया है. जिन 27 लोगों की जानें गई हैं, उनका कोई कुसूर नहीं था. इमारत बनाने में लापरवाही और नियमों को ताख पर रखने के कारण यह बड़ा हादसा हुआ. ना ही फायर सेफ्टी प्लान था और ना ही एमसीडी का प्रमाण पत्र. 

नई दिल्लीः पश्चिमी दिल्ली के मुंडका इलाके में चार मंजिला इमारत में लगी आग (Mundka Fire) ने 27 जिंदगियां लील ली हैं. जिस इमारत में आग लगी, उसे ना तो एमसीडी (MCD) का भवन प्रमाण पत्र मिला था, ना ही फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट ही मिला था. बड़ी बात ये है कि इमारत बनाने में जिन सामानों का इस्तेमाल किया गया था, वह अत्यधिक ज्वलनशील थी. इसी तरह की चुनिंदा गलतियों के कारण ही आज दिल्ली सिसक रही है. जरा सी लापरवाही ने 27 लोगों को जिंदा जला दिया. जिस एरिया में वह इमारत है, उसे लाल डोरा एरिया कहते हैं. कमाल की बात तो यह है कि यहां कॉमर्शियल बिल्डिंग बनाने की इजाजत ही नहीं है. 

इमारत में कमियां ही कमियां
मुंडका की जिस इमारत में आग लगी है, वहां से निकलने का एक ही रास्ता था. आग बुझाने में दमकलकर्मियों को भी इसी कारण दिक्कत हुई. इमारत में इसके अलावा भी कई कमियां थीं. फायर ब्रिगेड से मिली जानकारी के अनुसार इमारत में फायर सेफ्टी के पुख्ता इंतजाम नहीं थे. अंदर जाने के लिए एक छोटी गली में छोटा सा एक मात्र गेट था. दमकल विभाग की तरफ से इस इमारत के पास एनओसी (NOC) नहीं थी. भवन बनाने में जिस मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया था, वह अत्यधिक ज्वलनशील थे. यहीं नहीं एमसीडी से भी इमारत को एनओसी नहीं मिला था. 

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लाल डोरा एरिया में कॉमर्शियल बिल्डिंग की इजाजत नहीं
एमसीडी के अधिकारियों ने बताया कि लाल डोरा एरिया में कॉमर्शियल बिल्डिंग बनाने की इजाजत नहीं है. इस कारण एमसीडी से इस बिल्डिंग को एनओसी नहीं मिला हुआ था. इसके बावजूद मेन रोड पर यह गैरकानूनी इमारत 15 सालों से खड़ी थी. आसपास आम लोगों के घर भी मौजूद हैं. इस तरह की इमारत की शिकायत भी अभी तक किसी ने नहीं की थी. बगल से ही बिजली का तार गुजरा हुआ है. बताया जा रहा है कि जेनरेटर फटने से शुक्रवार शाम ही आग लगी थी. लोग उससे निकल नहीं पाए और जिंदा जल गए. 

लोगों ने बताया आंखों देखा हाल
लोगों ने दर्द भरी जुबान से इस घटना का जिक्र किया. बताया कि इमारत की चारों तरफ से चीख पुकार की आवाज आ रही थी. लोग खिड़कियों से कूद-कूदकर जान बचाने में लगे हुए थे. आग की लपटों के बुज जाने के बावजूद अंदर इतनी तपिश थी कि अंदर रुकना भी जोखिम भरा था. चारों तरफ राख ही राख था. दमकल के बाहर से पानी डालने और अंदर से आग के कारण दीवारों में दरारें आ गई थी. खौलता हुआ पानी टपक रहा था. कई घंटों तक धधकती आग दिखाई देती रही. अब तो हाल यह है कि कौन किसकती लाश है, समझ पाना मुश्किल हो रहा है. लोग अपने परिजनों को ढूंढ रहे हैं. 

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