भगवान अयप्पा मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने की अनुमति को लेकर अब सभी निगाहें केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार पर टिकीं हैं।
तिरुवनंतपुरम. भगवान अयप्पा मंदिर की 17 नवंबर से शुरू होने जा रही तीर्थयात्रा से पहले पूजा-अर्चना के लिए 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने की अनुमति को लेकर अब सभी निगाहें केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार पर टिकी हैं। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अपने पिछले फैसले की समीक्षा करने की मांग करने वाली याचिकाओं को लंबित रखने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि सरकार सबरीमला पर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर और स्पष्टता के लिए कानूनी विशेषज्ञों की सलाह लेगी लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि सभी उम्रवर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाला पिछला आदेश अभी कायम है।
कोर्ट के आदेश को स्वीकार करने के लिए तैयार
सबरीमला मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने के शीर्ष अदालत के फैसले की पृष्ठभूमि में अपनी सरकार का रूख सामने रखने के लिए मीडिया के सामने आये विजयन ने कहा कि राज्य सरकार अदालत के आदेश को लागू करने के लिए सदैव तैयार है, चाहे जो हो। उच्चतम न्यायालय ने आज के अपने फैसले में कहा कि धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है। इसके साथ ही न्यायालय ने सभी पुनर्विचार याचिकाओं को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया। जब मुख्यमंत्री से पूछा गया कि क्या महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने के लिए सुरक्षा प्रदान की जाएगी तो उन्होंने कहा कि आदेश में कुछ संदेहों और भ्रमों को दूर करने के बाद ही ऐसी बातें तय की जा सकती हैं। तीर्थयात्रा शुरू होने से पहले विजयन ने कहा, ‘‘ ऐसा जान पड़ता है कि 28 सितंबर, 2018 का फैसला अब भी बना हुआ है। लेकिन आज के आदेश से कुछ भ्रम तो जरूर हैं।’’
विपक्ष ने करे राजनीतिक बखेड़ा
राज्य के देवस्वओम मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन ने कहा कि फैसले का व्यापक अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं विपक्ष से पिछले साल की तरह मुद्दे पर कोई राजनीतिक बखेड़ा खड़ा न करने का अनुरोध करता हूं।’ यह पूछे जाने पर कि क्या युवा महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी, उन्होंने कहा, ‘‘यह समय इस बारे में टिप्पणी करने का नहीं है।’’ केरल में पिछले साल शीर्ष अदालत के आदेश को लागू करने के माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के फैसले को लेकर श्रद्धालुओं और दक्षिणपंथी संगठनों के विरोध प्रदर्शन से माहौल गर्मा गया था। सबरीमला मंदिर के मुख्य पुजारी कंडारारू राजीवारू ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सबरीमला मामले को सात सदस्यीय पीठ के पास भेजने के उच्चतम न्यायालय फैसले से आस जगी है। उन्होंने कहा, ‘‘ इससे श्रद्धालुओं की मान्यता को बल मिलेगा।’’
सरकार पीठ के आदेश का करे इंतजार
विपक्षी भाजपा और कांग्रेस चाहती है कि सरकार संयम बरते और 10-50 साल उम्र वर्ग की महिलाओं को मंदिर में नहीं जाने दे क्योंकि ऐसा करने से श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत होंगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश अध्यक्ष कुम्मानम राजशेखरन ने कहा, ‘‘यदि पुलिस किसी महिला को मंदिर में प्रवेश कराने में मदद करती है तो उसके बड़े परिणाम होंगे क्योंकि इससे श्रद्धालुओं के विश्वास पर असर पड़ता है। सरकार को संयम दिखाना चाहिए और बड़ी पीठ के फैसले का इंतजार करनी चाहिए।’’
मंत्री ने बताया- श्रद्धालुओं की जीत
उन्होंने कहा कि अगर प्रतिबंधित आयु वर्ग की स्त्रियां पूजा अर्चना का प्रयास करती हैं तो सरकार को उन्हें रोकने की कोशिश करनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने फैसले को ‘‘श्रद्धालुओं की जीत’’ करार देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने सबरीमला दर्शन, परंपरा और वहां प्रचलित विभिन्न पूजा पद्धतियों को समझा है।
अदालत ने पूर्व फैसले पर नहीं लगाई रोक
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि पार्टी के पोलित ब्यूरो की 16 और 17 नवंबर को होने वाली बैठक में सबरीमला और हालिया फैसले पर विस्तृत चर्चा होगी। उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि शीर्ष अदालत ने सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पिछले साल 28 सितंबर के अपने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, इसलिए यह निर्णय जारी रहना चाहिए।’’ येचुरी ने कोझिकोड में कहा, ‘‘जो मैं समझ सकता हूं, अदालत ने पूर्व के फैसले पर रोक नहीं लगाई है। यदि उन्होंने रोक नहीं लगाई है तो फैसला कायम है। हमें इस पर और स्पष्टता की आवश्यकता है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या माकपा ने मुद्दे पर अपना रुख बदल लिया है, मार्क्सवादी नेता ने कहा, ‘‘हम कह चुके हैं कि उच्चतम न्यायालय जो निर्णय देगा, हम उसे लागू करेंगे।’’ एलडीएफ के संयोजक ए विजयराघवन ने कहा कि यूडीएफ ने पूर्व में शीर्ष अदालत के 28 सितंबर के फैसले से लाभ उठाने की कोशिश की थी।
शांति कायम रखना प्राथमिक उद्देश्य
सरकार का प्राथमिक उद्देश्य शांति कायम रखने का है। उन्होंने कहा कि जब अयोध्या मुद्दे पर फैसला आया तब लोगों ने शांतिपूर्ण प्रतिक्रिया दी। विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए राज्य की वाम सरकार से रजस्वला आयु वर्ग की स्त्रियों को सुरक्षा दायरे में भगवान अयप्पा के मंदिर में ले जाकर ‘किसी प्रकार का मुद्दा’ खड़ा नहीं करने को कहा। पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि नए फैसले से श्रद्धालुओं की आस्था की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
इस मामले में एक याचिकाकर्ता एवं पंडलाम राजघराने के सदस्य शशिकुमार वर्मा ने कहा कि अदालत ने श्रद्धालुओं की भावनाओं को समझा और पुनर्विचार याचिकाओं को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया। कनकदुर्गा के साथ दो जनवरी को इस तीर्थस्थल पर पूजा करने वाली बिन्दु ने कहा कि फैसले का सकारात्मक पक्ष यह है कि अदालत ने 28 सितंबर के निर्णय पर रोक नहीं लगाई है। उन्होंने मीडिया से कहा कि अयोध्या पर न्यायालय के फैसले का स्वागत करने वाले संघ परिवार को इस फैसले का भी स्वागत करना चाहिए।
रोक नहीं तो जाऊंगी दोबारा
कनकदुर्गा और बिंदु ने दो जनवरी को मंदिर में पहुंचकर पूजा की थी और इतिहास रचा था। कनकदुर्गा ने आरोप लगाया कि मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई रोक नहीं है तो मैं वहां दोबारा जाना चाहूंगी।’’ माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य एवं महिला कार्यकर्ता बृंदा करात ने कहा कि न्यायालय का पूर्व का फैसला बहुत स्पष्ट था। अब इसे बड़ी पीठ को भेजा जाना ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ है। पिछले साल नंवबर में मंदिर जाने की असफल कोशिश करने वाली महिला कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कहा कि सात न्यायाधीशों की पीठ के फैसला करने तक महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश मिलना चाहिए। उन्होंने संकल्प लिया कि इस सप्ताह के अंत में मंदिर के खुलने पर वह वहां पूजा-अर्चना करेंगी। महिला कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने पूछा कि पुनर्विचार याचिका बड़ी पीठ को क्यों भेजी गई? महिला सशक्तीकरण समूह ‘सहेली’ से जुड़ीं वाणी सुब्रमण्यम ने मामला बड़ी पीठ को भेजे जाने को ‘‘अनावश्यक’’ करार दिया। भारतीय सामजिक जागृतिक संगठन की छवि मेथी ने कहा कि किसी अन्य के मुकाबले न्यायिक प्रणाली से अधिक सवाल किए जाने की जरूरत है। सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वरन ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ‘‘यह आस्था के पक्ष में फैसला है।’’ आस्था के मामले में किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।