SC का प्रमोशन में आरक्षण के मानकों पर हस्तक्षेप से इंकार, कहा संविधान पीठ के बाद नहीं बना सकते नया पैमाना

अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के क्रीमी लेयर के बारे में 2018 के जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम संविधान पीठ के बनाए मानकों का पैमाना नहीं तय कर सकते हैं।

नई दिल्ली। अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के क्रीमी लेयर के बारे में 2018 के जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस दौरान आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले मात्रात्मक डाटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। उस डेटा का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र यह तय करे कि डेटा का मूल्यांकन एक तय अवधि में ही हो और यह अवधि क्या होगी यह केंद्र सरकार तय करे। कोर्ट ने कहा कि कैडर आधारित रिक्तियों के आधार पर आरक्षण पर डेटा एकत्र किया जाना चाहिए।  राज्यों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समीक्षा होनी चाहिए और केंद्र सरकार समीक्षा की अवधि निर्धारित करेगी।

क्रीमी लेयर के आरक्षण को चुनौती का मामला
बता दें कि सितंबर, 2021 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणियों के आरक्षण से क्रीमी लेयर को हटाने के 2018 के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। एक याचिका पर कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि क्रीमी लेयर कॉन्सेप्ट एसी/एसटी कैटिगरीज के आरक्षण में लागू नहीं किया जा सकता है। बता दें कि पिछले साल 26 अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर फैसला सुनाया। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, एडिशनल सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों की ओर से पेश हुए अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुनकर फैसला सुरक्षित रखा था।

यह है मामला
जरनैल सिंह केस में पांच जजों की बेंच ने 2018 में कहा था कि संवैधानिक अदालतें जब आरक्षण के सिद्धांत लागू करेंगी तो समानता के सिद्धांत के आधार पर आरक्षण पाने वाले समूह से क्रीमी लेयर को बाहर करने का मामला उसके न्याय क्षेत्र में होगा। आरक्षण पाने वाले वंचित समुदायों में से सिर्फ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ही क्रीमी लेयर को हटाए जाने का प्रावधान है। 2017 में जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST वर्ग के आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को क्रीमी लेयर की प्रयोज्यता(applicability) को बरकरार रखा था। क्रीमी लेयर के समर्थकों का तर्क है कि यदि SC/ST आरक्षण में इस अवधारणा को सही ढंग से लागू किया जाता है, तो SC/ST को जो अधिकार मिले हैं, उन्हें छुए बिना समुदाय के अंदर जो आर्थिक रूप से मज़बूत वर्ग है, उसे अलग किया जा सकेगा। इसका सबसे प्रमुख लाभ यह होगा कि SC/ST आरक्षण से मिलने वाला फायदा समुदाय के उन लोगों तक भी पहुंच पाएगा जो अब तक इससे वंचित हैं।

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यह भी जानें
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के मुद्दे को फिर से खोलने से मना करते हुए कहा था कि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि यह सत्य है कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी एससी-एसटी समुदाय के लोगों को अगड़े वर्गों के समान काम्पटीशन के स्तर पर नहीं लाया गया है। देश भर में आरक्षित पदों पर पदोन्नति 2017 से अटकी हुई है।

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