क्या है नार्को टेस्ट? कब, क्यों और कैसे किया जाता है, आखिर क्यों इसमें सच उगल देता है बड़े से बड़ा अपराधी

श्रद्धा वालकर मर्डर केस में सोमवार यानी 21 नवंबर को आफताब का नार्को टेस्ट (Narco Test) भी किया जा सकता है। पुलिस ने पहले से ही इसके लिए 40 सवालों की लिस्ट तैयार कर ली है। आखिर क्या है नार्को टेस्ट, कैसे और कब होता है, क्यों इस टेस्ट में सच उगल देते हैं अपराधी? आइए जानते हैं।  

What is Narco Test: श्रद्धा वालकर हत्याकांड में पुलिस को अब भी आफताब के खिलाफ ऐसे पुख्ता सबूतों की तलाश है, जो उसे कोर्ट में कातिल साबित कर सकें। बता दें कि पुलिस के हाथ अब तक वो हथियार जिससे श्रद्धा की हत्या की गई और कटा हुआ सिर नहीं मिल पाया है। हालांकि दिल्ली पुलिस लगातार इनकी तलाश में जुटी है। इसी बीच, खबर है कि सोमवार यानी 21 नवंबर को आफताब का नार्को टेस्ट (Narco Test) भी किया जा सकता है। पुलिस ने पहले से ही इसके लिए 40 सवालों की लिस्ट तैयार कर ली है। आखिर क्या है नार्को टेस्ट, कैसे और कब होता है, क्यों इस टेस्ट में सच उगल देते हैं अपराधी? आइए जानते हैं।  

क्या होता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट (Narco Test) किसी खूंखार अपराधी से सच उगलवाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया है। इसमें अपराधी को 'ट्रुथ सीरम' नाम से आने वाली साइकोएक्टिव दवा इंजेक्शन के रूप में दी जाती है। इसमें सोडियम पेंटोथोल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल जैसी दवाएं होती हैं। ये दवा खून में पहुंचते ही वो शख्स को अर्धचेतना में पहुंच देती है। इसके जरिए किसी के भी नर्वस सिस्टम में घुसकर उसकी हिचक कम कर दी जाती है, जिसके बाद वो शख्स स्वाभविक रूप से सच बोल देता है।

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कब होता है नार्को टेस्ट?
जब अपराधी के खिलाफ जांच एजेंसियों को पर्याप्त सबूत नहीं मिलते तो उस स्थिति में नार्को टेस्ट की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, उस स्थिति में भी इसे कराया जाता है, जब सबूत अपराधी को लेकर साफ तस्वीर बयां नहीं कर पाते। ऐसे में कोर्ट इस बात की अनुमति देता है कि नार्को टेस्ट होगा या नहीं। इसके बाद किसी सरकारी अस्पताल में यह टेस्ट किया जाता है। 

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कौन करता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच एजेंसियों के अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिकों की टीम मिलकर करती है। इस दौरान अर्धचेतन अवस्था में गए शख्स से सवाल-जवाब किए जाते हैं। चूंकि केमिकल की वजह से इंसान की तर्क शक्ति और हिचक कम हो जाती है, इसलिए वो हर एक घटना का सच उगल देता है। बता दें कि इस खुलासे की वीडियो रिकार्डिंग भी की जाती है, ताकि उसे सबूत के तौर पर पेश किया जा सके।  

नार्को टेस्ट में कैसे पकड़ा जाता है अपराधी?
क्राइम के केसों में अपराधी कई बार झूठी कहानियां गढ़ पुलिस और जांच एजेंसियों को लंबे समय तक गुमराह करते रहते हैं। हालांकि, ऐसा करने के लिए उन्हें एक के बाद एक कई झूठ बोलने पड़ते हैं। लेकिन नार्को टेस्ट में जब दिमाग पूरी तरह सुस्त पड़ जाता है, तो आदमी के दिमाग को वो हिस्सा जो तर्क को समझकर झूठ बोलता है, वो भी शिथिल होता है। ऐसे में वो अक्सर सच बोलने लगता है। इस तरह फॉरेंसिक और मनोवैज्ञानिकों की टीम उनके उस झूठ को फौरन पकड़ लेती है। 

नार्को से पहले क्यों जरूरी होते हैं कुछ टेस्ट? 
बता दें कि नार्को टेस्ट से पहले किसी भी शख्स का फिजिकल टेस्ट कराना जरूरी होता है। इसमें ये चेक किया जाता है कि अपराधी किसी गंभीर बीमारी से तो नहीं जूझ रहा। इसके साथ ही वह दिमागी रूप से कमजोर तो नहीं है। इस टेस्ट में उसकी सेहत, उम्र और जेंडर को ध्यान में रखते हुए ही नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती हैं। 

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किन हालातों में फेल हो जाता है नार्को टेस्ट?
जिसका नार्को टेस्ट होना है, कई बार उसे जरूरत से ज्यादा डोज दे दी जाती है। इन हालातों में यह टेस्ट फेल भी हो सकता है। दरअसल, दवाइयों की ओवरडोज के चलते व्यक्ति लंबी बेहोशी में चला जाता है। वो इस कंडीशन में भी नहीं रह पाता कि पूछे गए सवालों को ठीक तरह से सुनकर उन पर रिएक्ट कर सके। यही वजह है कि इस टेस्ट को डॉक्टर की निगरानी में ही करना पड़ता है। 

किन-किन मामलों में हुआ नार्को टेस्ट?
बता दें कि अब तक कई मामलों में नार्को टेस्ट हो चुका है। इनमें गुजरात दंगे, अब्दुल करीम तेलगी स्टाम्प पेपर घोटाला, 2007 के निठारी हत्याकांड और आतंकी अजमल कसाब पर नार्को टेस्ट का इस्तेमाल किया जा चुका है।  

नार्को टेस्ट के लिए क्या है कानून? 
कानून के मुताबिक, जिस शख्स का नार्को टेस्ट किया जाना है, उसकी सहमति बेहद जरूरी होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिना सहमति के यह टेस्ट किसी की निजी स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं कराए जा सकते। 

नार्को टेस्ट में क्यों सच बोलते हैं अपराधी? 
सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगने के बाद व्यक्ति हिप्नोटिक (सम्मोहक) अवस्था में चला जाता है। ऐसे में उसका संकोच पूरी तरह खत्म हो जाता है, जिससे इस बात की संभावना काफी बढ़ जाती है कि वो ज्यादातर सच ही बोलेगा। आमतौर पर सचेत अवस्था में व्यक्ति सच नहीं बोलता और बातों को घुमा-फिरा देता है। लेकिन दवाओं के प्रभाव से जब वो अर्धचेतन अवस्था में होता है, तो सब सच उगल देता है। 

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