श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देखा था 'एक विधान- एक संविधान' का सपना, 70 साल बाद अब हुआ पूरा

आज से 7 दशक पहले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को एक करने के लिए एक सपना देखा था। मुखर्जी ने वर्ष 1953 में दो विधान, दो निशान के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। लखनपुर में परमिट प्रणाली के विरोध में  मुखर्जी ने विशाल मार्च निकाला था।

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटा दिया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था। अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश होंगे। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प पेश किया। उन्होंने सदन को बताया कि राष्ट्रपति ने पहले ही इसकी मंजूरी दे दी है। लेकिन क्या आपको पता है सबसे पहले धारा 370 हटाने की मांग किस नेता ने की थी। अगर नहीं जानते तो बता दें, जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी धारा 370 के मुखर विरोधी थे। वे हमेशा चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बना रहे। वहां अन्य राज्यों की तरह एक कानून लागू हो। 

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कौन थे मुखर्जी

श्यामा प्रसाद मुखर्जी  भारतीय जनसंघ के संस्थापक और इसके पहले अध्यक्ष थे। 23 जून 1953 को उनकी रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी। तब से ही बीजेपी इस दिन को "बलिदान दिवस" के रूप में मनाती है। डॉक्टर मुखर्जी  370 कानून के मुखर विरोधी रहे। वो हमेशा चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने। वहां अन्य राज्यों की तरह एक कानून लागू हो। मुखर्जी नेहरु मन्त्रीमंडल का हिस्सा रहे। उनका कहना था कि एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।

मात्र 33 साल उम्र में बन गए थे कुलपति

उनका जन्म 6 जुलाई को 1901 में कलकत्ता में हुआ था। पिता उस समय के जाने माने शिक्षाविद थे। उन्होंने अपना ग्रेजुएशन कलकत्ता यूनिवर्सिटी से किया। 1927 में बैरिस्टर बने। 33 साल की उम्र में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति बनाये गये। वे काँग्रेस पार्टी से जुड़कर विधानसभा पहुंचे और मतभेद के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उन्हें  प्रखर राष्ट्रवाद का प्रेणता माना जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री बनाया था। बहुत कम समय के लिये वे इस मंत्रीमंडल में मंत्री रहे। उन्होने नेहरू पर पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

 

7 दशक पहले देखा था सपना

आज से 7 दशक पहले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को एक करने के लिए एक सपना देखा था। मुखर्जी ने वर्ष 1953 में दो विधान, दो निशान के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। लखनपुर में परमिट प्रणाली के विरोध में  मुखर्जी ने विशाल मार्च निकाला था। उन्हें जम्मू में प्रवेश करने पर यहां की तत्कालीन सरकार ने रोका और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उन्हें कश्मीर में एक जगह पर 40 दिन तक जेल में कैदी बनाकर रखा गया।

ये भी पढ़ें...अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत नहीं, राष्ट्रपति ने पहले ही मंजूरी दी

बताया जाता है, कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत सुबह हो गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने दोपहर 1:00 बजे इसकी सूचना रेडियो के माध्यम से दी। उनका शव बंगाल पहुंचाने के लिए 7000 हजार रुपए का किराया भी नहीं दिया गया। जैसे तैसे करके पार्थिव शरीर जब बंगाल पहुंचा तो वहां के लोगों ने  जहर दिया, जहर दिया,शेख ने जहर दिया के नारे लगाना शुरू कर दिए। 

जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे 
भारतीय संविधान के आर्टिकल 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू कश्मीर में प्रवेश नहीं कर सकता। मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने विरोध करते हुए कहा - '' नेहरू जी ने ऐलान किया है कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भारत में पूर्ण विलय हो चुका है। लेकिन देखकर हैरानी होती है। इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता। मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है। भारतीय नागरिक देश के किसी भी हिस्से में जा सकता है। खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है।''

नेहरू मंत्रीमंडल में मंत्री रहे
बताया जाता है,  श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे। जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद उन्होंने जनसंघ बनाया। दिल्ली में चल रहे निकाय चुनाव के दौरान संसद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आरोप लगाया  कि काँग्रेस चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है। जिसका नेहरू ने काफ़ी विरोध किया। नेहरू को लगा था मुखर्जी ने वाइन और वुमन कहा है। जिसके बाद मुखर्जी ने नेहरू के विरोध का जबाव देते हुए कहा उन्होंने वुमन नहीं कहा है, आप रिकोर्ड उठा कर देख सकते हैं। जिसके बाद भरे सदन में नेहरू ने मुखर्जी से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी थी। मुखर्जी ने इतना कहा आपको माफी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं।  मेरा इतना कहना की सदन में कोई भी गलत बयानी नहीं करूंगा।

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