
Special Intensive Revision: देश में 21 साल बाद हो रहे विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) अभियान के दूसरे चरण में 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदाता सूची संशोधन का काम होना है। हालांकि, इनमें से 2 राज्य पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु ऐसे हैं, जिनमें 2026 में चुनाव होना है और यहां एसआईआर होगा, लेकिन असम एक ऐसा राज्य है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव के बावजूद इसे SIR में शामिल नहीं किया गया है। इसके पीछे आखिर क्या है वजह, आइए जानते हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के मुताबिक, असम के लिए नागरिकता नियम देश के बाकी हिस्सों से थोड़े अलग हैं। इसलिए असम में SIR के लिए अलग से संशोधन आदेश जारी किए जाएंगे और एक अलग SIR डेट का ऐलान किया जाएगा। बता दें कि बांग्लादेश की सीमा से सटे असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के तहत विशिष्ट नागरिकता नियम हैं। यह नियम उन भारतीय मूल के लोगों पर लागू होता है, जो 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से असम में आए थे।
1 जनवरी, 1966 से पहले भारत में प्रवेश करने वालों को भारतीय नागरिक माना जाता है, जबकि 1966-1971 के बीच भारत में वालों को उचित रजिस्ट्रेशन प्रॉसेस के बाद ही नागरिकता मिल सकती है। 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को अवैध प्रवासी माना जाता है और उसे नागरिकता नहीं दी जा सकती। ये निर्णय स्थानीय स्तर पर एक विशेष रूप से गठित विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा लिए जाते हैं।
असम के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण एक पेचीदा प्रॉसेस हो सकती है, क्योंकि 6 साल पहले राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) तैयार करने को लेकर राज्य में भारी विवाद हुआ था। करीब 19 लाख से ज्यादा लोगों को इससे बाहर कर दिया गया था। एनआरसी का मकसद, दशकों से राज्य में बसे अवैध प्रवासियों को बाहर निकालना था। कार्रवाई से बचने के लिए उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। यह प्रक्रिया अभी भी अधूरी है क्योंकि केंद्र ने अभी तक इस सूची को अधिसूचित नहीं किया है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे।
असम में एनआरसी को लेकर विपक्ष ने हंगामा करते हुए कहा था कि अधिकारियों ने गलती से लाखों भारतीय नागरिकों को सूची से बाहर कर दिया और विदेशियों को शामिल कर लिया। एसआईआर पर भी इसी तरह के सवाल उठाए गए हैं। विपक्ष का कहना है कि यह गरीबों को बाहर करने और उन्हे वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की एक प्रॉसेस है। हालांकि, चुनाव आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।
हाल ही में बिहार में पूरी हुई संशोधन प्रक्रिया में करीब 66 लाख नाम हटा दिए गए हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि ये उन लोगों के नाम हैं जो पलायन कर गए हैं, जिनके पास डुप्लीकेट वोटर आईडी हैं या जिनकी मृत्यु हो चुकी है। आयोग ने आज दोहराया कि उन्हें इस मामले में एक भी शिकायत नहीं मिली है।
दूसरे चरण में संशोधन प्रक्रिया 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में होगी। सूची में अंडमान और निकोबार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।