वायुसेना के उस जांबाज की कहानी, जो देश की खातिर 6 पाकिस्तानी विमानों से अकेला भिड़ गया

16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीता था। हमारे कई साहसी जवानों ने देश की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया। 1971 पाकिस्तान युद्द को आज लगभग 48 साल हो गए।
 

Asianet News Hindi | Published : Oct 8, 2019 8:07 AM IST / Updated: Oct 08 2019, 01:53 PM IST

नई दिल्ली. 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीता था। हमारे कई साहसी जवानों ने देश की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया। 1971 पाकिस्तान युद्द को आज लगभग 48 साल हो गए। बावजूद इसके आज हमारे दिल में उन जवानों के साहस की कहानियां आज भी हैं। हालांकि, ऐसे कुछ लोग ही होंगे जो परमवीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों के बारे में जानते होंगे। 

पिता को देखकर बचपन में ही एयरफोर्स में शामिल होने का किया था फैसला
निर्मलजीत का जन्म 1943 में पंजाब के लुधियाना में हुआ था। उनके पिता भी एयरफोर्स में थे। पिता से प्रेरणा लेकर निर्मलजीत ने बचपन में ही एयरफोर्स जॉइन करने का फैसला कर लिया था। वे 1967 में वायुसेना में पायलट ऑफिसर के तौर पर शामिल हुए। 

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1971 युद्ध में अकेले संभाला मोर्चा
1971 में भारत-पाकिस्तान का बॉर्डर युद्धभूमि बन चुका था। पाकिस्तान भारतीय वायुसेना के एयरबेसों को निशाना बनाने के लिए बम बरसा रहा था। उसके निशाने पर अमृतसर, पठानकोट और श्रीनगर थे। श्रीनगर एयरबेस की जिम्मेदारी 18 स्क्वाड्रन पर थी। निर्मलजीत सिंह इसी का हिस्सा थे। इस स्क्वाड्रन को बहादुरी के लिए फ्लाइंग बुलेट भी कहा जाता था। 

जब पाकिस्तान ने कर दिया हमला
14 दिसंबर 1971 को निर्मलजीत स्टैंडबाय- 2 ड्यूटी (2 मिनट में विमान उड़ाने के लिए तैयार रहना ) पर थे। तड़के सुबह पाकिस्तानी वायुसेना ने 6 एफ-16 सेबर जेट लड़ाकू विमानों से श्रीनगर एयरबेस पर बम बरसाना शुरू कर दिए। पाक की इस टीम को विंग कमांडर चंगेजी लीड कर रहे थे। सर्दियों में कोहरे का फायदा उठाकर ये विमान भारतीय सीमा में घुस आए थे। उस वक्त कश्मीर घाटी में वायुसेना के पास कोई रडार सिस्टम भी नहीं था कि दुश्मन के विमानों के बारे में जानकारी मिल सके। 

बिना ATC से संपर्क के ही भर दी उड़ान 
जब पाकिस्तानी विमान श्रीनगर एयरबेस के बेहद पास आ गए, तब भारतीय वायुसेना को इसकी जानकारी मिली। बिना देर करे इस स्क्वाड्रन को लीड करने वाले बलदीर सिंह घुम्मन (जी मैन) और  सेखों अपने विमानों की तरफ बढ़े। जब दोनों जवानों ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क कर टेक ऑफ की परमिशन मांगने के लिए संपर्क किया। एटीसी ने संपर्क नहीं हो पाया। इसके बावजूद दोनों ने बिना देरी करे उड़ान भरी। इसी वक्त रनवे पर पाकिस्तानी सेना ने दो बम गिरा दिए। 

पाकिस्तानी विमानों के पीछे लगा दिया विमान
जब सेखों ने देखा कि उनके पीछे पाकिस्तान के दो सेबर जेट हैं। उन्होंने बिना देरी करें अपना विमान घुमाया और पाकिस्तानी विमानों के पीछे लगा दिया। यह दोनों देशों की हवा में सबसे बड़ी लड़ाईयों में एक थी। 

3 सेबर जेट को किया ढेर
जैसे ही पाकिस्तान के चंगेजी ने सेखों का विमान दोनों पाकिस्तानी विमानों के पीछे देखा, उसने अपने सैनिकों से निकलने को कहा। तब तक सेखों ने हमला कर दिया था। उस वक्त वे 4 पाकिस्तानी विमानों का सामना कर रहे थे। सेखों ने एक-एक कर तीन सेबर जेट विमानों को निस्तनाबूत कर दिया। इसी दौरान उन्होंने अपने सहयोगी को एक संदेश भेजा। इसमें उन्होंने कहा कि शायद उनके विमान में भी निशाना लग गया है। सेखों ने खुद को इजेक्ट करने की कोशिश की। लेकिन इजेक्ट सिस्टम भी फेल हो गया था। सेखों वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन उन्होंने जो 28 साल की उम्र में किया, उसे देश कभी नहीं भूल सकता। 

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