CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं...सुप्रीम कोर्ट का जज यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर कमेंट

Published : Jul 30, 2025, 05:28 PM IST
Supreme Court of India

सार

Justice Yashwant Varma पर नकदी बरामदगी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा, CJI सिर्फ पोस्ट ऑफिस नहीं, उनका राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है। जानिए Article 124, Article 141 और Judges Inquiry Act पर क्या हुआ तर्क-वितर्क।

Supreme Court on Judicial Misconduct: दिल्ली स्थित अपने आवास में आग लगने के बाद भारी मात्रा में नकदी बरामदगी को लेकर चर्चा में आए जस्टिस यशवंत वर्मा अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के निशाने पर हैं। सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं हैं, उन्हें सिर्फ कागज आगे नहीं बढ़ाने होते बल्कि उनका दायित्व पूरे ज्यूडिशल सिस्टम के प्रति होता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना निर्णय सुरक्षित (Reserved) रख लिया है।

सुप्रीम कोर्ट पैनल ने जस्टिस वर्मा के मामले में क्या कहा?

पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के कार्यकाल में गठित सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय इन-हाउस पैनल ने जज वर्मा के खिलाफ सिफारिश दी थी कि उनका आचरण ‘मीडिया रिपोर्ट्स और प्रारंभिक साक्ष्यों’ के आधार पर संदिग्ध है और उनके खिलाफ संसद को सूचना दी जाए।

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सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने दलील दी कि यह इन-हाउस पैनल संविधान के अनुच्छेद 124 (Article 124) और Judges (Inquiry) Act के दायरे से बाहर जाकर कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि CJI सिर्फ सलाह दे सकते हैं, किसी जज को हटाने की सिफारिश नहीं कर सकते। इससे एक एक्स्ट्रा-कॉन्स्टीट्यूशनल मैकेनिज्म बन जाएगा।

जस्टिस दत्ता की तल्ख टिप्पणी

बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस दीपांकर दत्ता (Justice Dipankar Datta) ने स्पष्ट कहा कि अगर CJI के पास किसी जज के खिलाफ गंभीर जानकारी आती है तो उनकी जिम्मेदारी है कि वो उसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजें। वो सिर्फ चुपचाप फॉरवर्ड करने की मशीन नहीं हैं। आपका (जस्टिस वर्मा का) आचरण भरोसा नहीं जगाता। जब रिपोर्ट आपकी उम्मीद के अनुसार नहीं आई, तब आप कोर्ट आ गए।

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आर्टिकल 141 का भी हुआ ज़िक्र

कोर्ट ने कहा कि Article 141, जो कहता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून देश की सभी अदालतों पर बाध्यकारी होता है, का पालन सभी को करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हमने पहले से मन बना लिया होता तो बहस की जरूरत नहीं थी। लेकिन हम निष्पक्ष न्याय देने के लिए सुन रहे हैं।

क्या पैनल सुनवाई का अधिकार रखता है?

कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि जस्टिस वर्मा को पैनल के सामने सुना ही नहीं गया। यह पूरी प्रक्रिया राजनीतिक हो चुकी है। कोर्ट ने कहा कि तीन जजों की रिपोर्ट केवल प्रारंभिक है और संसद की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करती।

जब अदालत ने पूछा कि अगर पैनल का अधिकार सीमित था तो आप वहां पेश क्यों हुए, तो सिब्बल ने कहा कि अगर पैनल कहता कि पैसा मेरा है तो मुझे स्वीकार्य होता। कोर्ट ने जवाब में कहा कि यह पैनल का कार्यक्षेत्र ही नहीं है कि वह पैसे का मालिक कौन है यह तय करे।

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