सुप्रीम कोर्ट ने कहा, विवादित जमीन राम लला की; सरकार 3 महीने में मंदिर निर्माण के नियम बनाए

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने इस मामले में 40 दिन में 172 घंटे तक की सुनवाई की थी। बेंच में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल हैं।

Asianet News Hindi | Published : Nov 9, 2019 4:57 AM IST / Updated: Feb 05 2022, 03:21 PM IST

नई दिल्ली.  अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को फैसला सुनाया। इस फैसले को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने एकमत से सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन पर रामलला का मालिकाना हक बताया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या में मंदिर बनाने का अधिकार दिया है। 

कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन देने के लिए कहा है। इसके अलावा केंद्र सरकार से एक ट्रस्ट बनाने के लिए कहा है। 

सुप्रीम कोर्ट की बड़ीं टिप्पणियां

-  कोर्ट ने राम लला को कानूनी मान्यता देने की बात कही। साथ ही बेंच ने कहा कि एएसआई ने जो खुदाई की थी, उसे नकारा नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि मस्जिद के ढांचे के नीचे विशाल संरचना मिली थी, जो गैर इस्लामिक थीं।

- मुस्लिम पक्ष को कहीं और 5 एकड़ जमीन दी जाए। विवादित जमीन रामलला की। केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए। मंदिर निर्माण के नियम बनाने का आदेश दिया। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी शामिल किया जाएगा।

- हिंदू सदियों से विवादित ढांचे पूजा करते रहे हैं, लेकिन मुस्लिम 1856 से पहले नमाज का दावा सिद्ध नहीं कर पाए। 

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हिंदू अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं। उनके धार्मिक भावनाएं हैं। मुस्लिम इसे बाबरी मस्जिद बताते हैं। हिंदुओं का विश्वास कि राम का जन्म यहां हुआ है, वह निर्विवाद है।  

-  बेंच ने कहा- निर्मोही अखाड़े का दावा केवल प्रबंधन को लेकर है। आर्केलॉजिकल सर्वे के दावे संदेह से परे हैं। इसे नकारा नहीं जा सकता है। 

- 'मुस्लिम दावा करते हैं कि 1949 तक लगातार नमाज पढ़ते थे, लेकिन 1856-57 तक ऐसा होने का कोई सबूत नहीं मिलता।' 

- 'अंग्रेजों ने रेलिंग बनाई थी, इससे दोनों पक्षों को अलग रखा जा सके।'

- '1856 से पहले हिंदू अंदर पूजा करते थे, मनाही करने के बाद वे चबूतरे पर पूजा करने लगे।'

- सबूत हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले राम चबूतरा, सीता रसोई में हिंदू पूजा करते थे। सबूतों में यह भी दिखता है कि विवादित जगह के बाहर हिंदू पूजा करते थे। 

40 दिन हुई सुनवाई

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने इस मामले में 40 दिन में 172 घंटे तक की सुनवाई की थी। बेंच में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल हैं।

40 दिन लगातार सुनवाई के बाद SC ने फैसला सुरक्षित रखा था
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में 2.77 एकड़ जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना 40 दिन तक सुनवाई की है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 2010 के इलाहाबाद के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 याचिका दायर की गईं थीं। 

मध्यस्थता विफल होने के बाद रोजाना सुनवाई कर रहा था सुप्रीम कोर्ट
मध्यस्थता प्रयास विफल हो जाने के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 सदस्यों की बेंच इस मामले में रोजाना यानी हफ्ते में पांच दिन सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को इस मामले को बातचीत से सुलझाने के लिए मध्यस्थता समिति बनाई थी। मध्यस्थता समिति पूर्व जस्टिस एफएम कलिफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, सीनियर वकील श्रीराम पंचू शामिल थे।

18 जुलाई को मध्यस्थता पैनल ने स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी थी। उस वक्त चीफ जस्टिस ने समिति से जल्द ही अंतिम रिपोर्ट पेश करने को कहा था। बेंच ने कहा था कि मध्यस्थता से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला तो रोजाना सुनवाई पर विचार करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गईं थीं 
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट अयोध्या में 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन समान हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गईं हैं। बेंच इन सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही है।

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