तीस्ता सीतलवाड़ केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा-जमानत न देने का कोई कारण नहीं, हाईकोर्ट से भी पूछे सवाल

सीजेआई ने कहा कि वह एक महिला है। उच्च न्यायालय ने छह सप्ताह के बाद नोटिस कैसे जारी किया? क्या गुजरात उच्च न्यायालय में यह मानक प्रथा है? जस्टिस यूयू ललित ने हाईकोर्ट से पूछा है कि हमें ऐसे उदाहरण दें जहां किसी महिला के केस में, जो इस तरह के मामले में शामिल रही है, को जमानत देने के लिए छह सप्ताह में नोटिस देकर जवाब मांगा गया हो।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को दो महीने से जमानत नहीं दिए जाने पर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High court) से भी सवाल किए और न्यायपालिका की स्टैंडर्ड प्रैक्टिस को लेकर कटघरे में खड़ा किया। एपेक्स कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत नहीं देने का कोई कारण ही नहीं है। तीस्ता के केस में कोई अपराध नहीं है जिसके लिए जमानत नहीं दी जा सकती है। वह भी एक महिला के साथ ऐसा व्यवहार कैसे किया जा सकता है।अदालत शुक्रवार दोपहर 2 बजे सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर फिर से सुनवाई करेगी।

क्या कहा चीफ जस्टिस की बेंच ने?

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सीजेआई (CJI) की अध्यक्षता में सुनवाई कर रहे बेंच में जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट के तौर-तरीके पर भी सवाल खड़े किए। भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि इस मामले में कोई अपराध नहीं है जिसके लिए जमानत नहीं दी जा सकती। वह भी एक महिला के साथ ऐसा किया गया है। बेंच ने कहा कि सीतलवाड़ दो महीने से अधिक समय से जेल में हैं और अभी तक कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने तीन अगस्त को तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर नोटिस जारी कर छह सप्ताह के लंबे समय में जवाब दाखिल करने के लिए कहना, कहीं से उचित नहीं है। यह न्याय के विधान के लिए सही नहीं।

सीजेआई ने कहा कि वह एक महिला है। उच्च न्यायालय ने छह सप्ताह के बाद नोटिस कैसे जारी किया? क्या गुजरात उच्च न्यायालय में यह मानक प्रथा है? जस्टिस यूयू ललित ने हाईकोर्ट से पूछा है कि हमें ऐसे उदाहरण दें जहां किसी महिला के केस में, जो इस तरह के मामले में शामिल रही है, को जमानत देने के लिए छह सप्ताह में नोटिस देकर जवाब मांगा गया हो।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ के इस मामले में ऐसा कोई अपराध नहीं है जिसमें जमानत नहीं दी सकती है। वह न तो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और आतंकवाद रोकथाम अधिनियम जैसे गंभीर अपराध में शामिल होने की आरोपी थीं न ही जमानत ने देने योग्य किसी दूसरे अपराध में। तीस्ता का मामला एक सामान्य अपराध हैं और एक महिला अनुकूल व्यवहार की हकदार है।

सॉलिसिटर जनरल ने सुनवाई स्थगित करने की मांग की

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत को लेकर हो रही सुनवाई को स्थगित करने की मांग कर डाली। उन्होंने कहा कि अदालत जो भी तर्क दे रही, वह सभी तर्क हाईकोर्ट में होनी चाहिए न की सुप्रीम कोर्ट में। उन्होंने यहां ऐसे तर्क पर आपत्ति जताई। 

उधर, तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से पेश हुए सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एफआईआर को ही चुनौती दे दी। उन्होंने कहा कि ऐसा एफआईआर हो ही नहीं सकता। प्राथमिकी में यह खुलासा नहीं किया गया है कि कौन से दस्तावेज जाली हैं।

क्या है पूरा मामला?

तीस्ता सीतलवाड़ 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित मामलों को दर्ज करने के लिए फर्जी दस्तावेज लगाने के आरोप में 25 जून से हिरासत में हैं। सीतलवाड़ को गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने मुंबई में गिरफ्तार किया था। यह अरेस्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा जाकिया जाफरी की याचिका के खारिज होने के बाद की गई थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों से संबंधित मामलों में पीएम मोदी, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अन्य को एसआईटी की मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिका में जकिया जाफरी की अपील को योग्यताहीन मानते हुए खारिज कर दिया था। जकिया जाफरी कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा हैं, जो दंगों में मारे गए थे।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली अदालत की तीन जजों की पीठ ने कहा कि मामले की सह-याचिकाकर्ता सीतलवाड़ ने जकिया जाफरी की भावनाओं का शोषण किया। अदालत ने अपने बयान में कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ के पूर्ववृत्तों पर विचार करने की जरूरत है। वह परिस्थितियों की असली शिकार जकिया जाफरी की भावनाओं का शोषण करके अपने गुप्त एजेंडे के लिए प्रतिशोध ले रही थीं।

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