
Ashoka University Professor Post: सोशल मीडिया पोस्ट मामले में अशोका यूनिवर्सिटी (Ashoka University) के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद (Ali Khan Mahmudabad) पर चल रही SIT जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फटकार लगाते हुए सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच केवल दर्ज दो FIR पर केंद्रित होनी चाहिए और प्रोफेसर को दोबारा तलब करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने एसआईटी के ज्ञान पर आश्चर्य प्रकट करते हुए डिक्शनरी पढ़ने जैसा भी कटाक्ष भी किया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने SIT से पूछा कि आप खुद को क्यों भटका रहे हैं? कोर्ट ने चार हफ्तों के भीतर जांच पूरी करने का आदेश भी दिया।
जब राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि आगे भी प्रोफेसर को पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है तो जस्टिस सूर्यकांत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आपको अली खान की जरूरत नहीं है, आपको डिक्शनरी की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा कि प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को अब किसी भी विषय पर लिखने की स्वतंत्रता है, बस उस मामले से संबंधित न लिखें जो न्यायालय के अधीन (subjudice) है। साथ ही, मई में मिली जमानत की शर्तें भी यथावत रहेंगी, जैसे कि पासपोर्ट जमा कराना और ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) या पहलगाम हमले (Pahalgam Attack) पर कोई टिप्पणी न करना।
मई में अली खान महमूदाबाद ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था कि राइट विंग कमेंटेटर दो महिला अफसरों की तारीफ कर रहे हैं लेकिन उन्हें उतनी ही जोर से भीड़ हिंसा, बुलडोज़िंग और नफ़रत की राजनीति के शिकार लोगों की सुरक्षा की मांग भी करनी चाहिए। ऑप्टिक्स जरूरी हैं लेकिन उन्हें जमीनी हकीकत में बदलना भी जरूरी है, वरना यह सिर्फ़ पाखंड है।
इस पोस्ट के बाद महिला आयोग (NCW) और कई अन्य संस्थाओं ने विरोध दर्ज किया था। NCW ने इसे महिला अधिकारियों के प्रति अपमानजनक बताया था।
प्रोफेसर महमूदाबाद ने अपने बचाव में कहा था कि मैं आश्चर्यचकित हूं कि महिला आयोग ने मेरे पोस्ट को इस हद तक गलत समझा कि उन्होंने अर्थ ही पलट दिया।