
TRF Kashmir Hybrid Militancy: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370 Abrogation) हटने के ठीक दो महीने बाद अक्टूबर 2019 में एक नया आतंकी संगठन The Resistance Front (TRF) सामने आया था। इसे शुरुआत में कश्मीरी प्रतिरोध का स्वदेशी आंदोलन बताया गया लेकिन जल्द ही यह साफ हो गया कि TRF दरअसल पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) का ही एक नया प्रॉक्सी फ्रंट है। सुरक्षा विश्लेषकों के अनुसार, इस संगठन का मकसद था पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फौरी तौर पर क्लीन चिट दिलाना और FATF की ग्रे लिस्ट से निकलने में मदद करना था। लेकिन अब इसे ग्लोबल टेरर लिस्ट में डाल दिया गया है।
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TRF ने पहली बार अपनी मौजूदगी Telegram जैसे एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म से दर्ज कराई थी। संगठन का प्रवक्ता अहमद खालिद है जबकि इसकी कमान सज्जाद गुल, सैफुल्लाह सज्जद जट्ट और सलीम रहमानी उर्फ अबू साद जैसे कट्टरपंथियों के हाथ में है, जो सीधे तौर पर लश्कर की संरचना से जुड़े माने जाते हैं।
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TRF पारंपरिक फिदायीन हमलों (suicide attacks) के बजाय गुरिल्ला युद्ध और हाइब्रिड आतंकवाद को बढ़ावा देता है। संगठन Overground Workers (OGWs) और लोकल युवाओं का इस्तेमाल कर 'क्लीन स्लेट' हमलावर तैयार करता है जिन्हें सुरक्षा एजेंसियां पहले से ट्रैक नहीं कर पातीं। साथ ही TRF सोशल मीडिया पर अंग्रेजी भाषा में धमकियां और वीडियो जारी करता है जिससे वह शहरी और वैश्विक युवा टारगेट करता है।
TRF अब तक कश्मीरी पंडितों, सिखों, हिंदुओं, RSS नेताओं, गैर-कश्मीरी मजदूरों और यहां तक कि पर्यटकों को भी निशाना बना चुका है। संगठन की सबसे भयावह वारदातों में 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम (Pahalgam Attack) में 26 निर्दोष लोगों की हत्या शामिल है जिसमें एक नेपाली नागरिक भी था।
इसके अलावा, 9 जून 2024 को रियासी में तीर्थयात्रियों की बस पर हमले में 9 लोग मारे गए, 43 घायल हुए। गांदरबल (2024) में डॉक्टर और मजदूरों की हत्या, और 2021 में कश्मीरी अल्पसंख्यकों की टारगेटेड किलिंग्स जैसे हमलों से TRF की बर्बरता खुलकर सामने आई है।
भारत ने TRF को जनवरी 2023 में UAPA के तहत आतंकी संगठन घोषित किया था। इसके बाद, अमेरिका ने जुलाई 2025 में TRF को Foreign Terrorist Organization और Specially Designated Global Terrorist की सूची में डाला। हालांकि, UN ने TRF को अलग से नहीं लेकिन लश्कर-ए-तैयबा के हिस्से के रूप में प्रतिबंधित माना है।
साल 2019 से अब तक कम से कम 131 आतंकियों की गिरफ्तारी या मुठभेड़ों में मौत TRF से जुड़ी बताई जा चुकी है। संगठन की जड़े श्रीनगर, अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां, कुलगाम, बांदीपोरा, बारामुला और गांदरबल जैसे इलाकों में गहरी मानी जाती हैं।
TRF चाहे खुद को 'कश्मीर की जनता की आवाज़' बताए लेकिन उसके तौर-तरीके, फंडिंग पैटर्न और निशाने बताने के तरीके वही हैं जो लश्कर और हिजबुल जैसे आतंकी संगठनों के रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि TRF अब ‘Hybrid Militancy’ और ‘Digital Propaganda’ के ज़रिये 21वीं सदी की आतंक रणनीति को ज़मीन पर उतारने में लगा है।