ग्लेशियर ब्लास्ट को लेकर 2019 में ही किया गया था अलर्ट, मामला कोर्ट में भी गया, जानें क्या हुई थी भविष्यवाणी

पीआईएल में कहा गया था कि जो प्रोजेक्ट लगाया जा रहा है वह अनुचित और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालेगा। प्रोजेक्ट बनाने वाली कंपनी विस्फोटक का उपयोग कर रही थी और खनन के लिए पहाड़ों को नष्ट कर रही थी, जिससे नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के आसपास के संवेदनशील इलाकों को नुकसान पहुंचा है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 8, 2021 2:32 AM IST

नई दिल्ली. चमोली में ग्लेशियर फटने से ऋषिगंगा हाइड्रोलिक पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से तबाह हो गया। प्रोजेक्ट पर काम कर रहे कई मजदूर लापता हैं। ऐसे में बताना जरूरी हो जाता है कि साल 2019 में ही इस प्रोजेक्ट को लेकर पहले ही एक पीआईएल में चेतावनी दे दी गई थी। कुंदन सिंह नाम के स्थानीय ग्रामीण ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक पीआईएल लगाई थी, जिसमें पहले ही अलर्ट किया गया था।

प्रोजेक्ट से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव
पीआईएल में कहा गया था कि जो प्रोजेक्ट लगाया जा रहा है वह अनुचित और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालेगा। प्रोजेक्ट बनाने वाली कंपनी विस्फोटक का उपयोग कर रही थी और खनन के लिए पहाड़ों को नष्ट कर रही थी, जिससे नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के आसपास के संवेदनशील इलाकों को नुकसान पहुंचा है।
   
ऋषिगंगा नदी में जा रहा वेस्ट मैटेरियल
कुंदन सिंह ने कहा था कि प्रोजेक्ट के सभी वेस्ट मैटेरियल को ऋषिगंगा नदी में डाला जा रहा था। पीआईएल के बाद कोर्ट ने देखा कि विस्फोटकों के इस्तेमाल से नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व को नुकसान हो सकता है। कोर्ट ने क्षेत्र में विस्फोटकों के उपयोग पर रोक लगा दी। जून 2019 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव और जिला मजिस्ट्रेट को एक संयुक्त निरीक्षण दल गठित करने और साइट पर जाने का निर्देश दिया।

26 जुलाई के बाद सुनवाई नहीं हुई
हालांकि कहा जाता है कि टीम को अवैध खनन या ब्लास्टिंग का कोई प्रमाण नहीं मिला। निरीक्षण के दौरान किसी भी अवैध खनन का कोई सबूत मौके पर नहीं था। 26 जुलाई को कोर्ट ने मामले को अगस्त में सुनवाई के लिए कहा था लेकिन उसके बाद एक भी सुनवाई नहीं हुई है और मामला अभी भी हाईकोर्ट में लंबित है।

क्या है ऋषिगंगा हाइड्रोलिक प्रोजेक्ट?
चमोली जिले में बिजली उत्पादन का एक प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसका नाम ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट है। यह करीब 10 साल से अधिक समय से चल रहा है। यह सरकारी नहीं बल्कि निजी क्षेत्र की परियोजना है। ऋषि गंगा नदी धौली गंगा में मिलती है। ग्लेशियर टूटने की वजह से इन दोनों नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया है और बाढ़ जैसे हालात हो गए हैं।

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