इस घटना से आहत होकर रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों को लौटा दी थी नाइटहुड की उपाधि, जीता था भारत का पहला नोबेल

Published : May 06, 2022, 08:00 PM IST
इस घटना से आहत होकर रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों को लौटा दी थी नाइटहुड की उपाधि, जीता था भारत का पहला नोबेल

सार

रबीन्द्रनाथ टैगोर की रुचि बचपन से ही साहित्य क्षेत्र में थी। उन्होंने सिर्फ 8 साल की उम्र में कहानियां लिखना शुरू कर दी थीं। उनकी प्रमुख रचनाओं में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिन, महुआ, वनवाणी, पुनश्च, चोखेरबाली, कणिका, क्षणिका, गीतिमाल्य और वीथिका शेषलेखा शामिल हैं। 

Rabindranath Tagore Jayanti 2022: नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की शनिवार को 161वीं जयंती है। 7 मई, 1861 को कलकत्ता में पैदा हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर उनकी महान रचना 'गीतांजलि' के लिए 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला था। वे बांग्ला साहित्य के जरिए भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले कवि थे। महात्मा गांधी ने उन्हें 'गुरुदेव' की उपाधि से सम्मानित किया था। 

1883 में रबीन्द्रनाथ ने इनसे की शादी : 
रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के पिता का नाम देवेन्द्रनाथ और मां का शारदा देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंग्लैंड के सेंट जेवियर स्कूल में हुई। इसके बाद घरवालों ने उन्हें बैरिस्टर बनाने की इच्छा से लंदन यूनिवर्सिटी में दाखिला कराया। हालांकि, उन्होंने कानून की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और 1880 में कलकत्ता लौट आए। 3 साल बाद रबीन्द्रनाथ ने मृणालिनी देवी से विवाह कर लिया। उस वक्त मृणालिनी की उम्र महज 10 साल थी। 

16 साल में पब्लिश हुई थी पहली लघुकथा : 
रबीन्द्रनाथ की रुचि बचपन से ही साहित्य की तरफ थी। उन्होंने सिर्फ 8 साल की उम्र में ही कहानी-कविताएं लिखना शुरू कर दी थीं। 1877 में सिर्फ 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा पब्लिश हुई थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई कविताएं, उपन्यास, निबंध, लघुकथाएं, यात्रा वृतांत, गीत और नाटक लिखे हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिन, महुआ, वनवाणी, पुनश्च, चोखेरबाली, कणिका, क्षणिका, गीतिमाल्य और वीथिका शेषलेखा हैं। 

2200 से ज्यादा गीत लिख चुके रबीन्द्रनाथ टैगोर : 
रिपोर्ट्स के मुताबिक, रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने करीब 2230 गीत लिखे हैं। अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने चित्रकारी भी शुरू की थी। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की थी। कहा जाता है कि एक बार उनका यह संस्थान आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। ऐसे वक्त में रबीन्द्रनाथ देशभर में घूम-घूमकर नाटकों का मंचन करके पैसे जुटाते थे। जब ये बात गांधीजी को पता चली तो उन्होंने उस दौर में 60 हजार रुपए की मदद की थी। 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में लौटाई थी उपाधि : 
1915 में ब्रिटेन के जॉर्ज पंचम ने रबीन्द्रनाथ को 'नाइटहुड' (Knighthood) की उपाधि से सम्मानित किया था। उस दौर में जिसके पास 'नाइटहुड' की उपाधि होती थी, उसके नाम के आगे सर लगाया जाता था। हालांकि, 13 अप्रैल 1919 को हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में उन्होंने यह उपाधि लौटा दी थी। बता दें कि 7 अगस्त, 1941 को 80 साल की उम्र में गुरुदेव ने दुनिया को अलविदा कह दिया।   

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