भारतीय नौसेना के लिए तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियां खरीदने का फैसला लिया गया है। नौसेना के पास वर्तमान में 16 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं। इनमें से 30 फीसदी हर वक्त मरम्मत के चलते सेवा से बाहर रहती हैं।
नई दिल्ली। चीन लगातार अपनी नौसेना का विस्तार कर रहा है। इसके साथ ही हिंद महासागर में चीनी नौसेना की सक्रियता बढ़ रही है। इसे देखते हुए भारत भी अपनी नौसेना की क्षमता बढ़ा रहा है। इसी क्रम में भारत ने फ्रांस से तीन और स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बियां खरीदने का सौदा किया है।
स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बी बेहद अत्याधुनिक है। इससे इंडियन नेवी को चीन से मिल रही चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी। यह डीजल इलेक्ट्रिक सबमरीन है। भारत के पास कुल 16 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं। इनमें से सात किलो क्लास, चार HDW क्लास और पांच स्कॉर्पीन क्लास की हैं। स्कॉर्पीन क्लास की छठी पनडुब्बी जल्द नौसेना में शामिल होने वाली है।
प्रोजेक्ट- 75आई के तहत नए सबमरीन लेने में हो रही देर के चलते नौसेना को अपने पुराने किलो और HDW क्लास की सबमरीन की सर्विस लाइफ को बढ़ाना पड़ रहा है। इसके लिए मीडियम रिफिट विद लाइफ सर्टिफिकेशन (एमआरएलसी) परियोजना की गई है। इससे जर्मनी और रूस से खरीदे गए किलो और HDW की पनडुब्बी की लाइफ 10-15 साल बढ़ जाएगी।
2005 में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बी के लिए हुआ था समझौता
अक्टूबर 2005 में भारतीय नौसेना ने छह स्कॉर्पीन क्लास के लिए ऑर्डर प्लेस किया है। इसकी लागत 12,022 करोड़ रुपए थी। इसके बाद से नई पनडुब्बी के लिए सौदा नहीं हुआ था। इसके चलते भारत सरकार ने तीन और स्कॉर्पीन पनडुब्बी खरीदने का फैसला किया। पहले भारत ने अनुरोध किया कि फ्रांस उसे अपनी HDW शिशुमार श्रेणी की पनडुब्बियों के लिए MBDA SM-39 एक्सोसेट एंटी-शिप मिसाइलें दे। फ्रांस इन मिसाइलों को जर्मनी द्वारा बनाए गए पनडुब्बी में लगाने से झिझक रहा था।
भारतीय नौसेना को पनडुब्बियों की सख्त जरूरत है। एमडीएल में पहले हुए सौदे के अनुसार आखीरी स्कॉर्पीन पनडुब्बी तैयार की जा रही है। इसकी दो पनडुब्बी बनाने वाली लाइनें बंद हैं। तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की अतिरिक्त खरीद से इन लाइनों पर फिर से काम शुरू हो जाएगा। इसके साथ ही नौसेना के तीन अत्याधुनिक सबमरीन मिलेंगे।
भारतीय नौसेना को चाहिए कम से कम 18 पनडुब्बियां
नौसेना को अपने सभी ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए कम से कम 18 पनडुब्बियों की आवश्यकता है। मरम्मत के चलते करीब 30 प्रतिशत पनडुब्बियां हमेशा सेवा से बाहर रहती हैं। यहां तक कि नई कलवरी क्लास की पनडुब्बियों को भी जल्द ही मरम्मत के लिए भेजा जाने वाला है। इसके चलते नौसेना के पास कुल पनडुब्बियां की संख्या 18 से भी अधिक होनी चाहिए।
कितनी सक्षम हैं स्कॉर्पीन पनडुब्बी?
स्कॉर्पीन पनडुब्बियां पारंपरिक अटैक पनडुब्बियां हैं। इन्हें दुश्मन के जहाजों और पनडुब्बियों को निशाना बनाने और डुबाने के लिए डिजाइन किया गया है। ये कई तरह के टॉरपीडो और मिसाइलों को फायर कर सकती हैं। इसके साथ ही कई प्रकार की निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्र करने वाले तंत्र से भी लैस हैं।
स्कॉर्पीन पनडुब्बी की लंबाई 220 मीटर है। इसकी ऊंचाई 40 फीट है। यह सतह पर रहने के दौरान अधिकतम 20 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आगे बढ़ सकती हैं। वहीं, पानी के अंदर इसकी अधिकतम रफ्तार 37 किलोमीटर प्रतिघंटा है। स्कॉर्पीन पनडुब्बी डीजल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल करती है। यह बिना इंधन लिए लगातार 50 दिन तक काम कर सकती है। पानी की सतह पर रहने के दौरान डीजल इंजन का इस्तेमाल होता है। इससे पनडुब्बी की बैटरी की चार्ज होती है। पानी के अंदर गोता लगाने पर इन बैटरी से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल होता है।