जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़कर बुधवार को भाजपा का दामन थाम लिया। जितिन प्रसाद ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद पार्टी की सदस्या ली। जितिन को लंबे वक्त से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता रहा है। लेकिन अब जितिन प्रसाद को ऐसा महसूस हो रहा था कि उन्हें पार्टी द्वारा नजर अंदाज किया जा रहा था।
नई दिल्ली. जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़कर बुधवार को भाजपा का दामन थाम लिया। जितिन प्रसाद ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद पार्टी की सदस्या ली। जितिन को लंबे वक्त से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता रहा है। लेकिन अब जितिन प्रसाद को ऐसा महसूस हो रहा था कि उन्हें पार्टी द्वारा नजर अंदाज किया जा रहा था।
बताया जा रहा है कि ना ही उनसे उनके गृह राज्य यानी उत्तर प्रदेश में पार्टी की गतिविधियों को लेकर विचार विमर्श किया जा रहा था, ना ही बंगाल में, जहां का पिछले साल उन्हें प्रभारी बनाया गया था।
जितिन प्रसाद और राहुल गांधी
जितिन प्रसाद और राहुल गांधी का राजनीतिक करियर लगभग एक ही समय यानी 2004 में शुरू हुआ। राहुल गांधी अमेठी से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे, वहीं जितिन प्रसाद ने शाहजहांपुर से लोकसभा चुनाव जीता। इस सीट से उनके पिता जितेंद्र प्रसाद भी चार बार चुनाव जीत चुके थे।
जितिन प्रसाद 2008 में मनमोहन सिंह सरकार में सबसे युवा मंत्री बने। वे 2009 में धौरहरा से चुनाव जीते और मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में कई मंत्रालय संभाले।
2017 में बिगड़े रिश्ते
बताया जाता है कि जितिन प्रसाद के गांधी परिवार के साथ 2017 में रिश्ते बिगड़े, जब राहुल गांधी ने सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इससे पहले 2019 में भी जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़ने के कयास लगे थे। प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का संयुक्त प्रभार दिया गया था।
इतना ही नहीं जितिन प्रसाद हाल ही में उन 23 बागी नेताओं में भी शामिल थे, जिन्होंने पत्र लिखकर कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग की थी। नेताओं की मांग थी कि कांग्रेस में ऐसा अध्यक्ष चुना जाए, जो फुल टाइम हो और कार्यकर्ताओं के लिए उपस्थित रहे। इस मांग के बाद जितिन प्रसाद को कांग्रेस के लखीमपुर खेरी जिला इकाई से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
बंगाल के प्रभारी बनाए गए जितिन
हालांकि, इन सबके बीच जितिन प्रसाद को कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में पर्मानेंट स्थान दिया गया। पहले वे विशेष आमंत्रित सदस्य थे। प्रसाद को बंगाल कांग्रेस का प्रभारी भी बनाया गया।
बंगाल में चुनाव लड़ने के तरीके से नाराज थे जितिन
बताया जा रहा है कि जितिन प्रसाद कांग्रेस के बंगाल में चुनाव लड़ने के तरीकों से नाराज थे। लोकसभा अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का बंगाल चुनाव में जितिन से ज्यादा हस्तक्षेप रहा।
यहां तक की एक बार जितिन प्रसाद ने अपनी निराशा ट्विटर पर भी पोस्ट की थी। उन्होंने कहा था, गठबंधन के फैसले पार्टी और कार्यकर्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं। अब समय आ गया है कि सभी लोग हाथ मिलाएं और चुनावी राज्यों में कांग्रेस की संभावनाओं को मजबूत करने की दिशा में काम करें।
जितिन बंगाल में कांग्रेस के अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेकुलर फ्रंट के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। दरअसल, उन्हें डर था कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश के चुनाव में सिद्दीकी की पार्टी से गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ जाता। दरअसल, वे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए ब्राह्मण वोट बैंक जुटाने के लिए ब्रह्म चेतना संवाद में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं।
पिता ने भी की थी कांग्रेस से बगावत
गांधी और प्रसाद परिवार के बीच यह जंग नई नहीं है। जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद भी एक समय कांग्रेस के बड़े नेता थे, उन्होंने 1971 में अपना पहला चुनाव जीता था। वे राहुल गांधी के पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राजनीतिक सलाहकार थे।
लेकिन राजीव गांधी की मौत के जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था। हालांकि, वे इस चुनाव में हार गए थे। उनकी मौत 2001 में हो गई।
दिलचस्प बात ये है कि राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया के साथ जितेंद्र प्रसाद भी राजीव गांधी के सबसे करीबी सहयोगियों में से थे। अगली पीढ़ी में जितिन प्रसाद, सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को राहुल गांधी के सबसे करीबी सहयोगी के रूप में करीब दो दशक तक राजनीतिक सहयोगी के तौर पर रहे।
साथ छोड़ रहे साथी
लेकिन नजरअंदाज किए जाने के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद भाजपा में आ गए हैं। वहीं, सचिन पायलट अभी भी कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं।