10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide prevention day) मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल करीब 8 लाख लोग खुदकुशी कर लेते हैं। भारत में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने आत्महत्या की कोशिश की पर बच गए। अब वो दूसरों की जिंदगी बचा रहे हैं।
World Suicide prevention day 2022: दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide prevention day) मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद पूरी दुनिया में बढ़ रहे आत्महत्याओं के मामलों को रोकना और इसके बारे में लोगों को जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल करीब 8 लाख लोग खुदकुशी कर लेते हैं। खुदकुशी के ज्यादातर केस 15 से 30 साल की उम्र वाले लोगों के होते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 1 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। वैसे, हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने आत्महत्या की कोशिश की लेकिन बच गए। बाद में उन्हें जो सबक मिला, उसे ध्यान में रखते हुए अब वो कई लोगों की जान बचा रहे हैं। आइए जानते हैं एक ऐसे ही केस के बारे में।
खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने की होड़ :
ये किस्सा है, 25 साल के डॉक्टर विकास कुमार का। 2012 में मेडिकल के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी के लिए विकास के पैरेंट्स ने उनका एडमिशन कोटा के एक मशहूर कोचिंग सेंटर में करा दिया। वहां हर कोई ज्यादा नंबर पाने की कोशिश में जुटा हुआ था। एक-दूसरे से आगे जाने की होड़ और कॉम्पिटीशन में विकास थोड़ा परेशान और डिप्रेशन का शिकार हो गए।
करियर की चिंता में बढ़ता गया तनाव :
खैर, 2013 में विकास को रायपुर के एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन मिल गया। पढ़ाई के दौरान विकास के दिमाग में बस एक ही चीज चलती थी कि एंट्रेंस एग्जाम तो किसी तरह पास हो गया, लेकिन क्या मैं अपना एमबीबीएस अच्छे से तरीके से पूरा कर पाऊंगा? बस इसी उधेड़बुन में विकास किसी तरह अपने सेमेस्टर निकालते रहे। हालांकि, उनके दिमाग से करियर की चिंता नहीं निकल रही थी।
तनाव में लगा दी बिल्डिंग से छलांग :
खुद को अच्छा डॉक्टर न बना पाने का ख्याल विकास के दिमाग में इस कदर हावी होता गया कि नवंबर, 2016 में वो एक बिल्डिंग से कूद गए। हालांकि, इस हादसे के बाद किसी तरह उनकी जान तो बच गई, लेकिन एक हाथ फ्रैक्चर हो गया। उन्होंने अपनी सुसाइड की बात लोगों से छुपा ली और इसे हादसे समझ लिया गया।
हड्डियां टूटीं पर बच गए, तब समझ आई जिंदगी की कीमत :
आत्महत्या के इस प्रयास की वजह से विकास की हड्डियां टूटीं तो इसके साथ ही उन्हें अनमोल जिंदगी की कीमत का अहसास हुआ। इसके बाद अतुल ने ठान लिया कि अब वो बिना किसी तनाव के अपने आप को हमेशा खुश रखने की कोशिश करेंगे। विकास ने इस ट्रॉमा से निकलने के लिए म्यूजिक थैरेपी का सहारा लिया और गाने सुनने लगे। इसके साथ ही वो महान लोगों के कामयाबी के मंत्र और सक्सेस स्टोरी पढ़ने लगे।
तनाव ने फिर घेरा, लेकिन मेहनत नहीं छोड़ी :
बाद में विकास ने सारी टेंशन छोड़कर एक बार फिर अपनी पढ़ाई पर फोकस किया। पीजी करने के दौरान 2018 में बैक लगा तो फिर डिप्रेशन का शिकार हो गए। हालांकि, विकास ने अब तय कर लिया था कि 2019 तक करियर नहीं बना तो आत्महत्या कर लूंगा। लेकिन इसके साथ ही वो अपना टारगेट पूरा करने के लिए लगातार मेहनत भी करते रहे। दिसंबर, 2019 में उनकी अंबेडकर अस्पताल में जॉब लग गई और अब वो वहां बतौर जूनियर डॉक्टर काम कर रहे हैं।
खुद जिएं, सबको जीना सिखाएं :
विकास का कहना है कि अब मैं जीना सीख चुका हूं। डॉक्टर बनने के बाद मैं लोगों की जान बचा रहा हूं। इलाज करवाने के बाद जब लोग डिस्चार्ज होकर घर जाते हैं तो थैंक्यू कहते हैं। इस शब्द को सुनकर अहसास होता है कि जिंदगी कितनी अनमोल है और हम इसे बेवजह ही खत्म करने पर उतारू रहते हैं।
(ये कहानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल के जूनियर डॉक्टर की है, जिसमें उनका नाम बदला गया है)
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