मल्टी करोड़ सालाना टर्नओवर की डायमंड बिजनेस फैमिली की 9 साल की बेटी ने संन्यास ले लिया। मूलत: राजस्थान के सिरोही जिले के मालगांव से ताल्लुक रखने वाली इस फैमिली की बेटी देवांशी धनेश संघवी खेलने-कूदने की उम्र में संन्यासी हो गई।
सूरत. मल्टी करोड़ सालाना टर्नओवर की डायमंड बिजनेस फैमिली की 9 साल की बेटी ने संन्यास ले लिया। मूलत: राजस्थान के सिरोही जिले के मालगांव से ताल्लुक रखने वाली इस फैमिली की बेटी देवांशी धनेश संघवी खेलने-कूदने की उम्र में संन्यासी हो गई। आचार्य विजय कीर्तियशसूरि की सानिध्य में 18 जनवरी को सूरत में सुबह 7 बजे संयम जीवन अंगीकार कर लिया। यह दीक्षा महोत्सव 14 जनवरी से शुरू हुआ था। पढ़िए पूरी डिटेल्स...
1. दो बहनों में बड़ी देवांशी सांघवी ने 367 दीक्षा कार्यक्रमों में भाग लिया था। इसके बाद उसका मन संन्यास लेने के लिए प्रेरित हुआ।
2. 18 जनवरी की सुबह 6 बजे देवांशी ने दीक्षा मंडप में प्रवेश किया। सुबह 6:30 बजे अंतिम विदाई तिलक रखा गया था और 7 बजे से दीक्षा विधि शुरू हुई।
3. एक पारिवारिक मित्र ने उत्सव के दौरान कहा-"उसने कभी टीवी और फिल्में नहीं देखीं। कभी किसी रेस्तरां में नहीं गई।"
4. अगर देवांशी संन्यास का मार्ग नहीं चुनती, तो वो बड़ी होने पर मल्टी करोड़ की हीरा कंपनी की मालकिन होती। उनके पिता धनेश सांघवी हैं। वे मोहन संघवी के इकलौते बेटे हैं, जो संघवी एंड संस के पितामह हैं।
5. संघवी एंड संस राज्य की सबसे पुरानी हीरा बनाने वाली कंपनियों में शुमार है। इसकी जिसकी दुनिया भर में ब्रांच हैं। इसका सालाना कारोबार संभवतः सैकड़ों करोड़ रुपए का है। देवांशी की बहन काव्या पांच साल की हैं।
6. पारिवारिक मित्र बताते हैं कि धनेश, उनकी पत्नी अमी और दोनों बेटियां अकूत सम्पत्ति के मालिक होने के बावजूद हमेशा सरल और धार्मिक जीवन शैली का पालन करने के लिए जाने जाते हैं। पारिवारिक मित्र ने कहा कि देवांशी ने बचपन से ही दिन में तीन बार प्रार्थना करने का सख्त पालन किया है।
7. देवांशी ने 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी पैदल विहार, तीर्थों की यात्रा व जैन ग्रन्थों का वाचन किया है। यानी देवांशी के मन में वैराग्य की भावना पहले से ही थी।
8. देवांशी संगीत में पारंगत है। उसे कई राग आते हैं। स्केंटिग भरतनाट्यम, योगा सीखा है। देवांशी संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, मारवाड़ी व अंग्रेजी भाषाएं जानती है।
9. पारिवारिक मित्रों के अनुसार, जब देवांशी ने साध्वी प्रशमिता से वैराग्य की शिक्षा ली है। साध्वी चारूदर्शना ने उसकी इक इच्छा को पूरा कराया।
10. पारिवारिक मित्रों के अनुसार, देवांशी में वैराग्य के भाव थे। देवांशी ने 4 वर्ष 3 माह की उम्र में हर महीने 10 दिन गुरु भगवंतों के साथ रहना शुरू किया था।
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