तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट का चुनावी कनेक्शन, जानिए परियोजना को रद्द करने के पीछे की असली वजह

सीएम ने कहा कि यह केंद्र सरकार की योजना थी। राज्य सरकार से इसकी स्वीकृति मांगी गई थी, लेकिन अभी तक हमारी सरकार की तरफ से इसे मंजूरी नहीं दी गई थी। इससे आदिवासी समाज में सरकार के खिलाफ भ्रम फैलाने की भी कोशिश की गई।

Asianet News Hindi | Published : May 22, 2022 3:45 AM IST / Updated: May 22 2022, 10:08 AM IST

अहमदाबाद : गुजरात में विधानसभा चुनाव (Gujarat Chunav 2022) से पहले राज्य सरकार ने तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है। इसके पीछे सियासी कनेक्शन माना जा रहा है। दरअसल, राज्य में आदिवासी वोटबैंक काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यही वर्ग लगातार इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा था। सियासी पंडितों का कहना है कि इस परियोजना को रद्द करने से बीजेपी को चुनाव में इसका अच्छा-खासा फायदा मिल सकता है। बता दें कि शनिवार को मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल (Bhupendrabhai Patel) ने इसको रद्द करने का ऐलान करते हुए कहा कि गुजरात सरकार हमेशा से ही आदिवासियों के साथ खड़ी है। विपक्ष इस परियोजना को लेकर झूठ फैला रही है।

प्रोजेक्ट के बारें में जानिए
तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट के जरिए सौराष्ट्र और कच्छ के उन क्षेत्रों में पानी पहुंचाने का लक्ष्य था, जहां पानी की कमी थी।। परियोजना को साल 2010 में मंजूरी दी गई थी। इसकी लागत 10 हजार 211 करोड़ रुपए थी। इस परियोजना में उत्तर महाराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में सात जलाशय प्रस्तावित थे। इनका पानी 395 किलोमीटर लंबे नहर के जरिए सरदार सरोवर परियोजना के रास्ते सिंचाई के लिए इस्तेमाल होना था। परियोजना के तहत सात बांध बनाने प्रस्तावित थे। जिसमें झेरी, मोहनकवचली, पाइखेड़, चसमांडवा, चिक्कर, डाबदार और केलवान शामिल  हैं। इस परियोजना के बनने से सरदार सरोवर का पानी बचता, जिसका उपयोग सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में सिंचाई के लिए किया जाता। 

प्रोजेक्ट का विरोध क्यों
आदिवासी नेताओं का कहना है कि महाराष्ट्र के डांग, वलसाड और नासिक जिले में छह डैम इस परियोजना के तहत बनाए जाएंगे। जिससे गुजरात के करीब 50 हजार लोग सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। उन्हें विस्थापित होना पड़ेगा। दावा यह भी किया जा रहा था कि इस परियोजना के कारण 60 से ज्यादा गांव पानी में डूब जाएंगे। यही कारण था कि आदिवासी इसका विरोध कर रहे थे। आदिवासी नेताओं का कहना था कि नर्मदा योजना और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जैसी कई परियोजनाएं हैं, जहां से विस्थापित आदिवासियों को आज तक मुआवजे का इंतजार है।

चुनावी नफा-नुकसान का समीकरण
चूंकि राज्य में आदिवासी वोटबैंक चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है। कहा जाता है कि 180 में से कम से कम 27 सीटों पर आदिवासी ही जीत-हार का समीकरण तय करते हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस वर्ग का अच्छा समर्थन मिला था। लेकिन कई कांग्रेस विधायकों का पाला बदलना बीजेपी के फायदा पहुंचा गया। इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी 150 प्लस का लक्ष्य लेकर चुनाव पर फोकस कर रही है। वह आदिवासी वर्ग को अपने साथ मजबूती से जोड़ना चाहती है। यही कारण है कि इस परियोजना को रद्द किया गया ताकि आदिवासियों की नाराजगी को खत्म किया जा सके।

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