शिमला का राजभवन होगा जमींदोज : शिमला समझौते का गवाह रहे ऐतिहासिक धरोहर को गिराने की तैयारी, जानिए क्या है कारण

अंग्रेजी शासन से लेकर आजाद भारत की छवि देखने के बाद भारत-पाक शिमला समझौते के गवाह रहे बार्नेस कोर्ट अब  शिमला राजभवन की हालत जर्जर, इसे गिराकर उसी रूप में नया भवन बनाने पर हो रहा विचार

rohan salodkar | Published : Apr 21, 2022 10:28 AM IST / Updated: Apr 21 2022, 04:07 PM IST

शिमला.कभी भारत-पाक शिमला समझौते की गवाह रही देश की ऐतिहासिक धरोहर में शामिल 190 साल से ज्यादा पुरानी इमारत बार्नेस कोर्ट जो कि वर्तमान में शिमला के राजभवन के रूप में उपयोग की जा रहा है, उसको गिराने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस इमारत को गिराकर नए सिरे से वापस बनाया जाएगा। इस भवन के पुरानी धज्जी दीवार तकनीक से बने होने के कारण इसका रेनोवेशन करना मुश्किल हो गया है, जबकि इस भवन को गिराकर उसी ढांचे में दोबारा तैयार करना आसान बताया गया है। जब तक भवन के पुनर्निर्माण का कार्य किया
जाएगा तब तक  राज्यपाल को पीटरहॉफ  में बैठाने की तैयारी की गई है,जहां से वे अपना कार्यभार सुचारू रूप से करेंगे। 
अंग्रेजों ने बनवाई इमारत अब है राजभवन
इसे 1832 से पहले अंग्रेजी शासनकाल में बनाया गया था। 1832 में इसमें तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के कमांडर इन चीफ सर एडवर्ड्स बार्नेस रहते थे। 1981 में जब
पीटरहॉफ में आग लगी तो। राजभवन पीटरहॉफ से बार्नेस कोर्ट के लिए बदला गया। बार्नेस कोर्ट परिसर 9647 वर्ग मीटर में फैला है। 
 जबकि वर्तमान में यहां शिमला का राजभवन चल रहा है।


हादसे से बचने के बाद लिया फैसला, 
राजभवन के छज्जे का एक टुकड़ा अचानक से राज्यपाल के ऊपर गिर गया था जिसमें वे चोटिल होने से बाल-बाल बचे थे। उसके बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और मुख्य
सचिव को राजभवन बुलाकर इसके रेनोवेशन और मरम्मत की संभावना पर विचार-विमर्श किया गया।

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1972 के शिमला समझौते के सबूत है यहां
3 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच जो शिमला समझौता उसकी निशानी यहां है। यही  वो भवन है
जहां दोनों देशों के  प्रधानमंत्रियों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये थे इसी की भवन के ग्राउंड फ्लोर में एक कीर्तिकक्ष है। आज भी इस कक्ष में वह कुर्सियां और टेबल
सुरक्षित हैं, जिन पर यह समझौता हुआ था।

यह धरोहर भवन है। इसलिए सरकार ने लोक निर्माण विभाग को कंसल्टेंट हायर करने की अनुमति दे दी है कि वह यह तय कर ले कि इसका जीर्णोद्धार करना या इसका
पुनर्निर्माण किया जाना है। परामर्शकों की राय के अनुसार सरकार आगामी प्रक्रिया को शुरू करवाएगी। इस बारे में लोक निर्माण विभाग के सचिव ही ज्यादा बता सकते हैं।
- सुभाशीष पांडा, प्रधान सचिव, मुख्यमंत्री

बजट रहेगी सरकार की समस्या
भवन को गिराकर दोबारा उसी तरह से बनाने की न्यूनतम लागत लगभग 44 करोड़ होगी, जबकि रेनोवेशन पर अनुमानित लागत 22 करोड़ रुपये तक हो सकती है। हालांकि
दोनों परिस्थितियों में निर्माण की लागत और भी बढ़ सकती है। एनजीटी के कड़े निर्देश पर इसे पुराने स्वरूप के तहत ही बनाना पड़ेगा, जैसे गेयटी थियेटर और टाउन हॉल
बने हैं। इसके लिए राजभवन की पूरी वीडियोग्राफी की जा चुकी है। हालांकि, कर्ज में डूबी जयराम सरकार इसके लिए कहां से बजट लाएगी, यह भी इसकी एक अलग
समस्या होगी। राजभवन से सरकार को भेजे प्रस्ताव में दो विकल्पों हैं। या तो इसे गिराकर नए सिरे से हेरिटेज नियमों के तहत बनाएं या पुराने ढांचे का ही जीर्णोद्धार करें।

एजेंसी ने सर्वे के बाद दिया फिर से बनाने का सुझाव
लोक निर्माण विभाग(pwd) के अलावा थापर यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ एनआईटीटीआर और स्याल कंस्ट्रक्शंस ने इसके निर्माण के लिए ऑडिट किया है। ऑडिट करने के बाद अपने ऑडिट रिपोर्ट में बताया कि भवन की  दीवारें बैठ रही हैं। एक भाग दो फीट नीचे बैठ गया है तो पीछे वाला ऊपर उठा हूआ है। कमरे भी लेवल में नहीं हैं। पूरा राजभवन धज्जी दीवार पर बना और देवदार की लकड़ी की सहायता से बनाया गया है। अब ये लकड़ियां सड़ने लगी है। ऐसे में इसका रेनोवेशन करने के जगह फिर से नए रूप से बनाना ही ठीक होगा।

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