3 आतंकियों मारकर शहीद होने वाले जांबाज SI बाबू राम को दिया अशोक चक्र, पत्नी ने नम आंसुओं से लिया वीरता सम्मान

राजपथ पर जम्मू कश्मीर पुलिस के जांबाज एसआई बाबू राम को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। वीरता के इस सम्मान को लेने के लिए शहीद की पत्नी रीता रानी लेने के लिए पहुंची हुई थीं। बता दें कि शहीद बाबू राम ने दो साल पहले तीन खूखार आतंकवादियों को मार गिराया था।

Asianet News Hindi | Published : Jan 26, 2022 5:42 AM IST / Updated: Jan 26 2022, 11:14 AM IST

जम्मू-कश्मीर. भारत देश आज अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। 26 जनवरी को यानि इसी दिन 1950 में इस दिन देश का संविधान लागू किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचकर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद राजपथ पर जम्मू कश्मीर पुलिस के जांबाज एसआई बाबू राम को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। वीरता के इस सम्मान को लेने के लिए शहीद की पत्नी रीता रानी लेने के लिए पहुंची हुई थीं। बता दें कि शहीद बाबू राम ने दो साल पहले तीन खूखार आतंकवादियों को मार गिराया था।

यूं बाबू राम ने तीन आतंकियों को किया था ढेर
दरअसल, साल अगस्त 2020 में श्रीनगर में आतंकवादियों ने सीआरपीएफ की नाका टीम पर हमला बोला था। जिसका मुहंतोड़ जवाब इंस्पेक्टर बाबू राम ने दिया था। उन्होंने अपनी पुलिस की गन से एक झटके में तीन आंतकियों को ढेर कर दिया था। देश अब बाबू राम को उनकी बहादुरी के लिए हमेशा याद करेगा

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18 साल तक जांबाजी से की देश की सेवा
बता दें कि शहीद बाबू राम ने करीब 18 साल देश को अपनी सेवाएं दीं हैं। इस दौरान उन्होंने आतंकवाद पर नकेल लगाने वाले कई ऑपरेशन में हिस्सा लिया था। बाबू राम का जन्म जम्मू क्षेत्र में पुंछ जिले के सीमावर्ती मेंढर इलाके के गांव धारना में 15 मई 1972 को हुआ था। बताया जाता है कि वह बचपन से ही सशस्त्र बलों में शामिल होना चाहते थे। बाबू राम ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद साल 1999 में जम्मू कश्मीर पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुए थे।

कई आतंकरोधी ऑपरेशन में लिया था हिस्सा
बाबू राम की ट्रेनिंग के बाद 2002 में श्रीनगर में उनकी पोस्टिंग हुई थी। श्रीनगर में आतंकवाद खात्मे के लिए चलाए गए अलग-अलग ऑपरेशन्स में बाबू राम का योगदान काफी अहम था। इसे देखते हुए उन्हें दो बार ऑउट ऑफ टर्न प्रमोशन भी दिया गया था। श्रीनगर में अपने 18 साल के इस करियर में वह आतंकरोधी अभियानों में हमेशा आगे रहे।

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