याचिका पत्रकार कुर्बान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस और वकील अंजना प्रकाश ने दायर की। इससे पहले मामले को वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में रखा था। याचिका में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषणों की घटनाओं पर SIT द्वारा स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच कराने के लिए निर्देश देने की अपील की।
देहरादून : हरिद्वार (Haridwar) 'धर्म संसद' के भाषणों की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में उत्तराखंड और दिल्ली सरकार को नोटिस थमाया है। CJI एनवी रमना (NV Raman), जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हीमा कोहली की बेंच के सामने इस मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई 10 दिन बाद करेगा, क्योंकि इस तरह के मामले पहले से ही लंबित हैं। इसके साथ ही याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने 23 जनवरी को अलीगढ़ में आयोजित होने वाली धर्म संसद पर रोक लगाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह इसके लिए राज्य सरकार को ज्ञापन दें।
किसने दायर की याचिका
यह याचिका, पत्रकार कुर्बान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस और वकील अंजना प्रकाश ने दायर की। इससे पहले मामले को वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में रखा था। याचिका में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषणों की घटनाओं पर SIT द्वारा स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच कराने के लिए निर्देश देने की अपील की। उन्होंने अदालत से कहा था कि सत्यमेव जयते की जगह अब शस्त्रमेव जयते की बातें हो रही हैं। FIR दर्ज हुई लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। सोमवार को CJI ने कपिल सिब्बल की इन दलीलों का संज्ञान लिया था।
क्या है पूरा मामला
हरिद्वार के वेद निकेतन में 17 से 19 दिसंबर तक धर्मसंसद का आयोजन किया गया था। आरोप है कि इसमें कुछ लोगों ने हेट स्पीच दी थी। इनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए, जिसके बाद ज्वालापुर निवासी गुलबहार कुरैशी की शिकायत पर पुलिस ने यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी के खिलाफ धार्मिक उन्माद फैलाने का मामला दर्ज कराया था। उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार के मुताबिक, FIR में वसीम रिजवी (अब जितेंद्र त्यागी) यती नरसिंहानंद, अन्नपूर्णा का नाम शामिल है। यह FIR थाना ज्वालापुर पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई है।
इन्होंने भी की जांच की मांग
इसके बाद इस मामले में पूर्व सेनाध्यक्षों समेत कई लोगों द्वारा कार्रवाई की मांग करने के एक दिन बाद भारतीय विदेश सेवा (IFS) के 32 पूर्व अधिकारियों ने खुला पत्र लिखा था। IFS के 32 पूर्व अधिकारियों ने कहा था कि किसी भी तरह की हिंसा के आह्वान की निंदा करते समय धर्म, जाति, क्षेत्र या वैचारिक मूल का लिहाज नहीं किया जाना चाहिए। सरकार के खिलाफ निंदा अभियान चलाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी निंदा सभी के लिए होनी चाहिए, न कि कुछ चुनिंदा लोगों के लिए।
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