कब थमेंगे बेबसी के आंसू: घर में एक रोटी भी नहीं..रोते हुए बोली-साहब गांव भिजवा दो जिंदा तो रहेंगे

यह महिला मूल रुप से छत्तीसगढ़ की रहने वाली है, कुछ सालों पहले उसका परिवार अमृतसर में रहकर मजदूरी कर रहा है। लेकिन, लॉकडाउन ने उनका वह काम भी छीन लिया, अब यह युवती अपने बच्चों का पेट भरने के लिए दर-दर की ठोकरें खाने क मजबूर हो गई है। 


अमृतसर, लॉकडाउन 5.0 लागू होने और  प्रवासी ट्रेनें चलने के बाद भी हजारों मजदूर आज दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। वह दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। ना घर में अनाज का एक दाना है और ना ही जेब में एक पैसा, बस आंखों में सिर्फ आंसू और मायूसी है। ऐसी एक महिला की मार्मिक कहानी पंजाब से सामने आई है, जहां उसकी आंखों से दर्द छलक रहा है।

रोटी के पड़ गए लाले, दर-दर की ठोकरें खा रहा परिवार
दरअसल, यह महिला मूल रुप से छत्तीसगढ़ की रहने वाली है, कुछ सालों पहले उसका परिवार अमृतसर में रहकर मजदूरी कर रहा है। लेकिन, लॉकडाउन ने उनका वह काम भी छीन लिया, अब यह युवती अपने बच्चों का पेट भरने के लिए दर-दर की ठोकरें खाने क मजबूर हो गई है। 

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दर्द सुनाते वक्त फफक-फफक कर रो पड़ी
 बुधवार के दिन यह महिला अमृतसर डीसी दफ्तर पहुंची जहां वह बातचीत के दौरान फफक-फफक कर रो पड़ी। कहने लगी साहब हमको अपने गांव भिजवा दीजिए, यहां रोटी के लाले पड़ गए हैं, खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। गांव में कम से कम जिंदा तो रहेंगे।

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