Punjab विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों का 'Family Show', 15 सीट पर परिवार या रिश्तेदारों को टिकट

कांग्रेस में मुख्य रूप से नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी सहयोगी सुमित सिंह का नाम शामिल है, जिन्हें अमरगढ़ से टिकट दिया गया है। सुनाम के दावेदार दमन बाजवा का पत्ता काट कर विधायक सुरजीत धीमान के बेटे जसविंदर सिंह को वहां भेजा गया है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 27, 2022 4:07 AM IST / Updated: Jan 27 2022, 07:09 PM IST

चंडीगढ़ : नेता का बेटा या रिश्तेदार ही आगे नेता बनेगा। अमूमन तो नेता रिटायर होता ही नहीं, यदि गलती से हो गया तो उसके विधानसभा क्षेत्र से उसे ही टिकट मिलेगा, जिसे वह चाहेगा। कम कम पंजाब के विधानसभा चुनाव (Punjab Chunav 2022) में ऐसा ही किया। कम से कम 15 सीटों पर नेता बेटे या उनके नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट दिया गया है। कांग्रेस में 
मुख्य रूप से नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के करीबी सहयोगी सुमित सिंह का नाम शामिल है, जिन्हें अमरगढ़ से टिकट दिया गया है। सुनाम के दावेदार दमन बाजवा का पत्ता काट कर विधायक सुरजीत धीमान के बेटे जसविंदर सिंह को वहां भेजा गया है।

इनके भी करीबियों को टिकट
इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल के दामाद विक्रम बाजवा को साहनेवाल से जबकि उनके बेटे विक्रम मोफर को इस बार अजीतिंदर मोफर की जगह चुनाव मैदान में उतारा गया है जो सरदुलगढ़ से कई बार विधायक रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) के पूर्व मीडिया सलाहकार और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भरत इंदर सिंह चहल के बेटे बिक्रम इंदर सिंह चहल, पंजाब लोक कांग्रेस के टिकट पर सनौर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। बिक्रम पिछले चुनाव से ही कांग्रेस से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने पिछले चुनाव में भी कांग्रेस को इस सीट से टिकट दिलाने की कोशिश की थी।

हर दांव-पेंच से टिकट का इंतजाम
पटियाला से मंत्री ब्रह्म महिंद्रा के बेटे और पूर्व मंत्री सुरजीत भी मैदान में हैं। मौजूदा कैबिनेट मंत्री ब्रह्म महिंद्रा के बेटे मोहित महिंद्रा पटियाला से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मोहित को पिछले चुनाव में भी टिकट चाहिए था लेकिन इस बार कांग्रेस ने उन्हें उनके पिता की वफादारी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ न जाने पर नवाजा है। आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह कोहली के बेटे अजीत सिंह कोहली पटियाला शहर से चुनाव लड़ रहे हैं। सुरजीत पूर्व मेयर भी रह चुके हैं। डिप्टी सीएम रंधावा के सामने पूर्व मंत्री निर्मल सिंह कहलों के बेटेडेरा बाबा नानक से अकाली दल के पूर्व मंत्री निर्मल सिंह कहलों के बेटे रवि करण सिंह काहलों मैदान में हैं। रवि पिछले पांच साल से राजनीति में आने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस बार उनका नंबर अकाली दल की ओर से आया है। हालांकि उनका मुकाबला डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा से है। अगर रवि करण रंधावा को हराने में कामयाब हो जाते हैं तो यह उनकी सबसे बड़ी जीत मानी जाएगी।

विरासत सौंपने का काम
पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी ने बठिंडा गांव से पूर्व विधायक माखन सिंह के बेटे सवेरा सिंह को मैदान में उतारा है। माखन सिंह अब राजनीति से हट रहे हैं। समय रहते उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे सवेरा सिंह को सौंप दी है। कपूरथला की सुल्तानपुर लोधी सीट सबसे दिलचस्प चुनावी सीटों में से एक है। इधर कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के पुत्र राणा इंद्र प्रताप सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी नवतेज सिंह चीमा के खिलाफ कांग्रेस से टिकट न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए। राणा को अपने बेटे के फैसले की वजह से पार्टी के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। मामला कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचा। राणा ने अपने बेटे को जिताने के लिए पार्टी की नीतियों को दरकिनार करते हुए उनके प्रचार अभियान की कमान अपने हाथ में ले ली है। उन्होंने सुखपाल सिंह खैरा, नवतेज सिंह चीमा, अवतार हेनरी जैसे अपने विरोधियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

ये भी नेताओं के करीबी
लांगी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जगपाल सिंह अबुल खुराना पूर्व मंत्री गुरनाम सिंह अबुल खुराना के बेटे हैं। कांग्रेस ने उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी विरासत को आगे बढ़ाने और इस निर्वाचन क्षेत्र से बादल परिवार से लड़ने के लिए उन्हें एक युवा उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया है। शिरोमणि कमेटी के सदस्य कुलदीप धोनी के बेटे लाडी धोनी धर्मकोट से चुनाव लड़ रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने उन्हें अपने पिता की राजनीति को आगे बढ़ाने का मौका दिया है। हालांकि पिता पंथिक राजनीति करते रहे हैं, लेकिन बेटे अपनी विचारधारा से हटकर आप में शामिल हो गए हैं। लुधियाना की रायकोट सीट से कांग्रेस सांसद अमर सिंह के बेटे कामिल अमर सिंह मैदान में हैं। कांग्रेस के टिकट पर तमाम विरोध के बावजूद पार्टी ने उन्हें मैदान में उतारा है। पिछले पांच वर्षों से रायकोट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे कामिल को पार्टी ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का मौका दिया है।

परिवारवाद कतई सही नहीं
युवाओं के लिए काम करने वाली संस्था यूथ फॉर चेंज के अध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि निश्चित ही यह गलत बात है। आखिर नेता का बेटा ही क्यों उसकी सियासी विरासत संभाले? दूसरों को मौका क्यों नहीं मिलता। ऐसा लगता है कि इसमें नेता की मर्जी चलती है। दूसरी वजह यह है कि पार्टी का संगठनात्मक ढांचा कमजोर है। तभी तो कार्यकर्ता की जगह नेता के बेटे या उसके रिश्तेदार उनकी विरासत संभालते हैं। यदि काडर सिस्टम हो तो नेता के बाद पार्टी के समर्थकों में जो भी योग्य होगा उसे चांस दिया जाएगा। एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि इससे पार्टी भी कमजोर होती है, क्योंकि नेता पार्टी के अंदर अपना प्रतिद्वंद्वी तैयार ही नहीं होने देगा। इस तरह से नेता को अपनी मनमानी करने का मौका भी मिल जाता है। यदि काडर बेस पार्टी हो, जिसमें नेता की जगह विचार और सिस्टम को तवज्जो मिले तो निश्चित ही नेता के बाद पार्टी के अन्य कार्यकर्ता को मौका मिलेगा। अन्यथा समर्थक तो बेचारे बस तालियां बजाने, भीड़ जुटाने और नारे लगाने के लिए ही रह जाएंगे।

इसे भी पढ़ें-Punjab Chunav 2022 : Rahul Gandhi के हाथ प्रचार की कमान, आज 117 उम्मीदवारों साथ स्वर्ण मंदिर में टेकेंगे मत्था

इसे भी पढ़ें-Inside Story: अमृतसर ईस्ट में सिद्धू Vs मजीठिया, जानें माझे के सरदार ने क्यों दी कांग्रेस के सरदार को चुनौती?

Read more Articles on
Share this article
click me!