Punjab Election 2022 : क्या पंजाब में विकल्प बनकर उभरेगी भाजपा, नए साथियों के साथ कर पाएगी चमत्कार, समझिए गणित

पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब लोक कांग्रेस के साथ-साथ अकाली दल संयुक्त सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी भी भाजपा के साथ आ गई है। लोक इंसाफ पार्टी के बैंस बंधू भी भाजपा से समझौता कर सकते हैं। दूसरे दलों के नेता भी भाजपा में शामिल हो रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 17, 2022 6:14 AM IST / Updated: Jan 17 2022, 12:03 PM IST

चंडीगढ़ :  इस बार के पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) हर बार से  1997 से लेकर पिछले साल तक पंजाब में भाजपा (BJP) हमेशा अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। पिछले साल तीन कृषि कानूनों को लेकर यह सियासी गठबंधन टूट गया। इसके साथ ही भाजपा प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर चली गई। नौबत यहां तक आ गई कि भाजपा के नेताओं का लोग विरोधस्वरूप घेराव तक करने लगे। लेकिन जनवरी के बाद फिर से हालात में बदलाव आ रहा है। पांच जनवरी के दिन फिरोजपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जब दौरे पर थे, तब उनके काफिले को रोका गया था। यह भाजपा के लिए पंजाब में टर्निंग प्वाइंट बन गया। इसके बाद दिनो दिन भाजपा पंजाब में मजबूत होती चली गई। 

यूं बढ़ा पंजाब में भाजपा का कुनबा 
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने बताया कि 4020 नेताओं ने टिकट के लिए आवेदन किया है। भाजपा के प्रति पंजाब के नेताओं का रुझान भी बढ़ा है। पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) के पंजाब लोक कांग्रेस के साथ-साथ अकाली दल संयुक्त सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी भी भाजपा के साथ आ गई है। लोक इंसाफ पार्टी के बैंस बंधू भी भाजपा से समझौता कर सकते हैं। दूसरे दलों के नेता भी भाजपा में शामिल हो रहे हैं। 

कौन-कौन साथ
कादियान से कांग्रेस विधायक फतेह जंग बाजवा समेत सुरजीत सिंह बरनाला के परिवार, टोहरा परिवार, फतेहगढ़ साहिब के पूर्व एमएलए दीदार सिंह भट्टी, अकाली दल के महासचिव गुरदीप सिंह गोसा, पूर्व अकाली विधायक गुरतेज सिंह गुड़ियाना, मोगा के कांग्रेसी  विधायक हरजोत कंवल, कांग्रेस के मंत्री राणा गुरमीत सोढी, सुखबीर बादल के ओएसडी रहे परविंदर बराड़, कांग्रेसी नेत्री नमीश मेहता गढ़शंकर से कांग्रेस का टिकट मांग रही थी, नहीं मिला तो वह भी  भाजपा ज्वाइन की है। इसी तरह से अकाली दल के उपाध्यक्ष चांद सिंह चट्ठा, आम आदमी पार्टी के फाउंडर सदस्य चेतन मोहन जोशी पूर्व डीजीपी एसएस विर्क और पूर्व डीजीपी सरबजीत सिंह मक्कड़ के साथ साथ प्रमुख उद्योगपति व धूरी से कांग्रेस के दो बार विधायक रहे अरविंद खन्ना, अमृतसर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष भगवंत पाल सच्चर पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया की बेटी बीबी अमनजोत कौर रामूवालिया भी भाजपा के साथ है।  

हिंदू वोटरों को मिलेगा विकल्प 
पंजाब के राजनीति समीक्षक वीरेंद्र भारत ने बताया कि अकाली दल और भाजपा गठबंधन एक दूसरे के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पंजाब में  हिंदुओं की कुल आबादी का 38.5 प्रतिशत हिस्सा है। 45 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां हिंदू मतदाताओं की संख्या अधिक है। इस तरह से भाजपा जहां प्रदेश में अपनी सियासी उपस्थिति रखती थी, वही अकाली दल को मजबूती भी मिलती थी। तीन कृषि कानूनों पर अकाली दल ने भाजपा से अलग होने का निर्णय ले लिया। यह तब की परिस्थितियों में अकाली दल के लिए जरूरी सियासी कदम हो सकता है। अब जब केंद्र सरकार ने तीनो कृषि कानून वापस ले लिए, तो अकाली दल को भाजपा के साथ आना चाहिए था। यह उनकी बड़ी भूल है। अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद जो खाली जगह बची है, इसे कैप्टन और दूसरे दल भर रहे हैं। कहना होगा कि अब भाजपा को अकाली दल की जरूरत भी नहीं है। 

खुद को मजबूत करने का मौका 
पंजाबी के सीनियर पत्रकार बलविंदर सिंह का मानना है कि भाजपा काफी समय से खुद को पंजाब में मजबूत करनी की कोशिश कर रही थी। बार बार अकाली दल उनकी राह में आड़े आ रहा था। क्योंकि भाजपा गठबंधन धर्म भी निभाना चाहती थी। इस वजह से पार्टी इस दिशा मे चाह कर भी ज्यादा प्रयास नहीं कर पा रही थी। अब क्योंकि अकाली दल ने स्वयं ही उन्हें मौका दे दिया है। इसलिए भाजपा इसका फायदा उठाएगी। बलविंदर सिंह ने बताया कि चुनाव के बाद यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिला तो भाजपा अकाली दल के साथ आ भी सकती है। यह प्रयोग 1992 तक होता रहा है। तब भी दोनो पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ती थी, बाद में गठबंधन करती थी। यह सिलसिला 1996 तक चला। 1997 में भाजपा अकाली दल ने " मोगा डेक्लरेशन" पर साइन किए थे। इस पर तीन बातों पर जोर दिया गया। "पंजाब की आईडेंटिटी, आपसी सौहार्द और राष्ट्रीय सुरक्षा"  क्योंकि 1984 के बाद पंजाब का माहौल काफी खराब हो गया था। अकाली भाजपा गठबंधन तब एक नई उम्मीद लेकर सामने आया था। 1997 में पहली बार भाजपा व अकाली दल ने मिल कर चुनाव लड़ा था। 

क्या करिश्मा कर पाएगी भाजपा
जानकार कहते हैं कि भाजपा फिलहाल को काफी मजबूत नजर आ रही है। देखना यह होगा कि भाजपा किस तरह के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारती है। निश्चित ही प्रधानमंत्री के दौरे के बाद से दिन प्रति दिन भाजपा पंजाब में मजबूत होती जा रही है। भाजपा अपने दम पर इस बार पंजाब में चुनाव लड़ रही है, दूसरे दल भाजपा से सहयोग ले रहे हैं। यह भाजपा के लिए सुखद स्थिति है। अपनी पहचान बनाने का मौका भी है। यूं भी पंजाब के हिंदू मतदाता के पास विकल्प नहीं होता था, क्योंकि जो हिंदू अकाली दल को वोट नहीं करना चाहता था, वह तब कांग्रेस पर चला जाता था। इस बार उनके पास सीधा विकल्प है। इसलिए भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ने की पूरी उम्मीद है। हालांकि पंजाब के पूर्व सांसद और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता धर्मवीर गांधी का मानना है कि भाजपा शायद ज्यादा न कर पाए, उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल की तरह यहां भी भाजपा का शोर ज्यादा है। लेकिन दूसरे राजनीतिक समीक्षक इस तथ्य से सहमत नहीं है। वीरेंद्र भारत का कहना है कि भाजपा इस बार पंजाब की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वह गैर कांग्रेसी,यहां तक की आम आदमी पार्टी को सत्ता से दूर रख सकती है। वीरेंद्र भारत का मानना है कि भाजपा आम आदमी पार्टी का भी नुकसान करेगी। क्योंकि आप की शहरों में उपस्थिति नहीं थी, अब वह शहरी क्षेत्र में अपनी ताकत लग रही थी। इसका आम आदमी पार्टी को लाभ भी मिल रहा था। क्योंकि शहर का हिंदू वोटर्स आम आदमी पार्टी की ओर आता दिखाई दे रहा था। लेकिन अब वह भाजपा की ओर जा रहा है।

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