
Annapurna Jayanti 2025: हर साल अगहन मास की पूर्णिमा तिथि पर देवी अन्नपूर्णा की जयंती मनाई जाती है। हिंदू धर्म में देवी अन्नपूर्णा का विशेष महत्व बताया गया है। शिवपुराण आदि में भी इनसे जुड़ी कईं कथाएं मिलती हैं। अन्नपूर्णा वास्तव में स्वयं देवी पार्वती का ही स्वरूप है। देवी पार्वती को अन्नपूर्णा के के रूप में अवतार क्यों लेना पड़ा, इससे जुड़ी एक रोचक कथा भी है। अन्नपूर्णा जयंती (4 दिसंबर) के मौके पर पढ़ें देवी अन्नपूर्णा की ये रोचक कथा…
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प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव इस पूरे संसार को मिथ्या यानी झूठा कह दिया। समस्त संसार में अन्न भी मिथ्या है ये जानकर देवी पार्वती को बहुत दुख हुआ और उन्होंने पूरे संसार से अन्न का लोप कर दिया यानी दुनिया का अनाज खत्म कर दिया। ऐसा होने से संसार में भयंकर अकाल पड़ दिया। लोग अनाज के दाने के लिए भी तरसने लगे। ये देख महादेव को अपनी गलत का अहसास हुआ और उन्होंने देवी पार्वती से क्षमा याचना की। तब देवी पार्वती ने अन्नपूर्णा का अवतार लिया। सबसे पहले महादेव ने ही भिक्षुक बनकर देवी अन्नपूर्णा से अन्न प्राप्त किया। इसके बाद देवी अन्नपूर्णा ने सबसे पहले काशीवासियों को अन्न प्रदान किया क्योंकि ये महादेव की नगरी है। इसके बाद पूरी दुनिया को अन्न प्रदान किया। तभी से लोग देवी अन्नपूर्णा की पूजा कर रहे हैं।
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मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा हर घर में वास करती है, उनके निवास का स्थान किचन यानी रसोई घर है। इसलिए रसोई घर को साफ रखना चाहिए। यहां किसी भी तरह की गंदगी न होने दें और पवित्रता का भी विशेष रूप से ध्यान रखें। अन्नपूर्णा देवी की कृपा से हमें और पूरे संसार को प्रतिदिन भोजन की प्राप्ति होती है। बिना अन्न के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। इसलिए अन्नपूर्णा देवी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।
वैसे तो हमारे देश में देवी अन्नपूर्णा के अनेक मंदिर हैं, लेकन सबसे मुख्य मंदिर वाराणसी यानी काशी में है। यहां देवी अन्नपूर्णा भगवान शिव की पत्नी तथा अन्न की देवी के रूप में विराजमान है। जो व्यक्ति काशी में भगवान विश्वनाथ की पूजा करते हैं, उनके लिए इस मंदिर में दर्शन करना भी जरूरी माना गया है, तभी काशी दर्शन का पूरा फल मिलता है।
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इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।