chaitra navratri 2023: 28 मार्च, मंगलवार को चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। इस दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। देवी का ये रूप अत्यंत भयंकर है, जिसे देखकर दैत्य भी कांपने लगते हैं। इनकी पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
उज्जैन. इन दिनों चैत्र नवरात्रि (chaitra navratri 2023) चल रही है। 28 मार्च, मंगलवार को सप्तमी तिथि होने से इस दिन देवी कालरात्रि (Goddess Kalratri) की पूजा की जाएगी। इस दिन द्विपुष्कर योग दिन भर रहेगा, जिससे इस दिन की गई पूजा और उपाय को दो गुना फल प्राप्त होगा। धर्म ग्रंथों में मां कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही भयंकर बताया गया है। इनका वाहन गधा है। देवी की तीन आंखें हैं। इनके बाल बिखरे हुए हैं और 4 भुजाएं हैं। एक हाथ वर मुद्रा में और एक अभय मुद्रा में है। अन्य दो हाथों में शस्त्र हैं। आगे जानिए देवी कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, आरती व कथा…
इस विधि से करें देवी कालरात्रि की पूजा (Goddess Kalaratri Puja Vidhi)
- 28 मार्च, मंगलवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और घर में किसी साफ स्थान पर देवी कालरात्रि की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- देवी को फूलों की माला पहनाएं, तिलक लगाएं और शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इसके बाद कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें।
- देवी को गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाएं मीठा पान भी अर्पित करें। नीचे लिखे मंत्र का जाप करने के बाद आरती करें। ये है मंत्र-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।व
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
मां कालरात्रि की आरती (Devi Kalaratri Aarti)
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥
ये है देवी कालरात्रि की कथा (Goddess Kalaratri Katha)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के दैत्यों से पूरी सृष्टि परेशान थी। वे देवताओं को भी त्रास देते थे। जब इनका आतंक काफी बढ़ गया तो देवी पार्वती दुर्गा का अवतार लेकर इनसे युद्ध करने लगी। देवी ने क्रोध में आकर शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। लेकिन रक्तबीज को मारना काफी कठिन था क्योंकि जहां-जहां भी उसका रक्त गिरता, वहां से लाखों रक्तबीज पैदा हो जाते। तब देवी ने मां कालरात्रि का अवतार लेकर रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर का सारा रक्त पी लिया।
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