Jaya Ekadashi 2023: 1 फरवरी को सर्वार्थसिद्धि व इंद्र योग में करें जया एकादशी व्रत, जानें विधि, मुहूर्त, शुभ योग, आरती व कथा

माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया (Jaya Ekadashi 2023), अजा (Aja Ekadashi 2023) और भीष्म एकादशी (Bhishma Ekadashi 2023) कहते हैं। इस बार ये एकादशी 1 फरवरी, बुधवार को है। इस दिन कई शुभ योग बनेंगे।

 

Manish Meharele | Published : Jan 31, 2023 10:53 AM IST
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जानें जया एकादशी से जुड़ी हर खास बात...

उज्जैन. हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। हर महीने के दोनों पक्षों की एकादशी तिथि को व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। एक साल में कुल 24 एकादशी होती है। इस बार 1 फरवरी, बुधवार को माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे जया, अजा और भीष्म एकादशी के नाम से जाना जाता है। अनेक धर्म ग्रंथों में इस तिथि का महत्व बताया गया है। भगवान शिव ने महर्षि नारद को उपदेश देते हुए कहा था कि जया एकादशी महान पुण्य देने वाला व्रत है। आगे जानिए जया एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व कथा…
 

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जया एकादशी के शुभ योग

पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 31 जनवरी, मंगलवार की सुबह 11:54 से 1 फरवरी, बुधवार की दोपहर 02:02 तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 1 फरवरी को होगा, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा। मंगलवार को मृगशिरा नक्षत्र होने से अमृत नाम का शुभ योग दिन भर रहेगा। इसके अलावा सर्वार्थसिद्धि और इंद्र नाम का एक अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेगा। 
 

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जया एकादशी पूजा और पारणा के शुभ मुहूर्त

1 फरवरी को दिन सर्वार्थसिद्धि योग पूरे दिन रहेगा, लेकिन एकादशी तिथि दोपहर 02 बजे तक ही रहेगी। इसलिए इसके पहले ही भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ रहेगा। पूजा के लिए सुबह 08:31 से 09:52 तक और सुबह 11:13 से दोपहर 12:35 तक के दो मुहूर्त श्रेष्ठ हैं। व्रत का पारणा अगले दिन यानी 2 फरवरी को करें, इसके लिए शुभ मुहूर्त सुबह 07:09 से 09:19 तक रहेगा।
 

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ये है जया एकादशी की पूजा विधि

- जया एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल और चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शुभ मुहूर्त में घर में किसी साफ स्थान पर एक चौकी स्थापित करें। 
- इस चौकी के ऊपर एक साफ कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। भगवान के चित्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं और हार पहनाएं। कुमकुम से तिलक लगाएं।  
- इसके बाद एक एक करके अबीर, गुलाल, फूल, चावल, आदि चीजें भगवान को चढ़ाते रहें। इस दिन भगवान विष्णु को तिल विशेष रूप से चढ़ाएं। अपनी इच्छा अनुसार भोग लगाएं, इसमें तुलसी के पत्ते जरूर रखें।
- इस प्रकार विधि-विधान से पूजा करने के बाद अंत में आरती करें। इसके बाद प्रसाद भक्तों में बांट दें। दिन भर व्रत का पालन करें। अनुचित विचार मन में न लाएं। मन ही मन भगवान का स्मरण करते रहें।
- अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और व्रत का पारणा करें। इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस तरह जया एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।
 

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भगवान विष्णु की आरती (Lord Vishnu Aarti)

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
 

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ये है जया एकादशी की कथा

- पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं ने एक उत्सव का आयोजन किया, जहां माल्यवान नाम का गंधर्व और पुष्यवती नाम की गंधर्व कन्या एक दूसरे पर मोहित हो गए। 
- जब ये बात देवराज इंद्र का पता लगी तो वे नाराज हो गए और उन्हें स्वर्ग से निकालकर पिशाच योनि में भटकने का श्राप दे दिया। श्रापित होकर वे हिमालय पर रहने लगे। 
- एक दिन अनजाने में उन दोनों ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को केवल एक बार ही फलाहार किया और ठंड के कारण दोनों रातभर जागते रहे। उन्हें अपनी भूल पर पश्चाताप भी हुआ। 
- इस तरह उन्होंने जया एकादशी का व्रत कर लिया, जिसके प्रभाव से भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वर्ग प्रदान किया। इसके बाद से पिशाच जीवन से मुक्ति पाने के लिए ये व्रत किया जाने लगा। 


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