Dhumavati Jayanti 2024 Date: हमारे धर्म ग्रंथों में देवी के अनेक स्वरूपों का वर्णन मिलता है। 10 महाविद्याएं भी इनमें शामिल हैं। इन्हीं 10 महाविद्याओं में से एक है देवी धूमावती, इन्हें अलक्ष्मी भी कहा जाता है।
Dhumavati Jayanti 2024 Kab Hai: हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी धूमावती की जयंती मनाई जाती है। इस बार पर्व 14 जून, शुक्रवार को है। देवी धूमावती के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ये देवी 10 महाविद्याओं में से एक हैं। इनकी पूजा तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए की जाती है। इनका एक नाम अलक्ष्मी भी है। देवी धूमावती से जुड़ी अनेक रहस्यमयी बातें ग्रंथों में बताई गई है। आगे जानिए देवी धूमावती की पूजा विधि और अन्य खास बातें…
इन्हें क्यों कहते हैं अलक्ष्मी, सुहागिन महिला क्यों नहीं करती पूजा?
देवी धूमावती को अलक्ष्मी भी कहते हैं और ये माना जाता है कि ये देवी लक्ष्मी बड़ी बहन हैं। इनका स्वरूप विकराल और विधवा स्त्री के समान है। मान्यता है कि जिस पर भी इनका बुरा प्रभाव पड़ता है वह कंगाल हो जाता है, इसलिए इन्हें अलक्ष्मी कहते हैं। विधवा स्वरूप होने के कारण सुहागिन महिलाएं इनकी पूजा नहीं करतीं। महिलाएं चाहें तो दूर से ही इनके दर्शन जरूर कर सकती हैं।
इस विधि से करें देवी धूमावती की पूजा (Goddess Dhumavati Puja Vidhi)
- धूमावती जयंती का पर्व 14 जून, शुक्रवार को है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल-चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर में किसी साफ स्थान पर देवी धूमावती का चित्र या प्रतिमा स्थापित कर कुमकुम से तिलक करें, फूलों की माला पहनाएं और शुद्ध घी की दीपक लगाएं।
- इसके बाद सिंदूर, कुमकुम, चावल, फल, धूप आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। इस तरह पूजा करने के बाद अंत में देवी धूमावती को भोग लगाएं।
- मां धूमावती की कथा सुनें और अंत में आरती करें। मां धूमावती की पूजा से सभी पापों का नाश हो जाता है और मनचाहा फल भी प्राप्त होता है।
धूमावती अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (Dhumavati Ashtottara Shatnam Stotram)
ईश्वर उवाचधूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।
धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ 1॥
अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।
अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ 2॥
अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।
वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ 3॥
प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।
कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ 4॥
काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ 5॥
दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।
विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ 6॥
क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।
विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ 7॥
चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।
चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ 8॥
चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।
कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ 9॥
कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।
चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ 10॥
शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।
दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ 11॥
निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।
कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ 12॥
महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।
महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ 13॥
भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।
भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ 14॥
भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।
त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ 15॥
त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।
इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥ 16॥
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