Mahashivratri 2024 Shubh Muhurat: आज करें महाशिवरात्रि व्रत-पूजा, उज्जैन के ज्योतिषाचार्य से जानें शुभ मुहूर्त, मंत्र, पूजा विधि, महत्व और आरती

Mahashivratri 2024 Kab Hai: हर साल फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इसे बार ये पर्व मार्च 2024 में मनाया जाएगा। इस दिन कईं शुभ योग बन रहे हैं जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है।

 

Manish Meharele | Published : Mar 1, 2024 5:51 AM IST / Updated: Mar 08 2024, 09:08 AM IST
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जानें महाशिवरात्रि 2024 से जुड़ी हर खास बात

Know Every Details Of Mahashivratri 2024: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हर महीने कईं व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि का पर्व साल में सिर्फ एक बार ही आता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे, वहीं कुछ स्थानों पर ये पर्व शिव-पार्वती विवाह उत्सव के रूप मे में भी मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 8 मार्च को मनाया जाएगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. नलिन शर्मा से जानिए महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पूजन सामग्री, आरती, मंत्र सहित पूरी डिटेल…

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कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे महाशिवरात्रि 2024 पर? (Mahashivratri 2024 Shubh Yog)

इस बार महाशिवरात्रि पर कईं शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। 8 मार्च को शिव योग पूरे दिन रहेगा, वहीं रात्रि पूजन के दौरान सिद्ध योग रहेगा। ये दोनों योग पूजा-पाठ आदि के के लिए बहुत ही शुभ माने गए हैं। वहीं इस दिन सूर्योदय के समय सर्वार्थसिद्धि योग भी बनेगा, जिसमें किए गए सभी काम सफल होते हैं। 8 मार्च को श्रवण नक्षत्र का संयोग भी बन रहा है, जिसके स्वामी शनिदेव हैं। शनिदेव भी शिवजी के परम भक्त हैं, इसलिए ये पर्व इस बार बहुत ही खास है।

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महाशिवरात्रि 2024 के शुभ मुहूर्त (Mahashivratri 2024 Shubh Muhurat)

वैसे तो महाशिवरात्रि पर रात्रि पूजन का विधान है, लेकिन आमजन दिन में भी शिवजी की पूजा कर सकते हैं। इसके लिए 8 मार्च, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-
- सुबह 08:13 से 09:41 तक
- दोपहर 12:14 से 01:00 तक (अभिजीत मुहूर्त)
- दोपहर 12:37 से 02:05 तक
- शाम 05:01 से 06:29 तक

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महाशिवरात्रि 2024 रात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त (Mahashivratri 2024 Shubh Muhurat)

महाशिवरात्रि की रात चारों प्रहर में चार बार शिवजी की पूजा का विधान है। अगर कोई चारों प्रहर पूजा करने में असमर्थ हैं तो निशिता काल में एक बार ही पूजा कर सकता है। इसके लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-
- रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – शाम 06:25 से रात 09:28 तक
- रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - रात 09:28 से 12:31 तक
- रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – रात 12:31 से 03:34 तक
- रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – रात 03:34 से सुबह 06:37 तक
- निशिता काल पूजा समय – रात 12:07 से 12:56 तक

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महाशिवरात्रि पूजन सामग्री (Mahashivratri Puja Samgri List)

महाशिवरात्रि पूजा के लिए अनेक चीजों की आवश्यकता होती है। इसका विस्तार पूर्वक वर्णन धर्म ग्रंथों में किया गया है। इनमें से प्रमुख पूजन सामग्री इस प्रकार हैं- अभिषेक के लिए पवित्र जल, इत्र, गंध रोली, शुद्ध घी, शहद, मौली, फूल, फल, बेर, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, धतूरा, भांग, जनेऊ, मिठाई, बिल्वपत्र, कपूर, धूप, दीप आदि।

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इस विधि से करें महाशिवरात्रि पर महादेव की पूजा (Mahashivratri 2024 Puja Vidhi-Mantra)

- महाशिवरात्रि के एक दिन पहले ही यानी 9 मार्च, गुरुवार की शाम को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। अगले दिन 8 मार्च, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- ऊपर बताए गए किसी शुभ मुहूर्त में घर में शिवलिंग की स्थापना करें। ऐसा करना संभव न हो तो किसी अन्य शिव मंदिर में भी पूजा कर सकते हैं। सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक शिवजी के सामने जलाएं।
- सबसे पहले शिवजी का शुद्ध जल से अभिषेक करें, फिर पंचामृत से और फिर एक बार पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें। इसके बाद शिवजी को फूलों की माला अर्पित करें। फिर ये मंत्र बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
- मंत्र बोलने के बाद बिल्व पत्र, भांग, धतूरा, चावल, बेर, इत्र, पान, शहद, मौली, मंदार पुष्प, धतूरा, जनेऊ आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। पूजा के बाद मौसमी फल और मिठाई का भोग लगाएं।
- इसके बाद महाशिवरात्रि व्रत की कथा सुनें और आरती भी करें। दिन भर सात्विकता का पालन करें। यानी बुरे विचार मन में न लाएं। रात्रि के चारों प्रहर में भी इसी विधि से भगवान शिव की पूजा करें।
- चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करते रहें। कोई अन्य विचार मन में न लाएं और महादेव से इस प्रकार प्रार्थना करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।
- अगले दिन (9 मार्च, शनिवार) सुबह शुभ मुहूर्त में व्रत का पारणा करें। इस तरह जो व्यक्ति महाशिवरात्रि पर विधि-विधान से शिवजी की पूजा और व्रत करता है, उसे अपने जीवन में हर सुख प्राप्त होता है।

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भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

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क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि (Kyo Manate hai Mahashivratri?)

- शिव महापुराण के अनुसार, जब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु को उत्पन्न किया तो माया के वशीभूत होकर वे दोनों स्वयं को एक-दूसरे से अधिक श्रेष्ठ समझने लगे। इस बात पर दोनों में विवाद छिड़ गया।
- ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण स्वयं को श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे, वहीं भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ।
- ब्रह्मा और विष्णु ने ये निश्चय किया गया कि जो भी इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों ही देवता विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने के लिए निकले।
- छोर न मिलने के कारण विष्णु लौट आए। वहीं ब्रह्मा ने स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए झूठ बोल दिया कि उन्होंने इस ज्योतिर्लिंग के छोर का पता लगा लिया है। तभी वहां महादेव स्वयं प्रकट हुए।
- ब्रह्माजी द्वारा झूठ बोलने पर महादेव ने उनकी आलोचना की और कहा कि ‘मैं ही इस सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। ये सुनकर दोनों देवताओं ने उन्हें प्रणाम किया।
- उस दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए तभी से इस तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस दिन शिवजी की पूजा विशेष महत्व है।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

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