Vaikuntha Chaturdashi 2023: 25 या 26 नवंबर, कब है वैकुंठ चतुर्दशी? जानें पूजा विधि, मुहूर्त, कथा और महत्व

Vaikuntha Chaturdashi 2023 Date: कार्तिक मास में कईं प्रमुख व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, वैकुंठ चतुर्दशी भी इनमें से एक है। इस पर्व का महत्व कईं धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस बार इस पर्व को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बन रही है।

 

Manish Meharele | Published : Nov 24, 2023 7:19 AM IST

Kab hai Vaikuntha Chaturdashi 2023: धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं। इस भगवान शिव और विष्णु की पूजा एक साथ करने का विधान है। इस पर्व का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। देश में कईं स्थानों पर इस दिन हरि-हर मिलन की परंपरा निभाई जाती है। इस बार इस पर्व को लेकर कन्फयूजन की स्थिति बन रही है। आगे जानिए इस बार कब है बैकुंठ चतुर्दशी…

कब है वैकुंठ चतुर्दशी? (Vaikuntha Chaturdashi 2023 Kab Hai)
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि, 25 नवंबर, शनिवार की शाम 05.22 से शुरू होगी, जो 26 नवंबर, रविवार की दोपहर 03:53 तक रहेगी। चूंकि चतुर्दशी तिथि का सूर्योदय 26 नवंबर को होगा, इसलिए इसी दिन वैकुंठ चतुर्दशी से संबंधित पूजा, उपाय, आदि किए जाएंगे।

वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि (Vaikuntha Chaturdashi 2022 Puja Vidhi)
- 26 नवंबर, रविवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। संभव हो तो इस दिन उपवास भी रखें। किसी तरह के बुरे विचार मन में न लाएं।
- इसके बाद रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करें और शिवजी को बिल्व पत्र चढ़ाएं। पूजा के दौरान ये मंत्र बोलें-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। दोनों देवताओं को कुमकुम से तिलक करें। फूल माला पहनाएं। वस्त्र के रूप में मौली समर्पित करें।
- इस तरह पूजा करने के बाद आरती करें। अगली सुबह (27 नवंबर, सोमवार) ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।
- इस तरह वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और विष्णु की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानी दूर होती है।

वैकुंठ चतुर्दशी की कथा (Vaikuntha Chaturdashi Ki Katha)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के मन में शिवजी की पूजा करने का विचार आया। इसके लिए वे काशी आए और उन्होंने 1 हजार कमल के फूलों से महादेव की पूजा का संकल्प लिया। भगवान विष्णु विधि-विधान से शिवजी की पूजा करने लगे। शिवजी ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। जब भगवान विष्णु ने देखा कि पूजा में एक कमल का फूल कम है तो उन्होंने सोचा कि ‘मेरा एक नाम कमलनयन भी है यानी मेरी आंखें भी कमल पुष्प के समान है।’ ये सोचकर वे अपनी आंख निकालकर महादेव को समर्पित करने लगे। तभी वहां स्वयं महादेव प्रकट हुए और भगवान विष्णु की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए। महादेव ने कहा कि ‘आज कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी की तिथि वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध होगी। आज जो भी संयुक्त रूप से हरि और हर की पूजा करेगा उसे वैकुंठ में स्थान प्राप्त होगा।’ तभी से वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत किया जाने लगा।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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