Pandharpur Mela 2023: कौन थे महात्मा पुंडलिक जिनसे मिलने स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को आना पड़ा?

Devuthani Ekadashi 2023: धर्म ग्रंथों में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। इस मौके पर देश के अनेक मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। ऐसा ही एक आयोजन महाराष्ट्र के पंढरपुर में भी होता है।

 

Pandharpur Mela 2023 Kab Lgata hai: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस बार ये एकादशी 23 नवंबर, गुरुवार को है। ये बहुत ही शुभ दिन है। इसी दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और शुभ कार्यों की शुरूआत होती है। देश के प्रसिद्ध मंदिरों में इस दिन विशेष आयोजन होते हैं। ऐसा ही एक मंदिर महाराष्ट्र के पंढरपुर में भी है। ये मंदिर काफी प्राचीन है। आगे जानिए कौन-सा है ये मंदिर और इससे जुड़ी खास बातें…

देवउठनी एकादशी पर होती है महापूजा
देवउठनी एकादशी का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस मौके पर देश के प्रमुख मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। महाराष्ट्र (Maharashtra) के पंढरपुर (Pandharpur) में स्थित विट्ठल रुक्मिणी मंदिर (Vitthal Rukmini Mandir) में इसी दिन मेला लगता और यात्रा भी निकाली जाती है, साथ ही महापूजा का आयोजन भी होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।

Latest Videos

अति प्राचीन है ये मंदिर
भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित ये मंदिर अति प्राचीन है। इसकी प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 800 सालों से यहां देवउठनी एकादशी पर मेले और महापूजा का आयोजन हो रहा है। मंदिर के किनारे भीमा नदी बहती है। मंदिर परिसर में ही भक्त चोखामेला और संत नामदेव की समाधि भी है। हर साल वारकरी संप्रदाय के लोग इस मंदिर में यात्रा करने आते हैं।

कौन है वारकरी संप्रदाय?
वारकरी संप्रदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण को विट्ठल कहते हैं और इनके परम भक्त होते हैं। वारी का अर्थ है यात्रा करना या फेरे लगाना। वारकरी संप्रदाय के लोगों की पहचान इनकी वेश-भूषा से से हो जाती है। इनके कंधे पर भगवा रंग का झंडा और गले में तुलसी की माला होती है। ये लोग गले, छाती, दोनों भुजाओं, कान एवं पेट पर चंदन लगाते हैं।

संत पुंडलिक से जुड़ी है इस मंदिर की कथा
प्राचीन कथाओं के अनुसार, 6वीं सदी में महाराष्ट्र में एक प्रसिद्ध संत हुए, उनका नाम पुंडलिक था। वे भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार स्वयं श्रीकृष्ण उनसे मिलने आए। जब श्रीकृष्ण आए तो उस समय महात्मा पुंडलिक अपने पिता के पैर दबा रहे थे। श्रीकृष्ण ने घर के बाहर से आवाजा लगाई ‘पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।’ महात्मा पुंडलिक ने भगवान को देखा और कहा कि ‘अभी मैं पिता की सेवा कर रहा हूं, कृपया कुछ देर प्रतीक्षा कीजिए। श्रीकृष्ण कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़े हो गए। भगवान श्रीकृष्ण का यही स्वरूप विट्ठल कहलाया। श्रीकृष्ण उसी स्वरूप में मूर्ति बनकर सदैव के लिए स्थापित हो गए। वही प्रतिमा आज भी मंदिर में स्थापित है। पास ही महात्मा पुंडलिक का स्मारक भी बना हुआ है।


ये भी पढ़ें-

तुलसी विवाह का मंडप केले के पत्तों और गन्ने से ही क्यों सजाते हैं?


Devuthani Ekadashi 2023 के आसान उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत


Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

Share this article
click me!

Latest Videos

Year Ender 2024: Modi की हैट्रिक से केजरीवाल-सोरेन के जेल तक, 12 माह ऐसे रहे खास
Bihar Hajipur में गजब कारनामा! Male Teacher Pregnant, मिल गई Maternity Leave
चुनाव नियमों में बदलाव को कांग्रेस की Supreme Court में चुनौती, क्या है पूरा मामला । National News
Kazakhstan Plane Crash: प्लेन क्रैश होने पर कितना मिलता है मुआवजा, क्या हैं International Rules
Shimla Snowfall: शिमला में बर्फ ही बर्फ, नजारे ऐसे की चौंक जाएंगे आप #Shorts