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तुलसी विवाह का मंडप केले के पत्तों और गन्ने से ही क्यों सजाते हैं?

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देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को

कार्तिक मास के शुक्ल एकादशी की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस बार ये एकादशी 23 नवंबर, गुरुवार को है। मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं।

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तुलसी विवाह की परंपरा

देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह की परंपरा भी है। इस परंपरा में तुलसी के पौधे का विवाह भगवान विष्णु का स्वरूप मानी जाने वाली शालिग्राम शिला से करवाया जाता है।

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मंडप होता है खास

तुलसी विवाह के लिए जो मंडप सजाया जाता है, इसमें गन्ने और केले के पत्तों का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। इन दोनों चीजों के बिना ये मंडप अधूरा माना जाता है।

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गन्ने और केले के पत्ते क्यों जरूरी।

केले के पत्ते और गन्ना ये दोनों चीजें हिंदू धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई हैं। अनेक शुभ कामों में इनका उपयोग किया जाता है। धर्म ग्रंथों में भी इन चीजों का महत्व बताया गया है।

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शुक्र ग्रह का प्रतिनिधि है गन्ना

ज्योतिष के अनुसार, गन्ने का संबंध शुक्र ग्रह से है। शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव से ही जीवन में हर तरह का सुख मिलता है। शुक्र ग्रह शुभ स्थिति में है तो वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

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गुरु ग्रह का कारक है केला

वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए गुरु ग्रह का शुभ होना जरूरी माना गया है। केला गुरु ग्रह से ही संबंधित है। इसलिए तुलसी विवाह में मंडप को केले के पत्तों से सजाया जाता है।

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