
Maha Navami 2025: नवरात्रि में महा नवमी का दिन विशेष महत्व रखता है। यह नवरात्रि का नौवां और अंतिम दिन होता है, जिसे देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप, मां सिद्धिदात्री को समर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी सभी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं और अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं। महा नवमी पर हवन, शस्त्र पूजन और कन्या पूजन करने की परंपरा है, जो न केवल आध्यात्मिक पुण्य प्रदान करती है बल्कि घर में सुख, समृद्धि और शांति भी लाती है। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे महा नवमी से जुड़े हर सवाल का जवाब देंगें, जैसे महा नवमी कब मनाई जाती है, इसका महत्व, पूजा विधि, मंत्र, भोग और शुभ मुहूर्त। आइए इस बारे में जानें-
महा नवमी नवरात्रि का नौवां दिन है और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पड़ता है। यह दिन हिंदू पंचांग के नौवें स्वरूप देवी दुर्गा, मां सिद्धिदात्री को समर्पित है। महा नवमी को नवरात्रि के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
महा नवमी का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह दिन देवी दुर्गा के शक्तिशाली स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा और हवन के लिए समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी सभी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं और अपने भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
2025 में, महा नवमी 30 सितंबर से शुरू होकर 1 अक्टूबर तक चलेगी। इस दिन, शुभ मुहूर्त में शाम 6:06 बजे पूजा और हवन शुरू हो जाते हैं।
महा नवमी देवी सिद्धिदात्री को समर्पित है। वे देवी दुर्गा के नौ शक्तिशाली रूपों में से एक हैं और सभी विपत्तियों और बुरी शक्तियों का नाश करने वाली मानी जाती हैं।
इस दिन, सुबह स्नान-ध्यान के बाद, देवी सिद्धिदात्री का हवन और पूजन किया जाता है। नौ कन्याओं का पूजन और उन्हें भोजन व दक्षिणा देना भी अनिवार्य है। पूजा के दौरान फल, नारियल, लाल फूल और दुपट्टा चढ़ाया जाता है।
महा नवमी दुर्गा पूजा का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। नवरात्रि के दौरान, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और महा नवमी पर हवन, पूजा और कन्या पूजन करने से नवरात्रि का पूरा पुण्य प्राप्त होता है।
कन्याओं को देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। इसलिए, महा नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह पूजा घर में सुख-शांति, समृद्धि और पति की दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए की जाती है।
हवन और पूजा में मंत्रों के जाप का विशेष महत्व है। महा नवमी पर जपे जाने वाले प्रमुख मंत्र हैं:
विजयादशमी या दशहरा महा नवमी के अगले दिन मनाया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। महा नवमी पर देवी की पूजा और हवन से बुराई का नाश होता है और विजयादशमी पर रावण यानी बुराई के विनाश का उत्सव मनाया जाता है।
देवी सिद्धिदात्री को फल, खीर, हलवा, पूरी, नारियल और मिठाई का विशेष भोग लगाया जाता है। भक्त फल, मीठे व्यंजन और मौसमी फल भी चढ़ा सकते हैं। श्रृंगार की वस्तुओं और फूलों का भी विशेष महत्व है।
शस्त्र पूजा देवी दुर्गा की शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है। इस दिन शस्त्र पूजा करके बुरी शक्तियों पर विजय पाने और अपनी रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है।
भक्त सुबह से लेकर पूजा समाप्त होने तक निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं। यह व्रत अपने पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
मां सिद्धिदात्री शक्ति, बल और बुरी शक्तियों का नाश करने वाली देवी का प्रतीक हैं। उनके स्वरूप में सभी प्रकार की विपत्तियों से रक्षा करने की शक्ति है।
यह दिन भक्ति, धर्मपरायणता, आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक प्रगति का प्रतीक है। भक्त इस दिन अपने जीवन में मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए देवी की पूजा करते हैं।
रामायण में, देवी दुर्गा की पूजा करने से राम के कष्ट दूर हुए थे। इसी कारण, भक्त इस दिन देवी की पूजा करते हैं और मानते हैं कि उनका आशीर्वाद उनके कष्टों का निवारण करेगा।
पूजा और हवन के बाद कलश विसर्जन किया जाता है। यह दिन के शुभ समय पर किया जाना चाहिए। यह शुद्धि और समृद्धि का प्रतीक है।
सत्य और धर्म की विजय, दुष्ट शक्तियों के विनाश और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने का संदेश।
Disclaimer: इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।