Mahashivratri Kab Hai: इस बार महाशिवरात्रि पर एक नहीं कई शुभ संयोग बन रहे हैं, जिसके चलते ये पर्व और भी खास बन गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट हुए थे। तभी ये महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है।
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये ये पर्व 18 फरवरी को मनाया जाएगा। ये पर्व भगवान शिव की भक्ति के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन हर व्यक्ति अलग-अलग तरीके से महादेव को प्रसन्न करने का प्रयास करता है। महाशिवरात्रि पर प्रमुख शिव मंदिरों में भक्तों की कतारें देखने को मिलती हैं। मंदिरों में विशेष कार्यक्रम भी किए जाते हैं। आगे जानिए महाशिवरात्रि व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, शुभ योग आदि के बारे में…
- सुबह 08:22 से 09:46 तक
- दोपहर 12:35 से शाम 04:49 तक
- दोपहर 12:18 से 01:03 तक- अभिजीत मुहूर्त
- दोपहर 12:02 से 01:27 तक- अमृत काल
- प्रथम प्रहर पूजा मुहूर्त- शाम 06:13 से रात 09:24
- द्वितीय प्रहर पूजा मुहूर्त- रात 09:24 से 12:35 तक
- तृतीय प्रहर पूजा मुहूर्त- रात 12:35 से तड़के 03:46 तक
- चतुर्थ प्रहर पूजा समय –तड़के 03:46 से सुबह 06:56 तक
- निशिता काल पूजा मुहूर्त- रात 12:09 से 01:00 बजे तक
महाशिवरात्रि व्रत का पारणा अगले दिन यानी 19 फरवरी, रविवार को किया जाएगा। इसके लिए शुभ मुहूर्त सुबह 06:56 से दोपहर 03:24 तक रहेगा। पारणा से पहले एक बार पुन: स्नान आदि करने के बाद शिवजी की पूजा विधि-विधान से करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार दान-दक्षिणा देकर विदा करें। पारणा के पाद में महाशिवरात्रि व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है, ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, इस बार महाशिवरात्रि पर एक नहीं कई शुभ योग एक साथ बन रहे हैं, जिसके चलते ये पर्व और भी खास बन गया है। महाशिवरात्रि पर केदार, शंख, शश, वरिष्ठ और सर्वार्थसिद्धि योग नाम के पंच महायोग बना रहे हैं। पिछले 700 सालों में ऐसा संयोग नहीं बना। इस दिन त्रयोदशी तिथि दिन भर होने से शनि प्रदोष व्रत भी किया जाए और रात में महाशिवरात्रि पूजन होगा। ऐसा संयोग बहुत कम बार बनता है। शिव पूजन के लिए ये संयोग बहुत ही शुभ माना गया है।
पवित्र जल, इत्र, गंध रोली, फूल, फल, शुद्ध घी, शहद, मौली, जनेऊ, मिठाई, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप आदि।
- शनिवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और हाथ में चावल व जल लेकर व्रत-पूजा के लिए संकल्प लें। इसके बाद शुभ योग में घर में शिवलिंग की स्थापना करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- सबसे पहले शिवलिंग का जल से अभिषेक करें, फिर पंचामृत से और फिर शुद्ध जल से। इसके बाद फूल, रोली, बिल्व पत्र, भांग, धतूरा, आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। इसके बाद ये श्लोक बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
- पूजा के बाद मौसमी फल और मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद महाशिवरात्रि की कथा सुनें और आरती भी करें। दिन भर सात्विकता का पालन करें। यानी बुरे विचार मन में न लाएं।
- रात्रि के चारों प्रहर में भी इसी विधि से भगवान शिव की पूजा करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।
- अगले दिन (19 फरवरी, रविवार) सुबह शुभ मुहूर्त मे पारणा करें। इस तरह जो व्यक्ति महाशिवरात्रि पर विधि-विधान से शिवजी की पूजा करता है, उसे हर सुख प्राप्त होता है।
- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, किसी समय वाराणसी के जंगल में गुरुद्रुह नाम का एक भील रहता था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। एक बार वह शिकार के लिए जंगल में गया, संयोग से उस दिन महाशिवरात्रि का पर्व था गुरुद्रुह को दिन भर कोई शिकार नहीं मिला।
- रात में वह एक पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखने लगा। उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था। थोड़ी देर बाद शिकारी को एक हिरनी दिखी। जैसे ही उसने धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई।
- हिरनी ने शिकारी को देख लिया और पूछा कि “तुम क्या चाहते हो।” शिकारी बोला “ मैं तुम्हें मारकर अपने परिवार का पालन करूंगा।” यह सुनकर हिरनी बोली कि “मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी।” हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
- कुछ देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए वहां आ गई। शिकारी ने उसे मारने के लिए भी धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी अनजाने में उसके हाथों शिवलिंग पर बिल्व पत्रों के माध्यम से पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा और चली गई।
- कुछ देर बाद वहां एक हिरन आया, इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। हिरन ने भी शिकारी से बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कही और वहां से चला गया। कुछ देर बाद दोनों हिरनी और वह एक हिरन प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण शिकारी के पास आ गए।
- सबको साथ आया देख शिकारी ने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में शिवलिंग की पूजा हो गई। गुरुद्रुह दिनभर से भूखा-प्यासा भी था और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव पूजा भी हो गई थी। इस तरह शिवरात्रि का व्रत संपन्न होने से उसकी बुद्धि निर्मल हो गई।
- ऐसा होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी उस शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने शिकारी गुरुद्रुह को वरदान दिया कि ”त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। वही शिकारी त्रेतायुग में निषादराज बना, जिससे श्रीराम ने मित्रता की।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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