Mahesh Navami 2023: महेश नवमी 29 मई को, इन शुभ योगों में करें शिवजी की पूजा, जानें मुहूर्त, मंत्र, आरती और कथा

Mahesh Navami 2023: इस बार महेश नवमी का पर्व 29 मई, सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। लोक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे महेश नवमी कहते हैं।

 

Manish Meharele | Published : May 28, 2023 5:22 AM IST

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जानें महेश नवमी से जुड़ी हर खास बात...

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी (Mahesh Navami 2023) की पर्व मनाया जाता है, इस बार ये तिथि 29 मई, सोमवार को है। सोमवार को महेश नवमी का पर्व होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता है कि पुरातन समय में इसी तिथि पर माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए ये पर्व इस समाज द्वारा बड़ी ही धूम-धाम से मनाई जाती है। आगे जानें इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे और पूजा विधि…

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महेश नवमी पर बनेंगे ये शुभ योग (Mahesh Navami 2023 Shubh Yog)

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 28 मई, रविवार की सुबह 09:57 से 29 मई, सोमवार की सुबह 11:49 तक रहेगी। चूंकि नवमी तिथि का सूर्योदय 29 मई को होगा, इसलिए महेश नवमी का पर्व इसी तिथि पर मनाया जाएगा। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र दिन भर रहेगा, जिससे श्रीवत्स नाम का शुभ योग बनेगा। साथ ही इस दिन सर्वार्थसिद्धि नाम का एक अन्य शुभ योग भी रहेगा।

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ये हैं महेश नवमी के शुभ मुहूर्त (Mahesh Navami 2023 Shubh Muhurat)

- सुबह 08:52 से 10:35 तक
- दोपहर 02:02 से 03:46 तक
- दोपहर 03:46 से शाम 05:29 तक
- शाम 05:29 से 07:13 तक
- शाम 07:13 से रात 08:29 तक

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इस विधि से करें पूजा…(Mahesh Navami 2023 Puja Vidhi)

- 29 मई, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और ये मंत्र बोलें- मम शिवप्रसाद प्राप्ति कामनया महेशनवमी-निमित्तं शिवपूजनं करिष्ये।
- इसके बाद भगवान घर में कोई साप स्थान पर देखकर वहां बाजोट रखें और इसके ऊपर भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमा या चित्र किसी स्थापित करें।
- इसके बाद शूलपाणये नम: से प्रतिष्ठा और पिनाकपाणये नम: से आह्वान करके शिवाय नम: से स्नान कराएं और पशुपतये नम: से गन्ध, फूल, धूप, दीप और भोग अर्पण करें।
- भगवान शिव से प्रार्थना करें-
जय नाथ कृपासिन्धोजय भक्तार्तिभंजन।
जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो॥
प्रसीदमें महाभाग संसारात्र्तस्यखिद्यत:।
सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर॥
- सबसे अंत में आरती करें। महेश नवमी पर भगवान शिव की पूजा से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी हो सकती है और घर में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है।

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भगवान शिव की आरती (Lord shiva Aarti)

जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा

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ये है महेश नवमी की कथा (Mahesh Navami Katha)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्व काल में माहेश्वरी समाज के लोग क्षत्रिय वंश के थे। एक दिन इनसे कोई भूल हो गई, जिसके चलते ऋषियों ने इन्हें श्राप दे दिया। इस श्राप के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए इन्होंने शिवजी की घोर तपस्या की। तब प्रसन्न होकर शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें श्राप मुक्त कर दिया, साथ ही अपना नाम भी दिया। भगवान शिव के महेश नाम से ही ये माहेश्वरी कहलाए। भगवान शंकर की आज्ञा से ही इन्होंने क्षत्रिय धर्म छोड़कर व्यापारिक कार्य अपनाया। इसलिए माहेश्वरी समाज द्वारा इस पर्व को बहुत ही भव्य रूप में मनाया जाता है।


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