पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्व काल में माहेश्वरी समाज के लोग क्षत्रिय वंश के थे। एक दिन इनसे कोई भूल हो गई, जिसके चलते ऋषियों ने इन्हें श्राप दे दिया। इस श्राप के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए इन्होंने शिवजी की घोर तपस्या की। तब प्रसन्न होकर शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें श्राप मुक्त कर दिया, साथ ही अपना नाम भी दिया। भगवान शिव के महेश नाम से ही ये माहेश्वरी कहलाए। भगवान शंकर की आज्ञा से ही इन्होंने क्षत्रिय धर्म छोड़कर व्यापारिक कार्य अपनाया। इसलिए माहेश्वरी समाज द्वारा इस पर्व को बहुत ही भव्य रूप में मनाया जाता है।
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