
हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राम नवमी (Ram Navami 2023) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 30 मार्च, गुरुवार को है। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार, इस बार राम नवमी पर एक-दो नहीं बल्कि 5 शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते ये पर्व और भी खास हो गया है। इन शुभ योगों में की गई पूजा सभी तरह की सुख-समृद्धि देने वाली रहेगी। आगे जानिए राम नवमी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, शुभ योग, आरती, कथा व अन्य खास बातें…
मान्यताओं के अनुसार, श्रीराम का जन्म दोपहर 12 बजे के लगभग हुआ था। इसलिए प्रमुख मंदिरों में इसी समय मुख्य पूजा की जाती है। इस बार श्रीराम नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त 30 मार्च, गुरुवार की सुबह 11:11 से दोपहर 01:40 तक रहेगा। इसकी अवधि 02 घंटे 29 मिनट तक रहेगी। इस दिन गुरु पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग, रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और गुरुवार का संयोग बन रहा है। राम नवमी पर इन पांचों योग के होने से श्रीराम की पूजा का शीघ्र फल मिलेगा, साथ ही सभी कामों में सफलता भी मिलेगी।
- 30 मार्च, गुरुवार की सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद श्रीराम का स्मरण करते हुए हाथ में जल और चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर में किसी स्थान पर पूजा की व्यवस्था करें। इसके लिए पहले ठीक से साफ-सफाई कर लें और गंगाजल छिड़ककर उस स्थान को पवित्र करें।
- एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर भगवान श्रीराम की प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा इस तरह रखें कि इसका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे।
- पहले पंचामृत से श्रीराम का अभिषेक करें। इसके बाद पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें। भगवान को फूल माला पहनाएं, कुमकुम से तिलक लगाएं।
- इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाकर अबीर, गुलाल, रोली, कलावा, चंदन, फूल आदि चीजें एक-एक करके श्रद्धा पूर्वक चढ़ाते रहें।
- इसके बाद रामचरितमानस, श्रीराम रक्षा स्तोत्र, श्रीराम स्तुति आदि का पाठ करें। अंत में अपनी इच्छा अनुसार, भोग लगाकर आरती करें।
- राम नवमी पर इस तरह भगवान श्रीराम की पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही साथ घर की निगेटिविटी भी दूर होती है।
आरती कीजे श्रीरामलला की । पूण निपुण धनुवेद कला की ।।
धनुष वान कर सोहत नीके । शोभा कोटि मदन मद फीके ।।
सुभग सिंहासन आप बिराजैं । वाम भाग वैदेही राजैं ।।
कर जोरे रिपुहन हनुमाना । भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।
शिव अज नारद गुन गन गावैं । निगम नेति कह पार न पावैं ।।
नाम प्रभाव सकल जग जानैं । शेष महेश गनेस बखानैं
भगत कामतरु पूरणकामा । दया क्षमा करुना गुन धामा ।।
सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा । राज विभीषन को प्रभु दीन्हा ।।
खेल खेल महु सिंधु बधाये । लोक सकल अनुपम यश छाये ।।
दुर्गम गढ़ लंका पति मारे । सुर नर मुनि सबके भय टारे ।।
देवन थापि सुजस विस्तारे । कोटिक दीन मलीन उधारे ।।
कपि केवट खग निसचर केरे । करि करुना दुःख दोष निवेरे ।।
देत सदा दासन्ह को माना । जगतपूज भे कपि हनुमाना ।।
आरत दीन सदा सत्कारे । तिहुपुर होत राम जयकारे ।।
कौसल्यादि सकल महतारी । दशरथ आदि भगत प्रभु झारी ।।
सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई । आरति करत बहुत सुख पाई ।।
धूप दीप चन्दन नैवेदा । मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।
राम लला की आरती गावै । राम कृपा अभिमत फल पावै ।।
त्रेतायुग में जब राक्षसों के राजा रावण का आतंक काफी बढ़ गया तो सभी देवता, ऋषि और पृथ्वी माता आदि भगवान विष्णु के पास पहुंचें। सभी की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि “मैं जल्दी ही अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में धरती पर अवतार लूंगा और उसी दौरान में रावण सहित अन्य अत्याचारी राक्षसों का अंत करूंगा।”
अयोध्या के राजा दशरथ धर्म प्रेमी थे, लेकिन वृद्ध होने के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया। उस यज्ञ की अग्नि से स्वयं अग्निदेव प्रकट हुए। उनके हाथ में एक पात्र था, जिसमें खीर थी। वो खीर राजा दशरथ ने अपनी रानी कौशल्या और कैकयी को आधी-आधी दे दी।
दोनों रानियों ने अपने हिस्से की खीर का आधा-आधा हिस्सा तीसरी रानी सुमित्रा को दे दिया। समय आने पर कौशल्या के गर्भ से श्रीराम, कैकयी के गर्भ से भरत और सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म हुआ। श्रीराम ने रावण सहित अन्य कई राक्षसों का वध कर संसार से अधर्म का नाश किया।
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