Parivartini Ekadashi Vrat Katha: कब है परिवर्तिनी एकादशी 2025? इस दिन जरूर सुनें ये कथा

Published : Sep 02, 2025, 09:13 AM IST
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सार

Parivartini Ekadashi Katha: इस बार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 3 सितंबर, बुधवार को किया जाएगा। इस व्रत से जुड़ी एक रोचक कथा भी है, जिसे व्रती (व्रत करने वाले) को जरूर सुनना चाहिए, तभी उसे पूजा-व्रत का पूरा फल मिलता है।

Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi: धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक साल में कुल 24 एकादशी होती है। इनमें से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इसे जयंती एकादशी, जलझूलनी एकादशी व डोल ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी का महत्व और कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताई थी। व्रत करने वालों को ये कथा जरूर सुननी चाहिए, तभी उन्हें इसका पूरा फल मिलता है। आगे जानिए परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा…

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परिवर्तिनी एकादशी की कथा

एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष एकादशी का महत्व और कथा के बारे में जानना चाहा। तब श्रीकृष्ण ने कहा – ‘हे पार्थ! इस एकादशी की कथा के सुनने से ही सभी पापों का नाश हो जाता है और मनुष्य स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिये इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं।’

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भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ‘त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुरों का राजा था। वह महान पराक्रमी, दानवीर और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। देवराज इंद्र का पद पाने के लिए एक बार उसने महान यज्ञ का आयोजन किया। तब देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु के पास जाकर सहायता मांगी। तब श्रीहरि वामन रूप में राजा बलि के यज्ञ में गए और तीन पग भूमि दान में मांगी।’

‘राजा बलि ने वामन को दान देना स्वीकार किया। तीन पग भूमि दान का वचन पाकर वामनदेव ने अपना स्वरूप अत्यंत विशल कर लिया और दो ही पग में समस्त सृष्टि को नाप लिया। तब वामनदेव ने राजा बलि से पूछा कि ‘हे राजन, अब मैं तीसरा पग कहां रखूं। राजा बलि ने कहा ‘आप तीसरा पग मैरे सिर पर रखिए।’ बलि की दानवीरता देख वामनदेव बहुत प्रसन्न हुए।’

‘जैसे ही वामनदेव ने बलि के सिर पर पैर रखा वह पाताल लोक पहुंच गया और ये वचन दिया कि वे पाताल लोक में उसके साथ भी रहेंगे। तभी से भादौ के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की एक प्रतिमा राजा बलि के पाल पाताल में दूसरी क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान शयन करते हुये करवट बदलते हैं।’

‘परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान श्रीविष्णु के साथ वामनदेव की पूजा भी की जाती है और चावल एवं दही सहित चाँदी का दान दिया जाता है। इस व्रत में रात्रि को जागरण करना चाहिये। जो मनुष्य परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक को जाता है।’


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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