Putrda Ekadashi Vrat Katha: पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि अगर संतानहीन व्यक्ति भी इस दिन पूरी श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु की व्रत-पूजा करे तो उसे संतान की प्राप्ति संभव है।
Putrda Ekadashi Vrat Katha In Hindi: इस बार पौष मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत 30 दिसंबर, मंगलवार को किया जाएगा। इस व्रत का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है। अगर कोई संतानहीन व्यक्ति ये व्रत करे तो उसे जल्दी ही योग्य संतान की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी की एक रोचक कथा भी है, जिसे सुनने के बाद ही इस व्रत का पूरा फल मिलता है। आगे पढ़िए पुत्रदा एकादशी व्रत की रोचक कथा…
प्राचीन समय में भद्रावती नाम के राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा की कोई संतान नहीं थी, जिसकी वजह से वह बहुत परेशान रहते थे। वे हमेशा यही सोचते थे कि उनके बाद पितरों का पिंडदान कौन करेगा। यही चिंता उन्हें रात-दिन सताया करती थी। इस चिन्ता में एक दिन वे इतना दुखी हो गए कि उनके मन में आत्महत्या के विचार आने लगे लेकिन बाद में उन्होंने सोचा कि आत्महत्या तो महापाप है।
एक दिन राजा अपने घोड़े पर सवार होकर वन में गए। वहां उन्होंने पशु-पक्षियों को परिवार सहित देखा। पशु-पक्षियों को परिवार सहित देखकर उनका मन और अधिक व्यथित हो गया और वे सोचने लगे कि जब पशु-पक्षियों की संतान है तो मेरी क्यों नहीं है? इसी सोच-विचार में काफी समय बीत गया। इसी बीच जब राजा को प्यास लगी तो वे जंगल में जल की खोज करने लगे।कुछ देर खोजने के बाद राजा को एक सुंदर सरोवर दिखाई दिया, जिसके चारों ओर ऋषियों के आश्रम बने हुये थे।
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ऋषि ने राजा को बताया उपाय
उन ऋषियों को देख राजा अपने घोड़े से उतरे और प्रणाम करके ऋषियों के सामने बैठ गए। राजा ने उनसे पूछा ‘आप कौन हैं ऋषिवर और यहां क्यों वास कर रहे हैं? तब एक ऋषि बोले ‘आज उत्तम संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है और पांच दिन बाद माघ स्नान है। इसलिए हम इस सरोवर में स्नान के लिए यहां आए हैं।’ राजा ने कहा 'हे ऋषियों, मेरा कोई पुत्र नहीं है, आप मुझे पुत्र का वरदान दीजिये।’ राजा की बात सुन ऋषि बोले ‘हे राजा, आज पौष मास की पुत्रदा एकादशी है। आप विधि-विधान से इसका व्रत करें। इससे आपकी कामना जरूर पूरी होगी।’
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राजा को हुई योग्य संतान
ऋषियों की बात मानकर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और द्वादशी तिथि को पारण कर पुन: अपनी नगरी में आ गए। इस व्रत के शुभ प्रभाव से कुछ दिनों बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने बाद एक पुत्र को जन्म दिया। यह बालक बड़ा होने पर यशस्वी राजा बना। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो भी व्यक्ति पुत्रदा एकादशी की कथा सुनता है और विधि-विधान से इसका उपवास करता है, उसे सुंदर और सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। भगवान की कृपा से वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
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