Sankashti Chaturthi June 2023: 7 जून को दुर्लभ संयोग में करें संकष्टी चतुर्थी व्रत, जानें संपूर्ण पूजा विधि और महत्व

Sankashti Chaturthi June 2023: इस बार आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत 7 जून, बुधवार को किया जाएगा। इस दिन कई शुभ योग भी बनेंगे, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी अधिक हो गया है।

 

Manish Meharele | Published : Jun 6, 2023 3:55 AM IST / Updated: Jun 07 2023, 07:32 AM IST

उज्जैन. इस बार आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi June 2023) बहुत ही खास रहेगी, क्योंकि ये व्रत बुधवार को किया जाएगा। चतुर्थी तिथि और बुधवार दोनों के ही स्वामी भगवान श्रीगणेश हैं। ऐसा शुभ संयोग साल में 1-2 बार ही बनता है जब चतुर्थी तिथि और बुधवार एक साथ हो। और भी कई शुभ योग इस दिन बनेंगे, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। जानें कब किया जाएगा संकष्टी चतुर्थी व्रत…

इस दिन करें आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी व्रत (Sankashti Chaturthi June 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 6 जून, मंगलवार की रात 12:50 से 07 जून, बुधवार की रात 09:51 तक रहेगी। चूंकि चतुर्थी तिथि के सूर्योदय व चंद्रोदय दोनों ही 7 जून को होंगे, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा। इस दिन ब्रह्म और इंद्र नाम के शुभ योग दिन भर रहेंगे। बुधवार को चतुर्थी तिथि होने और इन शुभ योगों के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।

जानें संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Importance Of Sankashti Chaturthi)
संकष्टी का अर्थ है संकट को हरने वाली। यानी चतुर्थी तिथि पर भगवान श्रीगणेश के निमित्त व्रत करने से हर तरह परेशानी दूर हो सकती है। ये तिथि हर तरह का सुख देने वाली है। शुभ योगों के चलते इस तिथि का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन उपवास करने का भी महत्व है। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

इस विधि से करें पूजा (Sankashti Chaturthi June 2023 Puja Vidhi)
7 जून, बुधवार की सुबह उठकर नित्य कर्मों से निपटकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन में फलाहार या दूध ले सकते हैं। पूरे दिन कम बोलें- बुरे विचार मन में न लाएं। शाम को चंद्रमा उदय होने से पहले भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान से पूजा करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। कुंकम से तिलक करें, फूल माला पहनाएं। अपनी इच्छा अनुसार भगवान को भोग लगाएं। दूर्वा भी जरूर चढ़ाएं। पूजा के दौरान श्रीगणेशाय नम: मंत्र का जाप करते रहें। अंत में आरती करें। इसके बाद जब चंद्रमा उदय होने जाए तो जल से अर्घ्य देकर इसकी भी पूजा करें। इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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