Sawan Last Somvar 2023: सावन का अंतिम सोमवार रहेगा बहुत खास, दुर्लभ संयोग में करें शिव पूजा, जानें विधि व शुभ मुहूर्त

Published : Aug 27, 2023, 11:22 AM IST
sawan last somvar 2023

सार

Sawan Last Somvar 2023: सावन का अंतिम सोमवार बहुत ही खास रहेगा। इस दिन सोम प्रदोष का संयोग बन रहा है जो बहुत ही दुर्लभ संयोग है। ये महीना, वार और तिथि सभी शिवजी को अति प्रिय है। इस दिन शिव पूजा से हर कामना पूरी हो सकती है। 

उज्जैन. इन दिनों भगवान शिव का प्रिय सावन मास चल रहा है। इस महीने में आने वाले सोमवार को बहुत ही खास माना जाता है। इस बार सावन के अंतिम सोमवार पर शिव पूजा का दुर्लभ संयोग बन रहा है। (Sawan Last Somvar 2023) ये संयोग कई सालों में एक बार बनता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, सावन के अंतिम सोमवार पर की गई शिव पूजा से हर कामना पूरी हो सकती है। आगे जानिए कब है सावन का अंतिम सोमवार और इस दिन की पूजा विधि आदि…

कौन-सा दुर्लभ संयोग बनेगा इस दिन (Sawan Somvar 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, सावन मास का अंतिम सोमवार 28 अगस्त को है। इस दिन द्वादशी व त्रयोदशी तिथि का संयोग बन रहा है। त्रयोदशी तिथि होने से इस दिन प्रदोष व्रत भी किया जाएगा। इस व्रत में शिवजी की ही पूजा की जाती है। इस तरह इस दिन शिवजी का प्रिय मास, वार और तिथि रहेगी। ये एक दुर्लभ संयोग है। इस दिन आयुष्मान, शोभन नाम के 2 शुभ योग बनेंगे। सिंह राशि में बुध और सूर्य के होने से बुधादित्य नाम का राजयोग भी इस दिन रहेगा।

ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त (Sawan Last Somvar 2023 Shubh Muhurat)
- सुबह 06:11 से 07:45 तक
- सुबह 09:19 से 10:54 तक
- दोपहर 12:03 से 12:53 तक
- दोपहर 02:02 से 03:36 तक
- शाम 05:10 से 06:00 तक

सावन सोमवार शिव पूजा की विधि (Shiv Puja Vidhi on Sawan Somwar)
28 अगस्त, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। ऊपर बताए गए किसी एक शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें। सबसे पहले शिवलिंग पर शुद्ध जल चढ़ाएं, फिर दूध से अभिषेक करें और एक बार पुन: शुद्ध जल अर्पित करें। दीपक लगाएं। शिवजी को जनेऊ, शहद, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, अबीर, गुलाल, रोली आदि चीजें चढ़ाएं। इस दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। अंत में भोग लगाएं और आरती करें।

शिवजी की आरती (Shivji Ki Aarti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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